यूनिसेफ और स्वास्थ्य विभाग की सराहनीय पहल,
टेबलेट पाने वाला देश का पहला जिला बना बाडमेर
बाड़मेर। रिफायनरी घोषणा के बाद देश भर में चर्चा का विषय बना सीमावर्ती जिला बाडमेर एक और इतिहास रचने जा रहा है। जिसमें मुख्य किरदार निभा रही हैं जिले के जसोल क्षेत्र की आशा सहयोगिनी। बतौर निर्देशन व निर्देशक यूनिसेफ और स्वास्थ्य विभाग अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं। यही नहीं निर्माता के तौर पर आईआईटी जोधपुर ने भी अपनी भागीदारी निभाई है। दरअसल, बाडमेर जिला पूरे देश में पहला ऐसा जिला बनने जा रहा है जहां की आशा सहयोगिनियां टेबलेट के जरिए हाईटेक हुई हैं। यूनिसेफ व स्वास्थ्य विभाग द्वारा संयुक्त रूप से यह पायलट प्रोजेक्ट जिले के बालोतरा ब्लॉक की जसोल प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर शुरू किया गया है। यहां की 25 आशाओं को टेबलेट देकर उन्हें रिपोर्टिंग आदि के लिए तैयार किया जा रहा है। सुखद परिणाम यह है कि सभी आशाओं ने बेहद सकारात्मक तरीके से इस पहल से जुड़ते हुए अपने को हाईटेक कर लिया है। वे अब बखूबी इन टेबलेटस पर अपनी अंगुलियां दोड़ा रही हैं।
यूनिसेफ के हेल्थ स्पेशलिस्ट डॉ. अनिल अग्रवाल बताते हैं कि स्वास्थ्य विभाग और आईआईटी जोधपुर के सहयोग से यूनिसेफ ने ॔ईआशा’ कार्यक्रम शुरू किया गया है। बहरहाल, यह कार्यक्रम प्रायोगिक तौर पर शुरू किया गया है, लेकिन जो शुरूआती परिणाम आए हैं उसने एक नई ॔आशा’ की किरण जगाई है। सबकुछ ठीक रहा तो जल्द ही इस कार्यक्रम को पूरे जिले में लागू किया जाएगा। यूनिसेफ की हेल्थ ऑफिसर डॉ. अपूर्वा बताती हैं कि टेबलेट में एक साफ्टवेयर के जरिए आशा सहयोगिनी नियमित रूप से अपनी रिपोर्टिंग कर सकेंगी। फिलहाल, गर्भवती महिलाओं व बच्चों से जुड़ी जानकारी अपलोड की जा रही है। यही नहीं आशाओं को भी इस टेबलेट के जरिए कई तरह की जानकारी मिल सकेंगी। मसलन, वे जब भी किसी गर्भवती महिला या नवजात शिशु के बारे में तथ्य अपलोड करेंगी तो उन्हें स्वयं संचालित सॉफ्टवेयर के जरिए कुछ महत्वपूर्ण जानकारी स्वतः ही मिल जाएगी। उन्हें टेबलेट में दिए गए वीडियो यह बताएगा कि महिला या नवजात को क्या ट्रीटमेंट देना है या उन्हें क्याक्या सावधानियां बरतनी है। कुछ स्थितियों में संबंधित पीएचसी पर महिला या नवजात को रैफर करने की सलाह भी दी जाएगी। डॉ. अपूर्वा ने बताया कि जैसेजैसे आशा सहयोगिनी टेबलेट के जरिए आंकड़े अपलोड करेंगी, वो सभी जोधपुर आईआईटी के पास स्वतः ही पहुंच जाएंगे। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग और यूनिसेफ को स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार लाने में आसानी होगी। साथ ही जिले की स्वास्थ्य सुविधाओं के भूत और वर्तमान स्थिति का आंकलन भी किया जा सकेगा। फिलवक्त जिले की जसोल पीएचसी में इन आशाओं को औपचारिक प्रिशक्षण दिया जा रहा है। वहीं ये आशाएं अब घरघर जाकर नियमित सर्वे के दौरान टेबलेट का इस्तेमाल कर रही हैं। जिला आईईसी समन्वयक विनोद बिश्नोई ने बताया कि साफ्टवेयर में एएनसी, पीएनसी यानी प्रसव पूर्व जांच व प्रसव पश्चात जांच से संबंधित संपूर्ण जानकारी दी गई है। नवजात शिशु से संबंधित भी सवालजवाब अपडेट हैं। मसलन, वे टीकाकरण संबंधी पूरी जानकारी इसमें रख सकती हैं और संबंधित प्रसूता को इसकी समय पर सूचना दे सकती हैं। यही नहीं गर्भवती महिला से संबंधित जानकारी केवल एक बार अपडेट करनी होगी, इसके बाद तो आशा सहयोगिनी और गर्भवती के पास स्वतः ही एसएमएस के जरिए टीकाकरण लगवाने संबंधी जानकारी उनके पास पहुंच जाएगी। इसी तरह नवजात के टीकाकरण की जानकारी भी प्रसूता को मिलती रहेगी। जसोल पीएचसी में टेबलेट का उपयोग कर रही सरस्वती व भगवती बताती हैं कि उन्हें कागजी फोर्मेट की बजाए टेबलेट पर काम करना बेहद आसान लग रहा है और इस पर काम करने का अनुभव भी कुछ अलग है। बकौल सरस्वती, मैं केवल आठवीं पास हूं लेकिन फिर भी टेबलेट पर काम करने के तरीके को समझने में ज्यादा समय नहीं लगा। मेरे साथ काम रही दूसरी आशा सहयोगिनी भी बेहतरीन काम कर रही हैं। खास बात यह भी है कि जब हम किसी गर्भवती के पास जाकर टेबलेट पर आंकड़े भरते हैं तो वह भी रूचि दिखाते हुए पूरी जानकारी हमें देती है। हममें टेबलेट पाकर आत्मविश्वास ब़ा है।
बाडमेर ही क्यों ?
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. जितेंद्रसिंह के मुताबिक ॔ईआशा॔ कार्यक्रम के लिए बाडमेर जिले को चयन करने से पहले यूनिसेफ द्वारा स्वास्थ्य विभाग के राज्यस्तरीय आंकड़ों पर समीक्षा की गई थी। जिसमें यह तथ्य उभर कर सामने आया कि बाडमेर में मातृ और शिशु मृत्युदर अन्य जिलों के मुकाबले कुछ ज्यादा हैं। इसके अलावा भौगोलिक एवं अन्य विकट परिस्थितियों की वजह से स्वास्थ्य सुविधाओं व सेवाओं में बाधाएं आ रही थी या कहें कि आ रही है। साथ ही बाडमेर जिला स्वास्थ्य सेवाओं में हाई फॉकस जिला भी घोषित किया गया है। ऐसी ही कुछ खास वजहें रहीं कि बाडमेर जिला का चयन किया गया। जसोल पीएचसी चयन का भी एक खास कारण रहा, क्योंकि यहां के चिकित्सा अधिकारी प्रभारी डॉ. विष्णु अग्रवाल ने विशोष रूचि दिखाई और उन्होंने पीएचसी के अनटाईड फंड से भी दस टेबलेट आशाओं के लिए खरीदे। डॉ. अग्रवाल अब भी इस कार्यक्रम में ब़चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं और आशाओं से नियमित रूप से फीडबैक लेकर उच्चाधिकारियों को अवगत करवा रहे हैं।
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