जीवन में अनुबंध को सुधारना ही सच्ची साधना है- साध्वी प्रियरंजनाश्री
बाड़मेर। 
थार नगरी बाड़मेर में चातुर्मासिक धर्म आराधना के दौरान स्थानीय श्री जिनकांतिसागरसूरि आराधना भवन में प्रखर व्याख्यात्री मधुरभाषी साध्वीवर्या श्री प्रियरंजनाश्रीजी म.सा. ने अपने प्रवचन में कहा कि आज अनुबंध पदार्थ का विचार करना है। पुण्य और पाप के बंध के समान पुण्य और पाप का अनुबंध भी होता है। पुण्य और पाप के बंध के साथ-साथ व्यक्ति पुण्य और पाप के अनुबंधों को भी तैयार करता है। इनकी चतुर्भंगीइस प्रकार है- पापनुबंधी पाप- जब दुःखी व्यक्ति खराब प्रवृत्ति/दुष्ट क्रिया करते समय उसकी अनुमोदना करता है तो वह पाप का अनुबंध कर लेना है। जैसे कसाई, पशुओं की हिंसा करते समय यदि उसे प्रसन्नता की अनुभूति हो तो वह पाप का अनुबंध करता है। यह पापानुबंध भविष्य में उसे भयंकर दुःख और दुष्ट स्वभाव देने वाला है।
पुण्यानुबंधी पाप- दुःख और संकट के वातावरण में भी यदि व्यक्ति भीतर में शांति रखता है। क्रोधादि, कषाय नहीं करता तो वह पुण्य का अनुबंध करता है, जैसे संगम ग्वाले का जीव। इससे उसे भविष्य में महोदय की प्राप्ति होती है और व्यक्ति सज्जन, सदाचारी होता है।
पापानुबंधी पुण्य- जिस व्यक्ति के पास सुख की सामग्री हो और अधिक प्राप्त करने के लिये जो व्यक्ति अन्याय, अनीति, दुराचार करने के लिये तैयार हो ऐसा व्यक्ति पाप का अनुबंध करता है। आज के काल के ज्यादातर सुखी लोक इस भंग में आते हैं। आज का व्यक्ति सुख में आसक्त होकर सुख प्राप्ति के लिये चोरी, झूठ, हिंसादि आसानी से कर लेता है। ऐसे व्यक्ति भविष्य में महा दुःख के भोगी बनते हैं।
पुण्यानुबंधी पुण्य- जिनको पुण्योदय से सुख-सुविधा की समग्र सामग्री प्राप्त होने पर भी जो उनमें लुब्ध न होकर सज्जनता, नम्रता, दयालुता, प्रेम, सहिष्णुता, उदारता आदि अनेक गुणों के आगर होते हैं। ऐसे व्यक्ति पुण्य का अनुबंध करते हैं। तीर्थंकर परमात्मा, शालिभद्र, भरत चक्रवर्ती आदि इसके उदाहरण हैं।
संक्षिप्त में कहें तो बंध व्यक्ति को सुखी या दुःखी बनाता है। जबकि अनुबंध व्यक्ति को अच्छा या खराब, सज्जन या दुर्जन बनता है। अतः जीवन में अनुबंध को सुधारना ही जीवन की सच्ची साधना है।
गुरू गौतम स्वामी महापूजन सम्पन्न-
खरतरगच्छ जैन श्री संघ के अध्यक्ष मांगीलाल मालू एवं उपाध्यक्ष भूरचन्द संखलेचा ने बताया कि चैथे दादा गुरूदेव श्री जिनचन्द्रसूरि के चैथे शताब्दी वर्ष के उपलक्ष में त्रिदिवसीय कार्यक्रम का आयोजन पूज्य साध्वीवर्या प्रियरंजनाश्री की पावन निश्रा में आज से प्रारम्भ हुआ। आज प्रथम दिन अनंत लब्धि निधान गौतमस्वामी महापूजन का आयोजन रखा गया। जिसमें सभी श्रद्धालुओं अत्यंत हर्षोल्लास से महापूजन का लाभ व आनंद लिया। आरती, मंगल दीपक का लाभ बहिनों ने लिया।
महापूजन में माडणा को 108 कांच की गिलासों में दीपक की तरह सजाया गया। तिगड़े को फूल मालाओं से सजाया गया। विभिन्न मंत्रोच्चार एवं विधिकारक के निर्देशन में एवं संगीतकार की मधुर भजनों की स्वर लहरियों के मध्य बालिकाओं द्वारा नृत्य प्रस्तुत किये गये।
इस अवसर पर जगदीश बोथरा, बंशीधर बोथरा, पारसमल मेहता, शंकरलाल छाजेड़, खेतमल तातेड़, राजू भंसाली, पुरूषोत्तम मालू, घेवरचन्द, विक्रम धारीवाल सहित सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।
इसी कड़ी में 20 सितम्बर शुक्रवार को दोपहर 12.36 बजे ऋषि मण्डल महापूजन का आयोजन होगा।

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