नेमिनाथ परमात्मा का जन्म एवं दीक्षा दिवस मनाया
बाड़मेर। 
थार नगरी बाड़मेर में चातुर्मासिक धर्म आराधना के दौरान स्थानीय श्री जिनकांतिसागरसूरि आराधना भवन में प्रखर व्याख्यात्री साध्वीवर्या श्री प्रियरंजनाश्रीजी म.सा. ने चातुर्मास के बाइसवें दिन अपने प्रवचन में कहा कि ईष्र्या से अधःपतन होता है। ईष्र्यालु व्यक्ति की कातिल वृत्ति दूसरों की आराधना को तोड़ने में खतरनाक प्रवृत्तियां इस जीव के पास से करवाता है।
ईष्र्या क्षूद्रता के कारण अतःपतन, गुर्वाज्ञाभंग एवं सत्व का नाश होता है। सिंह गुफा वासी ने ईष्र्या की थी, स्थूलभद्रजी से अपना पतन तैयार कर लिया।
ईष्र्या का जहर अपने आपको समाप्त कर देता है। ईष्र्यालु व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में अपने से ज्यादा होती हुई प्रशंसा को सुन नहीं सकता।
तुच्छ शूद्र विचारों से महामूल्य मानव जीवन की प्रत्येक पल ईष्र्या के कारण ज्यादा से ज्यादा अशांत बना देता है। क्षुद्र व्यक्ति मन से गरीब होता है। क्षुद्र व्यक्ति मात्र वर्तमान को देखता है। उसके परिणाम तक नहीं पहुंच सकता है। इसलिये उसकी प्रत्येक दुःखों को आमंत्रित करती है।
क्षुद्रता दूसरों का नुकसान करे या नहीं करे, परन्तु अपने आपके जीवन को बर्बाद किये बिना नहीं रहती है। उसे न तो प्रेम मिलता है, न वात्सल्य मिलता है, न ही आदर मिलता है और न ही सहृदयता मिलती है। ऐसी परिस्थिति में जिंदगी कैसे बितायें। इस दुनिया में मानव पानी और भोजन के बिना फिर भी कुछ दिन जीवित रह सकता है। परन्तु हवा के बिना जीना बहुत कठिन है। फिर भी प्राणायाम आदि का अभ्यास होने से हवा बिना भी कदाचित् कुछ दिन निकाल देगा, परन्तु प्रेम बिना, मैत्री बिना इस दुनिया में व्यक्ति एक क्षण भी कैसे जी सकता है?
लेकिन क्षुद्र व्यक्ति पत्थर जैसी जिंदगी भी जी सकता है। उसे इस दुनिया में दो तत्वों पर विशेष राग होता है- काम वासना और अर्थ वासना। कहते हैं कि काम वासना तो कुछ समय तक ही रहती है परन्तु अर्थ वासना तो चैबीस घंटे जीती जागती रहती है।
दुःखों को दूर करने के उपाय करने के बाद भी ये दुःख जायेंगे या नहीं यह निश्चित नहीं है। जबकि इसको दूर करने के लिए पाप का रास्ता लेंगे तो उसके भयंकर फल अवश्य भोगने पड़ेंगे।
क्षुद्र व्यक्ति की दृष्टि दीर्घ दृष्टि नहीं होती है। उसे अभी की ही चिंता होती है। उतनी चिंता उसे आगे की नहीं होती है।
नेमिनाथ परमात्मा का जन्म एवं दीक्षा दिवस मनाया-
आज जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ का जन्म एवं दीक्षा दिवस होने से सामूहिक आयम्बिल तप की आराधना का आयोजन रखा। उसके साथ ही ‘आओ प्रभु से बात करें’ इस विषय पर काफी अच्छी संख्या में भाग लिया। सभी श्रद्धालुओं ने अपने विचार प्रस्तुत किये।
साध्वी श्री ने परमात्मा के जीवन पर विस्तृत प्रकाश डाला। महापुरूषों के जीवन की छोटी सी घटना भी हमें प्रभावित कर सकती है। नेमिनाथ परमात्मा ने पशुओं पर करूणा करके उन्हें बंधन से मुक्त किया और स्वयं ने दीक्षा अंगीकार कर ली तथा भगवान नेमिनाथ के जीवन के विभिन्न प्रसंगों पर प्रकाश डाला। पिछले दिनों आयोजित की गई विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेताओं को खरतरगच्छ चातुर्मास कमेटी द्वारा पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया।
‘आओ प्रभु से बात करें’ विषयक प्रतियोगिता आयोजित-

आज की प्रतियोगिता ‘आओ प्रभु से बात करें’ में बालिकाओं में लक्ष्मी संखलेचा प्रथम, भावना संखलेचा द्वितीय तथा मनीषा छाजेड़ तृतीय स्थान पर रहीं। इसी तरह भाईयों में पुरूषोत्तम धारीवाल प्रथम, पवन संखलेचा द्वितीय एवं बाबुलाल तातेड़ तृतीय स्थान पर रहे।
कांति सुलोचना ज्ञान भण्डार की स्थापना-
दादा गुरूदेव श्री जिनचन्द्रसूरिजी महाराज की चतुर्थ शताब्दी के उपलक्ष में ‘कांति सुलोचना ज्ञान भण्डार’ की स्थापना की। साध्वी प्रियरंजनाश्री की पावन निश्रा एवं साध्वी प्रियदिव्यांजनाश्री एवं प्रियशुभांजनाश्री के सानिध्य में कांति सुलोचना ज्ञान भण्डार की स्थापना की गई। कार्यक्रम की शुरूआत साध्वीवर्या के मंगलाचरण एवं सोहनलाल अरटी द्वारा साध्वीवर्या को ज्ञान पुस्तक भेंट कर साध्वीवर्या द्वारा पुस्तक पर वासक्षेप डालकर की गई। साध्वी ने ज्ञान का महात्म्य बताकर ज्ञान भण्डार का उद्घाटन किया तथा सभी से कहा कि स्वाध्याय को पुष्ट बनाने के लिए ज्ञान का अध्ययन जरूरी है। ज्ञान आत्मा की खुराक है। इसे भी भोजन की तरह नियमित ज्ञान की खुराक जरूर दीजिये।
इस अवसर पर खरतरगच्छ चातुर्मास कमेटी के अध्यक्ष मांगीलाल मालू, उपाध्यक्ष भूरचन्द संखलेचा, बाबुलाल छाजेड़, डाॅ. रणजीतमल जैन, शंकरलाल धारीवाल, मेवाराम मालू, सोहनलाल अरटी, बाबुलाल तातेड़, जगदीश बोथरा, बंशीधर बोथरा, केवलचन्द संखलेचा, मदन छाजेड़, बाबुलाल संखलेचा, प्रकाश पारख एवं खेतमल तातेड़ सहित बड़ी संख्या में जैन धर्मावलम्बी उपस्थित थे।
स्थानीय आराधना भवन में साध्वी प्रियशुभांजनाश्री के सानिध्य में प्रातः 6 से 7 बजे तक तत्व ज्ञान, बोध के बारे में स्वाध्याय एवं साध्वी प्रियरंजनाश्री के सानिध्य में दोपहर 3 से 4 बजे तक वदितु सूत्र के बारे में स्वाध्याय करवाया जा रहा है।

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