त्याग तो स्वयं आत्म तप है इसके बिना जीवन निरर्थक है- साध्वी प्रियरंजनाश्री
बाड़मेर। 
स्थानीय श्री जिनकांतिसागरसूरि आराधना भवन में साध्वीवर्या श्री प्रियरंजनाश्रीजी म.सा. ने चातुर्मासिक प्रवचन माला में धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि जो मानव सिर्फ अपने हित का ही विचार करता है, स्वयं के लाभ की चिंता में ही जीवन के अमूल्य क्षण व्यतीत करता है, वह शूद्र जीव से बढ़कर कुछ भी नहीं है। अपनी उदरपूर्ति तो पशु-पक्षी भी कर लेते हैं। हमें तो मानव का जीवन मिला है।किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए हम धरती पर मानव रूप में आये हैं क्या बिना कुछ किये ही लौट जायेंगे? आपके पास यदि कुछ है तो उसका उपयोग दूसरों के लिये भी करना सीखो। तुम मानव हो, मनुष्य हो। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की ये पंक्तिया चरितार्थ हो जायेगी- यही पशु प्रवृत्ति है कि आप ही चरें, मनुष्य है वही जो मनुष्य के लिये मरे।
हम तो युगों से सर्वे भवन्तु सुखिनः अर्थात् सब सुखी हों, की बातें करते आ रहे हैं। लेकिन ये कैसे होगा? अपने अधिकार, धन, सम्पत्ति, स्वामित्व और समय का त्याग जब तक दूसरों के लिए नहीं करेंगे, दुनिया सुखी नहीं होगी। त्याग तो स्वयं आत्म तप है इसके बिना जीवन निरर्थक है। ये वह देश है जहां त्याग की पूजा हुई। भारतीय धर्म शास्त्र और इतिहास के पृष्ठ त्यागवीरों की कथाओं से चमक रहे हैं।
साध्वीवर्या डाॅ. दिव्यांजनाश्री ने कहा कि त्याग जब तक मानव जीवन का आधार नहीं बनेगा, विश्व में दुःखों की कमी नहीं होगी। यह जैन धर्म तो त्याग के स्तंभ पर ही खड़ा है। त्याग उसकी आधारशिला है। त्याग तो धर्म की पहली सीढ़ी है। जिस धर्म में त्याग का महत्व नहीं रहा है वह धर्म काल के गर्त में समा गया है। त्याग की गूंज हर क्षण हर युग में रही है। जीवन का कोई भी क्षेत्र रहा हो हर स्थान पर राम हो महावीर, ये कोई बातें करने से भगवान नहीं बने, ये भगवान बने हैं अपने त्याग के कारण। उन्होनें स्त्री का, धन का, वैभव का, ऐश्वर्य का एवं सभी सुखों का त्याग किया तब वे इंसान से ऊपर उठकर भगवान की श्रेणी तक पहुंच गये।

साध्वी प्रियशुभांजनाश्री ने प्रवचन माला में कहा कि जीवन निर्माण की कला का एक बुलंद पहलू है सदा आनंद में रहना। आनंद और उदासी, प्रसन्नता और विषण्णता, सुख और दुःख दोनों प्रकार के ऊर्जा स्रोत मनुष्य के भीतर समाये हैं। भीतर पड़े कौन से स्रोत को बाहर लाना है वह आत्मा पर निर्भर है। मानव जीवन अटूट शक्ति का अद्भुत भण्डार है। हमें अपनी शक्ति को सृजनात्मक कार्यों में शरीक करना जरूरी है। जीवन में आनंद कला का निर्माण करना है तो पहला दृष्टिकोण यह बनाओ कि जब तक जीयें जैसी भी परिस्थिति में जीवन की गति चलती रहे, जहां भी हम रहें जीवन में प्रेम और खुशी से जीयें। जीवन में कुछ मिला तो भला और यदि नहीं मिला तो इससे भी भला। इस विश्व में जिसने तय किया है उसे कोई भी सुखी नहीं कर पाता। उसके विपरीत यदि किसी ने निश्चय किया है कि मुझे हर दम खुशी में ही रहना है, उसे कोई भी दुखी नहीं कर सकता है। पहाड़ों और जंगलों में बहते हुए झरने इसके प्रबल उदाहरण है।
खरतरगच्छ चातुर्मास कमेटी के अध्यक्ष मांगीलाल मालू एवं उपाध्यक्ष भूरचन्द संखलेचा ने संयुक्त बताया कि आज से शुरू होने वाले आध्यात्म सार ग्रंथ को वोहराने का लाभ ओमप्रकाश आसुलाल संखलेचा, भीमसेन चारित्र वोहराने का लाभ मांगीलाल मुल्तानमल मालू ने लिया। इस ग्रंथ को वोहराने के लिए उसका पांच ज्ञान द्वारा पूजन होगा। वो पांच ज्ञान मति ज्ञान का लाभ शंकरलाल केशरीमल धारीवाल, श्रुत ज्ञान का लाभ लीलचन्द गोड़ीदास छाजेड़, अवधि ज्ञान एवं मनः पर्यवज्ञान का लाभ नेमीचन्द राणामल छाजेड़, कैवल्य ज्ञान का लाभ मांगीलाल सुरतानमल भंसाली ने लिया। इन ग्रंथों की पूजा करने के बाद सुबह 9 बजे पूज्य साध्वीवर्या को वोहरायेंगे। बाद में उनका वाचन प्रारम्भ होगा।

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