अद्भुत एवं विरल व्यक्तित्व के धनी थे दादा जिनदत्तसूरि- साध्वी प्रियरंजनाश्री
बाड़मेर। 
स्थानीय श्री जिनकांतिसागरसूरि आराधना भवन में साध्वीवर्या श्री प्रियरंजनाश्रीजी म.सा. की पावन निश्रा में श्री जिनदत्तसूरि की 859वीं स्वर्गारोहण जयंती पर गुणानुवाद सभा का आयोजन शुक्रवार को सम्पन्न हुआ।
खरतरगच्छ चातुर्मास कमेटी के अध्यक्ष मांगीलाल मालू एवं उपाध्यक्ष भूरचन्द संखलेचा ने संयुक्त बताया कि गुणानुवाद सभा में पूज्य साध्वीवर्या के मंगलाचरण से एवं दादा जिनदत्तसूरि की तस्वीर के आगे दीप प्रज्ज्वलन एवं माला अर्पित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया।
साध्वी प्रियरंजनाश्री ने अपने सम्बोधन में कहा कि सांसारिक लोगों के जीवन को उत्थान की ओर ले जाने में महापुरूषों का चरित्र चित्रण महत्वपूर्ण रहा है। शास्त्र तो मात्र मार्गदर्शन करता है परन्तु महापुरूष को उस मार्गानुसार अपना जीवन व्यतीत करके सांसारिक प्राणियों के लिए अद्वितीय अनुपम आदर्श स्थापित करते हैं। महापुरूषों के जीवन चरित्र से प्रेरणा मिलती है। महापुरूषों में एक आत्मयोगी, जैन शासन के परम् प्रभावोत्पादक जंगम युगप्रधान खरतरगच्छाचार्य प्रथम दादा साहेब श्री जिनदत्तसूरिजी म.सा. का स्थान भी सर्वश्रेष्ठ रहा है। उन्होनें कहा कि हर चट्टान में माणिक्य नहीं हुआ करते हैं, हर हाथी के मस्तक में मुक्ता नहीं हुआ करता है, प्रत्येक स्थान पर साधुता चारित्र जीने वाले महापुरूष नहीं मिलते हैं, हर वन में चंदन नहीं मिला करते हैं। इसी प्रकार सद्गुरू भी सर्वत्र नहीं मिलते हैं, एक बार जीवन में सद्गुरू मिल गये तो समझो जीवन नैया पार है। सद्गुरू वह है जो अनासक्त और निःस्वार्थ भाव से सबका कल्याण सोचे और करे। ईश्वर, माता-पिता, मित्र, रिश्तेदार, समाज, देश यहां तक कि सारी दुनिया भी रूठ जाये तो चिंता मत करना, लेकिन गुरू न रूठ जाये। यदि परमात्मा रूठ गये तो गुरू मना लेंगे लेकिन रूठे हुए गुरू को परमात्मा भी नहीं मना सकता। जिस दिन गुरू रूठ गया उस दिन समझ लेना तुम्हारा भाग्य, तुम्हारा पुण्य, तुम्हारे सत्कर्म सब-कुछ रूठ गये। इसलिये सदैव गुरू भक्ति में लीन रहो। गुरू आशीष से तीनों लोकों की परमार्थिक और आध्यात्मिक सम्पदा प्राप्त होती है।

साध्वी डाॅ. दिव्यांजनाश्री ने दादा जिनदत्तसूरि के जीवन पर जन्म, बालक का उज्ज्वल भविष्य, नव वर्ष की अवस्था में संयम् ग्रहण, विविध भाषाओं तथा विविध विषयों का ज्ञान, मंत्र शक्ति से चैंसठ योगिनियों को वशीभूत करना, सात वरदान, प्रतिक्रमण के समय में बिजली का स्तम्भन, डूबते हुए जहाज को बचाना, भक्त के परिवार का रक्षण करना, रोग निवारण, एक लाख तीस हजार परिवारों को जैन दीक्षा, पांच सौ पुरूषों और सात सौ स्त्रियों को एक साथ वैराग्य एवं दीक्षा, दृष्टिहीन को दृष्टि देना, सर्प विष हरण, गौत्रों की स्थापना करना, राजाओं को प्रतिबोध देने के बारे में विस्तार से वर्णन किया।
गुणानुवाद सभा में सोहनलाल अरटी एवं मेवाराम मालू मालाणी ने दादा जिनदत्तसूरि के जीवन पर प्रकाश डालते हुए अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये।
दोपहर को साध्वी प्रियरंजनाश्री की निश्रा में दादा गुरूदेव की बड़ी पूजा का आयोजन किया गया। जिसमें नारियल, फल, नागरबेल के पत्ते, चावल इत्यादि से मांडणा सजाया गया एवं कुशल वाटिका महिला मण्डल, कुशल वाटिका बालिका मण्डल एवं सम्बोधि बालिका मण्डल द्वारा भजनों की प्रस्तुतियां दी गई।
गुणानुवाद सभा में दादा गुरूदेव की तस्वीर पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने वालों में मांगीलाल मालू, भूरचन्द संखलेचा, शंकरलाल बोथरा, मोहनलाल संखलेचा, मोहनलाल मालू, जगदीश बोथरा, बाबुलाल छाजेड़, खेतमल तातेड़, उदय गुरूजी आदि उपस्थित थे।
साध्वी प्रियरंजनाश्री के श्रीमुख से शनिवार से आराधना भवन में प्रवचन आरम्भ किये जायेंगे। जो कि चातुर्मास सम्पूर्ण होने तक प्रतिदिन प्रातः 9 से 10 बजे तक जारी रहेंगे।

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