बाड़मेर जलती तपती रेत से ओलंपिक तक पहुंचे खेता राम
बाड़मेर
आजादी के छह दशक बाद भी रेगिस्तानी बाड़मेर जिले का यह गांव अब तक सड़क से महरूम है लेकिन अब सिहागों के तला गांव के खेता राम ने ओलम्पिक में अपना स्थान पक्का करके दुनिया का ध्यान इस इलाके की तरफ सींचा है. रविवार को मुबई मैराथन में भारतीय धावकों में तीसरे स्थान पर रहने के साथ ही पश्चिमी राजस्थान के सीमावर्ती बाड़मेर जिले से करीब 120 किलोमीटर दूर रेतीले धोरों के बीच बसे सिहागों का तला गांव के खेताराम इसी साल अगस्त में ब्राजील के रियो डि जनेरियो में होने वाले ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करेगा.
ओलंपिक के लिए अपना स्थान पक्का करने के बाद सोमवार को खेताराम का अपने घर पहुंचने पर गांववालों और परिवारजनों ने स्वागत किया. स्कूली दिनों से ही खेताराम स्कूली स्तर पर होने वाले खेल-कुद प्रतियोगिताओं भाग लेता रहता था लेकिन अभावों में पले-बढ़े खेताराम ने कभी नहीं सोचा था कि वो कभी ओलंपिक तक पहुंचेगा.
बचपन में पिता के साथ खेतीबाड़ी का काम करते हुए खेतों में दौड़ते-दौड़ते खेताराम स्वभाविक रूप से ही इस दिशा में मुड़ गया. पिता के साथ इतने संसाधन नहीं थे कि उसे बाहर पढ़ने भेज सके. लिहाजा, खेताराम ने गांव के स्कूल से ही अपनी शिक्षा पूरी की. खेताराम ने 2004 में सेना में नौकरी हासिल कर ली.
पांच भाई-बहिनों में खेताराम सबसे बड़ा है और उसकी कमाई पर ही पूरे परिवार का गुजर बसर चलता है. उसके दो भाई खेती का काम करते है और एक भाई आठवीं में पढ़ता है.
अभी ओलंपिक की तैयारियों में जुटे खेताराम ने बताया कि उसकी पगार को बड़ा हिस्सा उसकी तैयारियों पर खर्च हो जाता है, जिसके कारण घर का खर्च उठाना भारी पड़ रहा है. बकौल, खेताराम कम आमदनी के कारण उसकी बेटियां भी गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ रही है. खेताराम ने कहा ‘‘मेरा एक ही लक्ष्य है कि देश के लिए दौड़ना और पदक जीतना.’’

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