आप और कांग्रेस से आगे बढ़ा है भाजपा का जनाधार

जैसलमेर 
अभी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं है । लेकिन दिल्ली की विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीत कर आए आप पार्टी के अरविन्द केजरीवाल आज जरूर दिल्ली के मुख्यमंत्री बने हैं लेकिन देश के प्रधानमंत्री पद का लक्ष्य शायद उनका भी अभी न हो । लेकिन देश की जनता जैसे एक हवा के रूप में यह मानना भी पसन्द कर ले कि अगले प्रधानमंत्री वे ही होंगे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, लेकिन यह राजनीति में अभी शुरूआत है ।
अभी तो आप पार्टी को सदन में विश्वास मत भी हासिल करना है जिसके लिए एक सप्ताह का समय मंथन करने के लिये होगा कांग्रेस के लिये जरा मुश्किल लग सकता है क्यों कि उसके एक तरफ कुआ है तो दूसरी तरफ खाई है । कांग्रेस ने आप को समर्थन देकर दिल्ली की जनता के लिये तो एक अच्छा कदम उठाया है लेकिन आप इस कदम को भुनाने की कोशिश करेगी । क्यों कि आप ने उनसे समर्थन मांगा नहीं था बल्कि आप द्वारा खुला निमन्त्रण पाकर उसने पहल जरूर की है । इस पहल के पीछे कांग्रेस की सोची समझी चाल भी हो सकती है क्यों िक उसे तो 60 सालों का राजनीतिक अनुभव है । कांग्रेस की नीति रही होगी कि समर्थन देकर, आप की सरकार बनाकर, एक संवैधानिक संकट से जनता को निकाल कर, उस पर दुबारा चुनाव का बोझ न डाल कर एक माहौल अपने पक्ष में बना लेगी तो उसमें जनता की सहानुभूति कांग्रेस के प्रति जरूर रहेगी कि उसने एक अनावश्यक चुनाव हाल फिलहाल टाल दिया ।
राजनीतिक चिन्तक, विश्लेषक सोचते हैं कि आखिर यह सब हुआ कैसे ? आखिर देश में कांग्रेस विरोधी लहर चली थी । आप ने भी कांग्रेस विरोधी मोर्चा खोल रखा था । पिछले आंदोलनों में प्रहार कांग्रेस सरकार पर ही था । केन्द्र में कांग्रेस की सरकार है और दिल्ली में कांग्रेस की सरकार थी । दोनों के खिलाफ आंदोलन हुए । न सोनिया मिली, न शीला मिली और न ही मनमोहन मिला । सभी मौन रहे, पर इनका आन्दोलन दूरगामी सोच लेकर चलता रहा । जिससे सभी दल अनभिज्ञ थे या उस आन्दोलन की आग महसूस नहीं की । अब सभी दल नई रणनीति में लगे होंगे कि आगामी लोकसभा चुनाव में आप पार्टी कहीं अडंगा न लगा दे ।
सोमवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल पानी के विषय में एक महत्वपूर्ण फैसला लेने वाले हैं । जो कि इनके घोषणा पत्र में सर्वोपरी है, सभी दिल्ली वासियों को प्रतिदिन 700 लीटर मुफ्त पानी देने का जो वायदा किया था, शायद वह पूरा हो जाये । आज की पहली केबिनेट की बैठक में यह निर्णय सुनाया गया । .....फिर बिजली बिल की राशि आधी करने के वादे का भी नम्बर आयेगा । फिर जनलोकपाल का वादा पूरा करने के लिये केन्द्र सरकार तक बात पहुंचेगी । यह सब नीतिगत फैसले आप सरकार द्वारा लिये जायेंगे तो कहीं न कहीं बहुमत की जरूरत पड़ेगी तो फिर कांग्रेस का खेल शुरू होगा । इससे पहले विश्वास मत में भले ही कांग्रेस एक मौका दे दे, लेकिन आगामी योजना को ध्यान में रखकर कांग्रेस की यही नीति रहेगी कि आप को उसके ही घोषणा पत्र से जनता से दूर किया जाये ।
उधर आप चाहती है कि कांग्रेस ने समर्थन देकर अपना हाथ कटवा लिया है तो वे शायद भ्रम में होंगे कि यही कांग्रेस जो 60 सालों से राज कर रही है, भाजपा तक को केन्द्र से दूर रखा तो ये तो नौसिखियें है उनके आगे । अतिउत्साह में वे कहीं गलती कर बैठे तो फट से दबोच लेंगे ये आप को । आप सोचती होगी कि कांग्रेस के समर्थन से वे अपने वादों को पूरा कर पायेंगे तो यह जरा मुश्किल होगा क्यों कि राजनीति में कोई किसी को आगे बढ़ने का मौका कम ही देता है । फिर ये तो सत्ता का सवाल है । आप सोचती होगी कि यदि विश्वास मत कांग्रेस ने गिरा दिया तो वे उसकी जिम्मेदारी कांग्रेस पर डाल देंगे । यदि जनहित के मामलों में साथ नहीं दिया तो जनता तक इस संदेश को ले जायेंगे ।..... तरह तरह के कयास हो सकते हैं । लेकिन फिलहाल तो दिल्ली में आप की सरकार आ ही गयी ।
दिल्ली में आप की सरकार बनने का मतलब यह कतई नहीं कि आप पार्टी पूरे देश में छा गई । अभी तक यह क्षेत्रीय स्तर तक का ही प्रोगाड़ाम बना है । आगामी मई माह में चुनाव हैं तब तक तो आप को दिल्ली से ही फुर्सत नहीं मिलेगी और इस पूरे खेल में कहीं भाजपा आगे न निकल जाए क्योंकि भाजपा के प्रधानमंत्री के दावेदार नरेंद्र मोदी अरविंद केजरीवाल से कहीं ज्यादा अनुभवी और जनता के प्रिय है । वे चार बार गुजरात के मुख्यमन्त्री बने और हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में मोदी लहर ने

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