सजा होते ही नहीं रहेंगे एमपी,एमएलए
नई दिल्ली।
राजनीति में अपराधीकरण को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एतिहासिक फैसला दिया। कोर्ट ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(4)को रद्द कर दिया जिसके तहत दोषी आपराधिक मामलों में जनप्रतिनिधि ऊपरी अदालत में अपील लंबित रहने तक अयोग्य करार नहीं दिया जा सकता।
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि ऎसे प्रतिनिधियों को अपील के लिए तीन महीने का समय नहीं मिलेगा। पहले कानून के मुताबिक अगर किसी सांसद या विधायक को सजा होती थी तो उसे सजा के फैसले को चुनौती देने के लिए तीन महीने का वक्त मिलता था। उनकी सदस्यता तब तक बरकरार रहती थी जब तक सुप्रीम कोर्ट अपना आखिरी फैसला न सुना दे या फिर उसका कार्यकाल पूरा न हो जाए।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला आज के बाद आने वाले सामने आने वाले दोषी सांसदों या विधायकों के मामलों में लागू होगा। जिन सांसदों या विधायकों ने अदालत में अपील दे रखी है उन पर लागू नहीं होगा। एक जनहित याचिका में मांग की गई थी कि अगर किसी सांसद या विधायक को किसी अदालत से सजा मिलती है तो उसकी सदस्यता फौरन खत्म होनी चाहिए। कोर्ट ने याचिकाकर्ता की मांग से सहमति जताते हुए उसके पक्ष में फैसला दिया।
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