राजस्थानी भाषा संघर्ष समिति ने कहा- अभी राजस्थानी को पूरी तवज्जो मिलना शेष, अन्य प्रांतों की तर्ज पर मिले मायड़भाषा को महत्त्व, लेकर रहेंगे अपना पूरा हक
बाड़मेर . 
अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति ने आरएएस के नए पाठ्यक्रम का स्वागत करते हुए कहा है कि अभी राजस्थानी को पूरी तवज्जो मिलना शेष है। समिति के प्रदेश महामंत्री डॉ. राजेन्द्र बारहठ और संभाग उप पाटवी चन्दन सिंह भाटी ने इसे संघर्ष समिति के घटक राजस्थानी मोट्यार परिषद, मायड़भासा राजस्थानी छात्र मोर्चा, राजस्थानी महिला परिषद, राजस्थानी चिंतन परिषद, राजस्थानी फिल्म परिषद सहित राजस्थानी जनता के संघर्ष की जीत बताया है। बारहठ ने आरएएस के पाठ्यक्रम में राजस्थानी के इस स्थान को नाकाफी माना है और कहा है कि जब तक राजस्थानी को सम्मानजनक स्थान हासिल नहीं होता, संघर्ष जारी रहेगा और हम अपना हक लेकर ही रहेंगे। बारहठ ने संगठन की ताकत पर भरोसा जताया तथा कहा कि राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता के लिए अब आर-पार की लड़ाई के लिए मोर्चाबंदी शुरू हो गई है।
बारहठ ने जानकारी दी कि जिस समय जे.एम. खान आरपीएससी के चेयरमैन थे तब 100 अंक का राजस्थानी भाषा और साहित्य का पेपर होता था, जिसमें 60 अंक सवालों तथा 40 अंक हिन्दी-राजस्थानी व राजस्थानी-हिन्दी अनुवाद के लिए निर्धारित थे जिससे राजस्थान मूल के प्रतियोगी की स्थिति मजबूत हो जाती थी। बाहरी लोगों पर रोक लगती थी। बाद में जब यतीन्द्रसिंह आरपीएससी के चेयरमैन बने जो यूपी मूल के आईएएस थे, उन्होंने अनुवाद हटाकर सामान्य ज्ञान का पेपर कर दिया। जिससे बाहरी प्रत्याशी लाभ में रहने लगे। तब से राजस्थानी की पुनस्र्थापना के लिए लगातार प्रयास जारी थे।
उन्होंने कहा कि पंजाब पीएससी में जिस प्रकार पंजाबी मीडियम भाषा है, पंजाबी ऐच्छिक विषय भी है, 100 अंक पंजाबी भाषा ज्ञान तथा 100 अंक पंजाबी या अंग्रेजी में किसी एक भाषा में निबंध लेखन के लिए निर्धारित हैं और पंजाबी जानने वालों के अलावा वहां कोई अन्य प्रत्याशी सफल ही नहीं होता और ऐसा केवल पंजाब में नहीं, बल्कि देशभर में राजस्थान के अलावा लगभग हर प्रांत का पैटर्न है। जब यही पैटर्न राजस्थान के लिए लागू नहीं होता तब तक राजस्थान और राजस्थानियों का उद्धार नहीं होने वाला।
बारहठ ने राजस्थानी युवा के हितों की रक्षा के लिए 100 अंक राजस्थानी व 50-50 अंक हिन्दी व अंग्रेजी भाषा-ज्ञान के लिए निर्धारित किए जाने की मांग की है। बारहठ ने सवाल उठाया कि राजस्थान लोक सेवा आयोग इसका नाम है और लोक सेवक तैयार करना काम है, मगर जो लोकसेवक लोक की भाषा नहीं जानता वह लोक की सेवा कैसे कर सकता है? इसलिए लोकभाषा से अनभिज्ञ अधिकारी लोकसेवक नहीं लोक दण्डक साबित होते हैं।

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