लोक शांति के साथ विकास के लिए जरूरी है जागरुकता

- डॉ. दीपक आचार्य
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में चेतना का अर्थ इतना उदार और व्यापक हो चला है कि जीव और जगत के तकरीबन तमाम व्यवहारों में प्रयुक्त होने लगा है। मनुष्य की मर्यादाओं और अनुशासन के भावों को स्पष्ट रेखांकित कर लोक मंगल को साकार करने तथा जगत के विभिन्न व्यवहारों का आदर्श प्रवाह बनाए रखने के लिहाज से विधिक चेतना का महत्त्व आज के समय में सर्वाधिक है।सबको सस्ता, सुलभ और त्वरित न्याय मुहैया कराकर लोक मंगल का आदर्श स्थापित करना ही सच्चे अर्थों में विधिक सेवा है और यह कार्य समर्पित आत्मीय भागीदारी, पूर्ण निष्ठा और लोक जागरण के माध्यम से सहज रूप से किया जा सकता है। इसके लिए न्यायपालिका, कार्यपालिका,पुलिस, प्रेस तथा सभी सम्बद्धजनों और संस्थाओं को आगे आकर प्राण-प्रण से जुटने की जरूरत है। यही समय की मांग और जन-मन की आवश्यकता है।

विधिक चेतना की बहुआयामी ठोस पहल
कानून के बारे में ज्यादा से ज्यादा लोगों तक जानकारियों का संवहन करने, विधिक सहायता मुहैया कराने और विधिक चेतना के माध्यम से सबको शीघ्र न्याय से लाभान्वित करने की दिशा में हाल के वर्षों में न्यायपालिका ने लोक अदालत, विधिक सहायता, विधिक साक्षरता जैसे कई महत्त्वांकाक्षी कार्यक्रमों का सूत्रपात किया है ताकि न्यायालयों में लंबित मामलों का त्वरित निपटारा हो सके और जनता को आसानी से न्याय दिया जा सके। इन तमाम गतिविधियों का मूल मकसद गरीब,पिछड़े, असहाय और अशिक्षित जन को न्याय दिलाकर विश्वास में बढ़ोतरी करना है। इन प्रयासों का बेहतर असर भी सामने आ रहा है।

जरूरी है मुकदमों का अंबार कम करना
आज हमारे न्यायालयों में प्रकरणों का अंबार लगा हुआ है। इसे देखते हुए विचाराधीन मामलों में समय पर गवाही, गंभीरतापूर्वक विभागीय कार्यवाही आदि पर ख़ास ध्यान केन्द्रित किये जाने की जरूरत है ताकि मुकदमों का निपटारा जल्द हो सके। न्यायालयों में मुकदमांे के अम्बार को कम करने में अभिभाषकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इस दिशा में समन्वित रूप से काफी सामूहिक प्रयासों की महती आवश्यकता है।

आज सभी क्षेत्रों में अधिक से अधिक विधिक साक्षरता शिविर आयोजित कर जन-जन में विधिक चेतना जगाने, विधिक जागरुकता के लिए व्यापक प्रचार-प्रसार, लोक भागीदारी के विस्तार आदि पर काम करने की जरूरत है।

सभी संबद्ध संस्थाओं की समन्वित भूमिका
न्याय दिलाने में लोगों को भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए पुलिस और आम जनता के बीच आत्मीय तादात्म्य स्थापित करने, जनता के विश्वास में निरन्तर बढ़ोतरी और पुलिसकर्मियों के सामाजिक सरोकारों को और अधिक सुदृढ़ बनाने के लिए सुनियोजित पहल भी की जा रही है। अब यह प्रयास किये जा रहे हैं कि पुलिसकर्मी की भूमिका सिर्फ बंधे-बंधाए दायरों तक सीमित न रहे बल्कि आम आदमी के लिए सच्चे हितैषी के रूप में वह पहचान बनाए, ताकि अपराधियों में भय और जनता में विश्वास की अवधारणाएं और अधिक प्रगाढ़ होकर अपेक्षित लोक विश्वास अर्जित कर सकें। न्यायविदों की ओर से भी यह पहल की जा रही है कि लंबित मामलों में त्वरित निस्तारण के लिए व्यावहारिक शीघ्र कार्यवाही हो, ताकि पुलिस एवं न्यायपालिका दोनों मिलकर समाज की बेहतर और गुणात्मक सेवा कर सकंे।

गाँव-ढाँणियों तक पहुँचने लगी है विधिक चेतना
आज गाँव-ढाँणियों व दूरदराज के इलाकों तक विधिक सेवा का पैगाम पहंुचाने पर जोर दिया जा रहा है। न्यायालयों में लंबित मामलों से सम्बन्धित लोगों और जेल में बन्द कैदियों को इस बारे में अवगत कराया जा रहा है ताकि वे विधिक सेवा और सहायता प्राप्त करने में सामने आने वाली कठिनाइयों का मुकाबला कर त्वरित न्याय से लाभान्वित हो सकें। अब विधिक चेतना सिर्फ न्याय क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रही है बल्कि शासन-प्रशासन के विभिन्न माध्यमों से विधिक चेतना पर जोर दिया जा रहा है। इसके लिए विभिन्न अभियानों, कार्यक्रमों, बैठकों आदि का भी सहयोग लिया जा रहा है।

अपराधियों पर कठोर अंकुश देता है विश्वास
समाज में जडं़े जमाये इस विचार को दूर करना जरूरी है कि अपराधियों को कानून से कोई भय नहीं है। इस धारणा की वजह से शरीफ नागरिकों के मन में कानून के प्रति श्रद्धा भावना का ह्रास होता जा रहा है। आज आवश्यकता इस बात की भी है कि सार्वजनिक हित से जुड़े ऐसे चुनिन्दा मामलों में जिम्मेदार लोग आगे आएं और धन-बल सम्पन्न अपराधियों को सख्त सजा दिलवा कर कानून के प्रति विश्वास में बढ़ोतरी को नवीन स्वरूप प्रदान करें।

पुरातन हैं न्याय की परंपराएं
भारतीय संस्कृति, सभ्यता और सामाजिक प्राच्य परंपराओं में न्याय को लेकर ढेरों अनुकरणीय एवं प्रेरक उद्धरणों के माध्यम से न्याय जगत के प्रति पुरातन जन विश्वास पर प्रकाश डाला गया है। इसमें यह पैगाम समाहित है कि कानून कमजोर और गरीब की मदद के लिए है और इस धारणा को परिपुष्ट करने के लिए त्वरित न्याय दिलाने में भागीदारी निभाने के लिए न्याय जगत से सम्बद्धजन भी पीछे नहीं हैं। इस दिशा में अभिभाषकों की अहम् तथा बेहतर भूमिका भी सामने आयी है। आज विधिक सेवा एवं सहायता गतिविधियाँ जरूरतमन्दों एवं कमजोर वर्ग के लोगों के लिए वरदान बनी हुई है। आज विधिक चेतना की गतिविधियों में सेवानिवृत्त व्यक्तियों और समाज के जागरुक लोगों की भूमिका भी सामने आ रही है।

जरूरतमन्दों का संबल हैं विधिक चेतना गतिविधियाँ
कानून को व्यावहारिक मनोविज्ञान से जोड़ते हुए देखा जाकर अब इसे सर्वसुलभ बनाने की दिशा में बहुआयामी प्रयास पिछले वर्षों से निरन्तर जारी हैं। विधिक चेतना के प्रयासों से आम नागरिक, ख़ासकर समाज के कमजोर वर्ग को सक्षम एवं प्रभावकारी विधिक सहायता संवहित करने,लोक अदालतों की गतिविधियों से सम्बद्धजनों को लाभान्वित करने और विधिक चेतना के प्रसार की दिशा में उल्लेखनीय माहौल बना है।

अब सभी यह स्वीकारने लगे हैं कि सामाजिक विकास के लिए विधिक चेतना मूल आवश्यक कारक है और मौजूदा परिप्रेक्ष्य में विशेषकर ग्राम्य समुदाय में विधिक चेतना पैदा करने की नितान्त आवश्यकता है। इसके लिए विधि चेतना से सम्बद्धजनों को अपने प्रयास तेज करने होंगे। प्रत्येक नागरिक के लिए विधिक साक्षरता की आवश्यकता है। मौजूदा प्रतिस्पर्धी युग की भागदौड़ एवं कानूनी पेचिदगियों के दौर में रोजमर्रा की जिन्दगी में कानूनी जानकारियां जरूरी हैं। इसके लिए प्रत्येक नागरिक को सजग रहना होगा।

हम सबका है दायित्व
अपराधों के उन्मूलन का दायित्व हर किसी पर है। कहीं भी किसी भी तरह के हो रहे अपराध की जानकारी नहीं देना भी अपने आप में अपराध है। आज आम आदमी के पक्ष में कई कानूनी प्रावधान हैं। पुलिस में दर्ज कराई गई एफआईआर की प्रति प्राप्त की जा सकती है व गिरफ्तार किये जाने वाले व्यक्ति की सूचना उसके परिवारजनों को दिए जाने का कानून में प्रावधान है। भरण-पोषण,अजा-जजा अत्याचार अधिनियम, घरेलू हिंसा कानून आदि भी हैं, जिनकी जानकारी पाकर लाभ मिल सकता है। प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह कानून का सम्मान करे। आज आमजन को भी आत्मानुशासन को अपनाना होगा। झूठी मुकदमे बाजी से बचना चाहिए क्योंकि इससे स्वयं का व न्यायालयों का समय जाया होता है। झूठी मुकदमेबाजी न्याय से वंचित करती है क्योंकि झूठा और मनघड़न्त मुकदमा सबूत के वक्त स्वतः ही समाप्त हो जाता है। विवाह भरण पोषण अधिनियम, बाल विवाह, मृत्यु भोज, दहेज मामलों, विधिक सहायता, उपभोक्ता संरक्षण सहित अनेक विषयों ने न्याय व्यवस्था को और अधिक मजबूती दी है। विधिक चेतना मौजूदा समाज की अनिवार्य आवश्यकता है और इसके व्यापक प्रचार-प्रसार के जरिये लोक जागरण किये जाने की महती आवश्यकता है।

सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना से हो काम

समाज में विधिक चेतना पैदा किये जाने का कार्य सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना के साथ किया जाना चाहिए ताकि जरूरतमन्दों को इसका पूरा-पूरा फायदा पहुंच सके और समाज में कानून के प्रति समझ, विधिक सहायता प्राप्त करने के तौर-तरीकों तथा न्याय क्षेत्र से प्राप्त सहयोग के प्रति जनता का रुझान बढ़ सके।

विधिक सहायता प्रावधान
संविधान के अनुच्छेद 39-ए में इस तरह का प्रावधान किया गया है कि कोई भी नागरिक आर्थिक या किसी अन्य निर्योग्यता के कारण न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाए। इसके लिए मुफ्त विधिक सहायता के अवसर का हर कोई जरूरतमन्द व्यक्ति लाभ प्राप्त कर सकता है। आज सभी पक्षों का सहयोग लिया जा रहा है। विधिक साक्षरता एवं चेतना जागृत करने को लेकर ग्राम्यांचलों में ग्रामीणों एवं जन प्रतिनिधियों की मौजूदगी में बहुमूल्य कानूनी जानकारियां जन समूह तक संवहित की जाती रही हैं लेकिन इन शिविरों में और अधिक लोक सहभागिता का विस्तार जरूरी है। इसके लिए उन सभी लोगों को विधिक चेतना के क्षेत्र में समर्पित प्रयास करने होंगेे जिन पर इसकी जिम्मेदारियां हैं। हालांकि हाल के कुछ वर्षों में सार्थक प्रयासों की बदौलत विधिक साक्षरता एवं चेतनामूलक कई गतिविधियां रंग लायी हैं।

महिलाओं तक पहुँचे विधिक जानकारी
अपनी तकरीबन आधी आबादी महिलाओं की है। ऐसे में महिलाओं से संबंधित मामलों में रुचि लेकर महिलाओं को इससे लाभान्वित करने में भागीदारी अदा करने पर ध्यान दिया जाना जरूरी है। इसके साथ ही जिला स्तर पर मुफ्त कानूनी सहायता के लिए संरचनागत तंत्र को मजबूत व लोकप्रचारित किया जाना जरूरी है ताकि गरीबों और जरूरतमन्दों को कानूनी सहायता एवं विधिक चेतना के विभिन्न आयामों से अच्छी तरह जोड़कर लाभान्वित किया जा सके। विधिक चेतना और कानूनी सहायता के प्रावधानों का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाना आज की सबसे बड़ी जरूरत समझा जा रहा है और इसी से विधिक सहायता व चेतना सामाजिक सेवा के सशक्त आधारों के रूप में स्थापित हो सकती है। आज महिलाओं के हितों की रक्षा करने की दिशा में स्पष्ट और ठोस कानून हैं। इनकी जानकारी आम महिलाओं को होनी चाहिए।

निरन्तर विकास के मौजूदा दौर में आज आर्थिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि में कानूनी सहायता की आवश्यकता नितान्त जरूरी है। यह कार्य समाज के प्रति सेवा और लोक मंगल की भावना के साथ गुरुतर दायित्व के रूप में किया जाना चाहिए। विधिक चेतना के लिए यह भी जरूरी है कि सभी क्षेत्रों में विधिक चेतना से संबंधित तमाम जानकारियां सरल एवं सुबोधगम्य भाषा शैली में जनता तक संवहित की जाएं।

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