बाबा रामदेव जी को क्यों कहते हैं पीरों का पीर?
जैसलमेर।

बाबा रामदेवजी राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवता हैं। रूणीचा (जैसलमेर) में बाबा का विशाल मंदिर है जहां दूर-दूर से श्रद्धालु उन्हें नमन करने आते हैं। रामदेवजी सामुदायिक सद्भाव तथा अमन के प्रतीक हैं।

बाबा का अवतरण वि.सं. 1409 को भाद्रपद शुक्ल दूज के दिन तोमर वंशीय राजपूत तथा रूणीचा के शासक अजमलजी के घर हुआ। उनकी माता का नाम मैणादे था। बाबा का संबंध राजवंश से था लेकिन उन्होंने पूरा जीवन शोषित, गरीब और पिछड़े लोगों के बीच बिताया। उन्होंने रूढ़ियों तथा छूआछूत का विरोध किया।
भक्त उन्हें प्यार से रामापीर या राम सा पीर भी कहते हैं। बाबा को श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है। वे हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक भी माने जाते हैं। भक्तों का उनके प्रति समर्पण इतना है कि पाकिस्तान से मुस्लिम भक्त भी उन्हें नमन करने भारत आते हैं।
कुछ विद्वान मानते हैं कि बाबा का अवतरण वि.सं. 1409 में उडूकासमीर - बाड़मेर में हुआ। उन्होंने रूणीचा में समाधि ली थी, लेकिन बाबा के भक्तों के लिए इतिहास की इन तिथियों से ज्यादा उनकी कृपा महत्वपूर्ण है। आज भी यहां के शुभ कार्य बाबा के पूजन के बिना अधूरे हैं।

कहा जाता है कि जब रामदेवजी के चमत्कारों की चर्चा चारों ओर होने लगी तो मक्का (सऊदी अरब) से पांच पीर उनकी परीक्षा लेने आए। वे उनकी परख करना चाहते थे कि रामदेव के बारे में जो कहा जा रहा है, वह सच है या झूठ?

- कभी न रोकें शरीर की ये इच्छाएं, वर्ना भुगतेंगे बुरे परिणाम

बाबा ने उनका आदर-सत्कार किया। जब भोजन के समय उनके लिए जाजम बिछाई गई तो एक पीर ने कहा, हम अपना कटोरा मक्का में ही भूल आए हैं। उसके बिना हम आपका भोजन ग्रहण नहीं कर सकते। इसके बाद सभी पीरों ने कहा कि वे भी अपने ही कटोरों में भोजन करना पसंद करेंगे।

रामदेवजी ने कहा, आतिथ्य हमारी परंपरा है। हम आपको निराश नहीं करेंगे। अपने कटोरों में भोजन ग्रहण करने की आपकी इच्छा पूरी होगी।

- क्या 28 सितंबर के बाद फिर आ सकता है भूकंप?

यह कहकर बाबा ने वे सभी कटोरे रूणीचा में ही प्रकट कर दिए जो पांचों पीर मक्का में इस्तेमाल करते थे। यह देखकर पीरों ने भी बाबा की शक्ति को प्रणाम किया और उन्होंने बाबा को पीरों के पीर की उपाधि दी।

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें

 
HAFTE KI BAAT © 2013-14. All Rights Reserved.
Top