महिला के साथ होने वाले अत्याचार का विरोध परिवार करें - जैन
झुंझुनू, 
राजस्थान राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष लाड कुमारी जैन ने कहा है कि किसी परिवार में यदि महिला के साथ अत्याचार होता है, तो उसका विरोध उस परिवार को करना चाहिए, ताकि अत्याचार करने वाले की ऐसा करने की दूबारा हिम्मत नहीं हो। उन्होंने कहा कि जिस घर में किसी बेटे द्वारा अपनी पत्नी पर अत्याचार किया जाता है और उसकी मां यह कह देगी कि अगर तूने बहू पर दूबारा हाथ उठाया, तो घर से बाहर निकाल दूंगी, तो बेटे की इतनी हिम्मत नहीं होगी कि वह दूबारा अपनी पत्नी के साथ बदसलूकी कर सकें। उन्होंने कहा कि महिला अत्याचार एक गंभीर समस्या है और इसका समाधान परिवार मिलकर ही कर सकता है। अगर घर के लोग तय कर ले कि बहूं के साथ हिंसा नहीं होने दी जाएगी, तो कभी हिंसा नहीं होगी और यदि हिंसा हो रही है, तो यह तय है कि उस घर के सदस्य भी उसमें शामिल है। वे आज सूचना केन्द्र सभागार में आयोजित महिला जनसुनवाई कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रही थी।
उन्होंने कहा कि घरों में अलग-अलग मुद्दों को लेकर महिलाओं पर अत्याचार होता है। महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए घरेलू हिंसा से महिला सुरक्षा अधिनियम 2005 पारित किया गया था, किन्तू उसका सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है, जिससे इस कानून का फायदा महिलाओं को नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने इस कानून के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए बताया कि यह कानून इतना सीधा और सरल है कि 60 दिन में किसी महिला अत्याचार संबंधित मामले को निपटा सकता है, लेकिन ईमानदारी से इसका पालन नहीं हो पा रहा है। उन्होंने बताया कि इस कानून के तहत सबसे पहले संरक्षण अधिकारी को घरेलू ंिहंसा घटना की रिपोर्ट देनी होती है, जिस रिपोर्ट को मजिस्टे्रट के सामने पेश करने के बाद मजिस्टे्रट तीन दिन में नोटिस जारी करते है, लेकिन उसके बाद की प्रकिया पुलिस की लापरवाही के कारण जटिल हो जाती है, क्योंकि पुलिस उस नोटिस को 6-6 महिने तक सर्व नहीं करती है, जबकि कानून के अनुसार 60 दिन में तो मामला ही निपटाना होता है।
उन्होंने उपस्थित पुलिस अधीक्षक कुंवर राष्ट्रदीप से कहा कि वे यह सुनिश्चित करें कि हर थाने में यह सूचना हो कि उस क्षेत्र का संरक्षण अधिकारी कौन है। ऐसा नहीं होने पर पीडित महिला को एडवोकेट की सेवा लेनी पड़ती है, जहां उसका धन एवं समय दोनों खर्च होते है। इस अधिनियम की महत्ता पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि इस अधिनियम में ना एफआईआर है, ना ही फीस का कोई प्रावधान है। उन्होंने बताया कि यह कानून सभी महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाया गया है। फिर चाहे वो विवाहित हो, अविवाहित हो या लिव इन रिलेशन में रह रही हो। इस कानून में सिंगल विण्डों सिस्टम है, ताकि महिला को न्याय के लिए इधर-उधर नहीं भटकना पड़े।
इससे पहले 60 महिलाओं ने अपने मामले पंजीयन करवाएं। महिला आयोग की अध्यक्ष, आला पुलिस अधिकारी, जिला कलेक्टर एवं संबंधित अधिकारियों की उपस्थिति में इन 60 मामलों की सुनवाई की गई तथा प्रत्येक मामले में संबंधित अधिकारी को आगे की कार्यवाही के निर्देश जारी किए गए। इससे पूर्व जैन ने कहा कि आईपीसी की धारा 498 ए का संबंध सिर्फ दहेज से नहीं है, लेकिन पुलिस तथा आमजन इस तथ्य से अनभिज्ञ है। उन्होंने बताया कि किसी भी मामले में महिलाओं पर अत्याचार होता है, तो वहां पर आईपीसी की धारा 498 ए के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है।
उन्होंने सभी महिला पर्यवेक्षको, सीपीडीओ, पीओ को निर्देश दिए कि वे पहले इस कानून के बारे में खुद समुचित जानकारी प्राप्त करें, ताकि वे पीडितों को न्याय दिलवाने में बेहतर भूमिका निभा सके। जनसुनवाई कार्यक्रम में जिला कलेक्टर डॉ. आरूषी मलिक, जिला पुलिस अधीक्षक कुंवर राष्ट्रदीप, महिला आयोग की सदस्या दमयंती बाकोलिया एवं लता प्रभाकर, महिला आयोग के सदस्य सचिव दिनेश शर्मा, अतिरिक्त जिला कलेक्टर, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, एसडीएम झुंझुनू, महिला एवं बाल विकास विभाग के उपनिदेशक सहित महिला पर्यवेक्षक, प्रचेता, पीडित महिलाएं तथा संबंधित विभागीय अधिकारी मौजूद थे।

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