केन्द्रीय गृह मंत्री से राजस्थानी भाषा मान्यता समिति और अन्य भाषाओं के प्रतिनिधिमंडल की भेंट
जयपुर।
केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने आश्वासन दिया है कि केंद्र सरकार द्वारा देश की अति प्राचीन और करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाने वाली तीन भाषाओं राजस्थानी, भोजपुरी और भोती को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं।
सिंह ने सोमवार को नई दिल्ली में राजस्थानी भाषा मान्यता समिति और अन्य भाषाओं के प्रतिनिधिमंडल को यह जानकारी दी। केद्रीय गृह मंत्री ने लोकसभा में सत्ता पक्ष के मुख्य सचेतक सांसद अर्जुनराम मेघवाल, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद जगदम्बिका पाल और राजस्थानी भाषा मान्यता समिति के अध्यक्ष के.सी. मालू के नेतृत्व में उनसे मिले प्रतिनिधिमंडल को यह आश्वासन दिया। प्रतिनिधिमंडल ने उन्हे एक स्मरण पत्र भी दिया।
केंद्रीय गृह मंत्री ने बताया कि देश की इन तीन प्राचीन भाषाओं को मान्यता प्रदान करने सम्बंधी एक केबिनेट नोट तैयार कर 21 फरवरी विश्व मातृ भाषा दिवस से पूर्व केंद्रीय मंत्रीमंडल के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास किया जायेगा और अनुमोदन मिलने पर इसे संसद में पेश करने की कार्यवाही भी की जायेगी।
सांसद मेघवाल ने बताया कि राजस्थानी भाषा हजार वर्ष से भी पुरानी समृद्घ शब्दकोष और प्रचुर साहित्य वाली भाषा है तथा देश-विदेश में करीब दस करोड़ लोग इस भाषा को जानने और बोलने वाले हैं। देश के साहित्य में वीर एवं भक्तिरस के साथ ही संस्कृति के संरक्षण में राजस्थानी भाषा का असाधारण योगदान है। मान्यता प्राप्त सत्रह में से दस अन्य भाषाओं के समान ही राजस्थानी भाषा की लिपि भी देवनागरी है। संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्णित भाषाओं में राजस्थानी ही ऐसी भारतीय भाषा है जो केन्द्रीय साहित्य अकादमी द्वारा मान्यता प्राप्त है। राजस्थानी भाषा को नेपाल में संवैधानिक दर्जा प्राप्त है एवं अमेरिका में नौकरियों के लिए मान्यता है।
उन्होने बताया कि अन्तराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त राजस्थानी, भोजपुरी और भोती भाषा को मान्यता मिलने से राष्ट्रभाषा हिन्दी का विकास होगा। साथ ही भारतीय संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा और शिक्षित युवक-युवतियों को शिक्षा, रोजगार एवं प्रतियोगी परीक्षाओं में अधिक अवसर उपलब्ध हो सकेगें।
समिति कि अध्यक्ष के.सी मालू ने संविधान के अनुच्छेद 344 और 351 की ओर आकर्षित करते हुए बताया कि राज्यों को हिन्दी के विकास के साथ राज्य की मातृभाषा का भी ध्यान रखना आवश्यक है। उन्होने 'शिक्षा का अधिकार अधिनियमÓ का उल्लेख करते हुए बताया कि इसमें प्राथमिक शिक्षा अपनी मातृभाषा में देने का प्रावधान है। उन्होनें बताया कि वर्तमान में 38 भाषाओं के मामले केद्र सरकार के पास लंबित है, लेकिन राजस्थानी, भोजपुरी और भोती भाषा के प्रस्ताव विधिवत राज्य सरकारों द्वारा भेजे गये है। भोती के लिए तो दो राज्य सरकारों ने प्रस्ताव भेजे हंै। अत: राजस्थानी, भोती और भोजपुरी भाषा को यथा शीघ्र संवैधानिक मान्यता प्रदान कर आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए।

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