राजस्थानी साहित्यकार देथा का निधन 
जयपुर।
राजस्थानी साहित्यकार विजयदान देथा का रविवार सुबह उनके पैतृक गांव बारूंदा में निधन हो गया। उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। 90 वर्षीय देथा ने राजस्थानी लोककथाओं में प्रचलित कहानियों को एन नया आयाम दिया था। पूरे जीवन में करीब 800 से भी अधिक लघुकथाएं लिखने वाले देथा की कृतियों का अंग्रेजी व अन्य भाषाओं में भी अनुवाद किया गया।

बारूंदा गांव रही कर्मस्थली

लोक कथाओं एवं कहावतों का अदभुत संकलन करने वाले पदमश्री विजय दान देथा की कर्मस्थली उनका पैतृक गांव बारूंदा ही रहा तथा एक छोटे से गांव में बैठकर उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के साहित्य का सृजन किया। राजस्थानी लोक संस्कृति की प्रमुख संरक्षक संस्था रूपायन संस्थान जोधपुर के सचिव देथा का जन्म एक दिसम्बर 1926 को बारूंदा में हुआ। उन्होंने एम.ए. पूर्वार्द्ध तक शिक्षा प्राप्त की। देथा को बिज्जी के प्रचलित नाम से अधिक जाना जाता है। 

बातां री फुलवारी पुरस्कृत

देथा की राजस्थानी में चौदह खड़ों में प्रकाशित बातां रीफुलवाड़ी के दसवें खण्ड को भारतीय राष्ट्रीय साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत किया गया जो राजस्थानी कृति पर पहला पुरस्कार है। उनकी अन्य प्रकाशित कृतियों में राजस्थानी हिन्दी कहावत कोश, साहित्य और समाज, प्रेमचन्द्र के पात्र, दुविधा और अन्य कहानियां, उलझन, अलेखूं हिटलर तथा रूंख प्रमुख है।

कई पत्रिकाओं का करा संपादन

प्रारम्भ में 1953 से 1955 तक बिज्जी ने हिन्दी मासिक पे्ररणा का सम्पादन किया। बाद में हिन्दी त्रैमासिक रूपम, राजस्थानी शोध पत्रिका परम्परा, लोकगीत, सन 1800 से 1900 के बीच ब्रिटिश विरोधी कविताआं के ऎतिहासिक मूल्यांकन पर आधारित गोरा हट जा, राजस्थान के प्रचलित प्रेमाख्यान का विवेचन जैठवै रा सोहठा तथा कोमल कोठारी के साथ संयुक्तरूप से वाणी और लोक संस्कृति का सम्पादन किया। 

कहानियों पर बनी 24 से ज्यादा फिल्में

उनकी लिखी कहानियों पर 24 से अधिक फिल्में बन चुकी है जिनमें मणि कौल द्वारा निर्देशित दुविधा को कई राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। इसके अलावा वर्ष 1986 में उनकी कथा पर प्रकश झा द्वारा निर्देशित फिल्म परिणति काफी लोकप्रिय हुई है। राजस्थान साहित्य अकादमी 1972-73 में उन्हें विशिष्ट साहित्यकार के रूप में सम्मानित कर चुकी है।

गहलोत की देथा के निधन पर संवेदना 

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने साहित्यकार विजयदान देथा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। गहलोत ने अपने संवेदना संदेश में कहा कि देथा ने लोक एवं वाचिक परम्परा को आगे बढ़ाने के साथ ही राजस्थानी कथा साहित्य में अभूतपूर्व योगदान दिया। उन्होंने कहा कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त बातां री फुलवारी सहित उनकी अनेक लोकप्रिय कथाओं में राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत जनजीवन की गहरी झलक दिखाई पड़ती है। 

साहित्य जगत में बिज्जी के नाम से लोकप्रिय देथा के योगदान को सदैव याद किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि उनके देथा से आत्मीय संबंध रहे। जोधपुर जिले के बारूंदा गांव में रहकर भी उन्होंने विश्वकथा साहित्य में अपनी सृजनशीलता का अनुकरणीय परिचय दिया। गहलोत ने दिवंगत की आत्मा की शांति तथा शोक संतप्त परिवारजनोंं को यह आघात सहने की शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना की।

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