"आधार"पर सुप्रीमकोर्ट की मार,घबराई सरकार 

नई दिल्ली।
 केंद्र सरकार ने सुप्रीमकोर्ट में एक याचिका दायर करके उससे आधार कार्ड से संबंधित अपने आदेश में संशोधन करने का आग्रह किया है। मुख्य न्यायाधीश पी. सदाशिवम की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने केंद्र सरकार की याचिका की सुनवाई के लिए आठ अक्टूबर की तारीख मुकर्रर की। 

न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि वह इस मामले में केंद्र सरकार का पक्ष अगली सुनवाई को सुनेगा। इससे पहले केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल मोहन परासरन ने दलील दी कि अनिवार्य सेवा के लिए आधार कार्ड की अनिवार्यता समाप्त करने संबंधी न्यायालय का गत 23 सितम्बर का फैसला सरकार की विभिन्न योजनाओं में बाधा पहुंचाएगी। उन्होंने न्यायालय से आग्रह किया कि वह अपने इस आदेश में संशोधन करे ताकि केंद्र सरकार को अपनी महत्वपूर्ण योजनाओं को अंजाम देने में किसी तरह की दिककत न आए।

उल्लेखनीय है कि न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि नागरिकों को आवश्यक सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए आधार कार्ड अनिवार्य नहीं है। न्यायाधीश बी एस चौहान और न्यायाधीश एस ए बोव्डे की खंडपीठ ने कहा था कि केंद्र और राज्य सरकारें नागरिकों को आवश्यक सेवाएं उपलब्ध कराने से पहले आधार कार्ड प्रस्तुत करने के लिए जोर नहीं दे सकतीं। केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों ने विवाह पंजीकरण, वेतन भुगतान और भविष्य निधि जैसी विभिन्न सार्वजनिक सेवाओं के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य करने पर जोर दिया था, लेकिन न्यायालय ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। 

खंडपीठ ने यह व्यवस्था कर्नाटक उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश केएस पुत्तास्वामी की ओर से दायर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान दी है। याचिकाकर्ता ने इस योजना के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की भी मांग की थी। न्यायाधीश पुत्तास्वामी ने आधार कार्ड योजना की वैधता को भी चुनौती दी है। याचिकाकर्ता की दलील थी कि सरकार इस परियोजना को ऎच्छिक परियोजना करार दे रही है, लेकिन वास्तविकता में ऎसा नहीं है। आधार कार्ड को विवाह पंजीकरण आदि के लिए अनिवार्य किया जा रहा है, जो उचित नहीं है। केंद्र सरकार ने अपने जवाबी हलफनामे में यह स्वीकार किया था कि उसने आधार कार्ड परियोजना को ऎच्छिक परियोजना करार दिया था।

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