ट्रेडिशनल "करवा चौथ" हुआ स्टाइलिश 

जयपुर। करवा चौथ भी अब हाइप्रोफाइल होता जा रहा है। महिलाएं करवा चौथ व्रत के लिए खरीदारी में बजट की परवाह नहीं करतीं। बदले ट्रेंड के साथ बाजार में भी महिलाओं के चार्म के अनुसार उत्पाद नजर आने लगे हैं। अब महिलाएं करवा चौथ पर सजने संवरने के लिए ब्रांडेड कंपनियों के उत्पादों तरजीह देने लगी हैं। खासकर आभूषणों खरीदने का जैसे चलन ही निकल पड़ा है। अपने पति के सामने सुंदर दिखने की होड़ में वे रेंज की परवाह किए बिना लेटेस्ट डिजाइन के गहने और साडियां खरीदती हैं। महिलाओं के साथ साथ अब पुरूष भी अपनी पत्नी की खुशी को और बढ़ाने के लिए खुद उन्हें "सरप्राइज गिफ्ट" देने के लिए बाजारों का रूख करने लगे हैं।

22 अक्टूबर को पड़ेगा करवा चौथ व्रत

हिन्दू सनातन पद्धति में करवा चौथ सुहागिनों का महत्वपूर्ण त्योहार माना गया है। इस बार कार्तिक कृष्ण चतुर्थी पर करवा चौथ का व्रत 22 अक्टूबर को तृतीया युक्त रहेगा। मंगलवार को सुबह 7.07 बजे तक उदि्यात में तृतीया तिथि रहेगी। उसके बाद चतुर्थी तिथि शुरू होगी, जो बुधवार को रात्रि 8:52 बजे तक रहेगी। इसलिए मंगलवार को ही चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी होने से इस दिन यह व्रत रखा जाएगा। 

व्रत का सार,पति की दीर्घायू

इस पर्व पर सुहागिने अपने हाथों में महिलाएं हाथों में मेहंदी रचाकर,चूड़ी पहन व सोलह श्रंगार कर अपने पति की पूजा कर ब्रत का पारायण करती हैं। çस्त्रयां इस व्रत को पति की दीर्घायु के लिए रखती हैं। यह व्रत अलग-अलग क्षेत्रों में वहां की प्रचलित मान्यताओं के अनुरूप रखा जाता है, लेकिन इन मान्यताओं में थोड़ा-बहुत अंतर होता है। सार तो सभी का एक होता है पति की दीर्घायु। बदले जमाने के साथ अब कुछ पति भी अपनी पत्नी के साथ-साथ व्रत रखने लगे हैं। इसके पीछे उनकी सोच यह होती है कि जब पत्नी हमारे लिए व्रत कर सकती है तो हम भी क्यों न उसके लिए कुछ करें।

करवा चौथ व्रत की पूजन विधि

करवा चौथ की अवाश्यक पूज सामग्री पहले ही एकत्र कर लें। व्रत के लिए सुबह स्नान के बाद यह संकल्प मंत्र बोले 'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।' इसके साथ ही चौथ व्रत शुरू हो जाता है। दिन भर निर्जला रहना ही इस व्रत की विशेषता है। दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा का चित्र बनाए, इसे "वर" कहा जाता है। चित्र उकेरने को "करवा धरना" नाम दिया गया है। करवा चौथ के दिन आठ पूरियों की अठावरी और हलवा बनाएं, पक्के पकवान भी बने तो और अच्छा रहता है।

पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उसकी गोद में गणेशजी बैठी मुद्रा में बनाए। गौरी को लकड़ी के आसन पर विराजित करें तथा चुनरी भी ओढाएं। टिकी, बिंदी से और सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें। जल भरे लोटे को आसन के समीप रखें। जल अर्पण के लिए मिट्टी का बना करवा जिसमें एक टोटीनुमा जरूर हो। इस करवे में गेंहू के कुछ दाने तथा शक्कर का बूरा भर लें तथा ढक्कन पर कुछ दक्षिणा भी रखें। करवे पर रोली से स्वस्तिक का चिन्ह भी बनाएं। इसके बाद गौरी-गणेश और दीवार पर उकेरे गए करवे की परंपरानुसार पूजा करें, पति की दीर्घायु की कामना करें।

करवा पर 13 बिंदी रखें और गेंहू या चावल के दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा सुने औरों को भी सुनाए। कथा सुनने के बाद करवा हाथ में घुमाकर पति की मां के पैर छूकर आशीर्वाद ले तथा करवा उन्हें दे देवें। बाद में तेरह दाने गेंहू के और पानी का लोटा या टोंटी दार करवा अलग रख लें। रात में जब चांद निकले तो उसे छलनी की ओट से उसे निहारें तथा अर्ध्य दें। इसके बाद पति से आशीर्वाद ले, उन्हें भोजन कराएं और खुद भी भोजन करें।

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