शाश्वत नवपद ओली की महिमा अपरम्पार है- साध्वी प्रियरंजनाश्री
बाड़मेर।
थार नगरी बाड़मेर में चातुर्मासिक धर्म आराधना के दौरान स्थानीय श्री जिनकांतिसागरसूरि आराधना भवन में साध्वीवर्या प्रियरंजनाश्री म.सा. ने अपने प्रवचन में कहा कि आज से नवपद ओली प्रारम्भ हो रही है। यह ओली एक वर्ष में दो बार आती है। यह समय शरद और बसंत ऋतु स्वभाविक रूप से मोह के अनुकूल होता है। प्रकृति का वातावरण अत्यंत मादक और मोहक हो जाता है। इससे विषयाभिलाषी जीव इन्द्रियों को पूरे वेग से अपनी ओर आकर्षित करने को प्रयासरत रहता है। फलस्वरूप इन्द्रियां असंयमित हो जाती हैं। अतएव ऐसे समय में इन्द्रियों को संयमित करने एवं मोह पर विजय पाना आवश्यक है।

साध्वी श्री ने कहा कि चैत्र मास अनेक शारीरिक रोगों को जन्म देने वाले होते है। प्रायः रोगों की उत्पत्ति में प्रथम कारण अजीर्ण होता है। इसलिये आहार और निहार पर नियंत्रण रखना नितांत आवश्यक है। वस्तुतः इन दोनों पर नियंत्रण रखने वाला मनुष्य ही रोगों का शिकार नहीं होता।

इन दिनों में शरीर में वात पित्त कफ की प्रबलता हो जाती है। फलस्वरूप शरीर अनेक रोगों से आक्रान्त हो जाता है। इसलिये आसोज चैत्र मास की शाश्वत ओली में श्री सिद्धचक्र नवपद की आराधना में आराधक के लिये दिवस में मात्र एक ही बार रूखा भोजन रूप महामंगलकारी आयम्बिल तप करने का निर्देश महापुरूषों ने दिया है। नवपद आराधना में देव, गुरू और धर्म तीनों का समावेश है।

प्रथम दिन अरिहंत परमात्मा की आराधना की जाती है। अरिहंत बनने वाली भव्य आत्माएं अपने पूर्व भवों में आत्माराधना, आत्म साधना एवं आत्मोपासना के द्वारा सम्यकत्व को प्रकट कर अपना संसार सीमित कर लेती है। विश्व के सभी जीव दुःख से मुक्त हो जाये, इस उत्तम भावना से तथा विश्व के सभी जीवों को शासन का रसिक बना दूं, धर्म मार्ग से जोड़ दूं, ऐसी भावना रहती है।

अरिहंत परमात्मा जहां विचरण करते हैं वहां प्रायः रोग, अतिवृष्टि, अनावृष्टि एवं दुर्भिक्ष आदि नहीं होते हैं। अरिहंत भगवान भूत, भविष्य, वर्तमान काल के समस्त भावों को देखते जानते हैं। अरिहंत भगवान सर्वपूज्य जिनकी पूजा, वंदन, स्तुति स्तवना राजा बलदेवादि, देवता इन्द्रादि करते हैं। अरिहंत भगवान की वाणी को देव, मनुष्य और तिर्यंच अपनी-अपनी भाषा में समझ लेते हैं।

अरिहंत भगवान 34 अतिशय युक्त होते हैं। अरिहंत भगवंत भव समुद्र में महानिर्यामक, भवाटनी में महासार्थवाह, अहिंसा के प्रचारक होने से महामाहण, सभी की रक्षा करने वाले होने से महागोय हैं।

नवपद की आराधना श्रीपाल राजा एवं मयणा सुंदरी ने की। उनका कुष्ठ रोग नवपद की आराधना से चला गया। यदि आप आज भी उतनी आस्था से करेंगे तो आपको भी निश्चित लाभ मिलेगा। सर्व उदय होगा तो अंधकार दूर होगा ही। जल पियेंगे तो प्यास बुझेगी ही। भोजन पेट में जायेगा तो भूख मिटेगी ही। अनेक भाग्यशालियों को आज भी अचिंतनीय लाभ प्राप्त होता है।

साध्वी प्रियशुभांजनाश्री ने कहा कि आठ प्रकार के कर्म जीव के मुख्य शत्रु हैं। राग, द्वेष, कषाय और मोह ये आत्मा के सद्गुणों का नाश करने वाले हैं। ज्ञान, दर्शन जैसी स्वाभाविक परम शक्तियों को ढकने वाले हैं। हमारे शरीर में दो प्रकार की विद्युत है। एक आकर्षण जो ब्राह्मण व्यापी ऊर्जा को भीतर खींचती है जिससे प्राण शक्ति बढ़ती है। दूसरी विकर्षण विद्युत, यह भीतर के रोग एवं दूषित तत्वों को जलाती है, बाहर फेंकती है। इसी प्रकार राग, द्वेष की वृत्तियां सद्गुणों को चलाती है। अशुभ कर्म परमाणुओं को आकर्षित कर आत्मा को भारी बनाती है। जन्म-मरण की परम्परा को बढ़ाती है। आत्मा संसार में जन्म-मरण करती है, परिभ्रमण करती है। राग और द्वेष के कारण ही यह संसार चक्र है। कर्म रूपी वृक्ष का बीज है राग और द्वेष। कहीं जीव राग के कारण बंधा है, कहीं द्वेष के कारण परस्पर संघर्ष और शत्रुता करता है। जिसने महाराग, महाद्वेष और महामोह तथा कषायों को नष्ट कर दिया है। वह हमारे देव हैं। अरिहंत भगवान का सबसे पहला लक्षण है- राग द्वेष मुक्त।

भगवान तो घट-घट में विराजमान है। कोई भी हृदय उससे खाली नहीं है, परन्तु सब हृदयों से वह प्रकट नहीं होता। बस प्रेम से, श्रद्धा से, भक्ति से जरा अपने भीतर झांकने की जरूरत है। इतने लीन हो जाइये के आपके हृदय दर्पण पर वह छवि चमकने लगे। आपकी भावनाओं में प्रभु का स्वरूप रम जाये और आंखों के सामने बस वही तस्वीर रहे, वही छवि झलकती रहे।

आज प्रवचन के पश्चात् उजमणा का उद्घाटन श्रीसंघ की उपस्थिति में हुआ। उसका उद्घाटन वर्द्धमान तप ओली की आराधक बहिनों के द्वारा किया गया। दोपहर 12.36 बजे नवपद पूजन का आयोजन हुआ। उसमें विधिकारक संगीतकार आर्केस्ट्रा पार्टी आदि सभी बाहर से पधारे। स्थानीय पण्डित उदयकुमारजी, संबोधि बालिका मण्डल, कुशल वाटिका महिला मण्डल एवं कुशल वाटिका बालिका मण्डल द्वारा पढ़ाई गई।

साध्वी श्री प्रियरंजनाश्री के विशेष उद्घोष एवं मांगलिक के मंत्रोच्चार से आज का कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। आज रात्रि में ठीक 8 बजे भक्ति संध्या का आयोजन भी रखा है।

इस अवसर पर खरतरगच्छ जैन श्री संघ के अध्यक्ष मांगीलाल मालू, उपाध्यक्ष भूरचन्द संखलेचा, महामंत्री नेमीचन्द बोथरा, जगदीश बोथरा, पारसमल मेहता, मोहनलाल मालू, मोहनलाल संखलेचा, बाबुलाल तातेड़, लूणकरण गोलेच्छा, मांगीलाल छाजेड़, रमेश मालू, खेतमल तातेड़, राजेन्द्र वडेरा, प्रकाश पारख, नरेश लुणिया, सुनील छाजेड़ सहित बड़ी संख्या श्रद्धालु उपस्थित थे।

कल बाड़मेर में प्रथम बार जयतिहूअण महापूजन होगा। 12 अक्टूबर शनिवार को महाप्रभाविक सिद्धचक्र महापूजन, 13 अक्टूबर रविवार को अठारह अभिषेक महापूजन, 14 अक्टूबर सोमवार को दादा गुरूदेव महापूजन का आयोजन किया जायेगा। इस महापूजन को विधिकारक हर्षद भाई अकोला एवं संगीतकार ज्ञानी एण्ड पार्टी द्वारा किया जायेगा। यह सभी कार्यक्रम आराधना भवन में आयोजित होंगे।

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