मृत्यु के भय से बचने का उपाय है संयम्- साध्वी प्रियरंजनाश्री
बाड़मेर। 
थार नगरी बाड़मेर में चातुर्मासिक धर्म आराधना के दौरान स्थानीय श्री जिनकांतिसागरसूरि आराधना भवन में साध्वीवर्या प्रियरंजनाश्री म.सा. ने अपने प्रवचन में कहा कि आज नवपद की आराधना के आठवें पद का विषय आचरण करने वालों से सम्बन्धित है। आज सम्यक् चरित्र पद की आराधना का प्रसंग है। चरित्रहीन पुरूष के लिए अनेक शास्त्रों का अध्ययन क्या लाभ दे सकता है? क्योंकि जो आंखों से अंधा है, उसके सामने यदि लाखों दीपक जलाकर रख दो तब भी उसे मार्ग देखने में वे कुछ भी सहायता नहीं कर सकते। इसी प्रकार चरित्रहीन व्यक्ति केवल शास्त्रीय ज्ञान का भार ढोता है, ज्ञान का लाभ उसके जीवन में नहीं मिल सकता। जैसे ज्ञान का कार्य है प्रकाश करना, वैसे ही चारित्र का कार्य है शुद्धि करना। ज्ञान सूर्य है, चारित्र जल है। जल-जल करने से क्या कभी प्यास बुझती है? नदी को देखने से प्यास नहीं बुझती, प्यास बुझती है पानी पीने से। इसी प्रकार चाहे जितने शास्त्र पढ़ लो, आचरण के बिना उसका लाभ नहीं मिल सकता। ज्ञान को व्यवहार में उतारने का नाम ही चारित्र है। इसे ही आचार कहा जाता है।
साध्वी श्री ने कहा कि आठ कर्मों का नाश करना है तो आठवां पद चारित्र की आराधना करो। इस चारित्र की आराधना से भव-भव से मुक्ति मिलेगी। भव यानि जन्म-मरण। संसार में सबसे बड़ा भय है जन्म-मरण का। जो जन्म लेगा उसे मरना ही पड़ेगा और मरने से प्रत्येक प्राणी डरता है। मृत्यु के समान दूसरा कोई भय नहीं है। वैज्ञानिकों ने शोध करके प्रयोग करके बताया है कि मृत्यु का भय केवल मनुष्य, पशु-पक्षी, चींटी आदि प्राणियों में ही नहीं, परन्तु वनस्पति में भी मृत्यु भय है, तो हम प्रतिदिन प्रतिक्षण देखते हैं कि संसार में सबसे बड़ा भय मृत्यु का है। इस मृत्यु से बचने का कोई उपाय है तो वह है संयम्। संयम्-चरित्र ही एक ऐसी महान् औषधि है जो हमें जन्म-मरण के भय से मुक्त कर सकती है। चारित्र की क्रिया ही वह संजीवनी है जिसके स्पर्श से भव-भव की पीड़ा मिट सकती है।
जब तक आत्मा में चारित्र की स्पर्शना नहीं होती, मुक्ति नहीं हो सकती। चारित्र ही ऐसी शक्ति है, जो हमें अमरता के राजमार्ग पर ले जाकर अमरता की मंजिल तक पहुंचाता है, बिना चारित्र के आज तक कोई आत्मा मोक्ष में नहीं गई।
यह संसार बुढ़ापा और मृत्यु की आग में जल रहा है, आग लगी है, धधक रहा है यह संसार। मौत की ज्वालाएं सबको भस्म कर रही है। इस मृत्यु रूपी आग से ये अपनी आत्मा को निकालने का एक ही मार्ग है चारित्र। संयम्, चारित्र लेकर तप-ध्यान द्वारा मृत्यु को जीत सकते हैं। उपनिषद् की भाषा में कहूं तो ब्रह्मचर्य और तप के द्वारा ही इस मृत्यु को जीता जा सकता है।
साध्वी प्रियशुभांजनाश्री ने कहा कि चारित्र पद चिंतामणि रत्न है और उसके सामने राजपद, चक्रवर्ती पद यह सब कांच के टुकड़े हैं।
इस संसार का सार है धर्म, धर्म का सार है सम्यक् ज्ञान, सम्यक् ज्ञान का सार संयम् और संयम् का सार है निर्वाण। यदि निर्वाण पाना है, जन्म-मृत्यु के भवों से मुक्ति पाना है तो चारित्र पद की आराधना करती होगी। चारित्र ग्रहण करना ही होगा। चारित्र पाने हेतु पाप का पीरियड, पाप का इन्स्ट्रूमेंट, पाप का एरिया, पाप की कैपेसिटी कम करो।
खरतरगच्छ जैन श्री संघ के अध्यक्ष मांगीलाल मालू व उपाध्यक्ष भूरचन्द संखलेचा ने बताया कि पूज्य साध्वीवर्या के पावन सानिध्य में शाश्वत नवपद ओली की आराधना करवाने का सम्पूर्ण लाभ अरटी वाले हेमराज आदमल संखलेचा परिवार ने लिया। लाभार्थी परिवार का संघ द्वारा तिलक, माला, साफा, चुनरी, श्रीफल से बहुमान किया गया। इस अवसर पर डाॅ. रणजीतमल जैन का भी संघ द्वारा बहुमान किया गया।

इस अवसर पर शंकरलाल धारीवाल, मांगीलाल मालू, भूरचन्द संखलेचा, शंकरलाल गोलेच्छा, जगदीश बोथरा, बंशीधर बोथरा, मेवाराम मालाणी, नेमीचन्द बोथरा, पारसमल सेठिया, सोहनलाल संखलेचा, मेवाराम संखलेचा, मोहनलाल संखलेचा, मोहनलाल मालू, मांगीलाल छाजेड़, पारसमल मेहता, खेतमल तातेड़, केवलचन्द छाजेड़, रमेश मालू, राजेन्द्र वडेरा, प्रकाश पारख, नरेश लुणिया सहित सैकड़ों लोग उपस्थित थे।

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