जिन्दगी भर दरिद्री रहते हैं जूते-चप्पल चुराने वाले
- डॉ. दीपक आचार्य

सारी दुनिया में चोर-उचक्कों, उठाइगिरों और डकैतों की ढेरों किस्मे हैं और उसी अनुपात में इनके नायाब हुनर। कोई शौक से चुराता है, कोई गरीबी मिटाने के लिए और कई सारे ऐसे हैं जिन्हें पराये माल से ही संतुष्टि मिल पाती है। इन अजीब तरह के चोरों में एक प्रजाति उन लोगों की है जो जूते-चप्पल चुराते हैं। इस किस्म के लोगों की जन्मकुण्डली में विचित्र ग्रह पड़े होते हैं जो इन्हें जिन्दगी भर जूता-चप्पल चोर के रूप में प्रतिष्ठित कर देते हैं।
विश्व के तमाम कोनों में इस किस्म के चोर फैले हुए हैं। इन्हें और कुछ चुराने की बजाय सिर्फ जूते और चप्पल चुराने में ही स्वर्ग सा आनंद मिलता है। यों देखा जाए तो एक आम इंसान दो-चार जोड़ी जूतों से काम चला लेता है लेकिन ये जूता और चप्पल चोर ऐसे होते हैं कि सैकड़ों जोड़ी जूते चुराने के बाद भी इनका मन नहीं भरता।
और इसका हश्र ये होता है कि ऐसे लोग पूरी जिन्दगी जूते-चप्पलों को चुराने में सिद्ध हो जाते हैं। कोई सा मन्दिर हो या और कोई स्थानक, समारोह हो या कोई सा कार्यक्रम, सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक अवसर हो या फिर मौत-मरण की बैठक। जूते और चप्पल चोर हर कहीं विद्यमान रहते हैं। जितने महंगे जूते, उतनी बड़ी आफत। वैवाहिक समारोह, कथा-सत्संग और मांगलिक आयोजन तो जूता-चप्पल चोरों के लिए किसी कुंभ से कम नहीं होते जब इन्हें जात-जात के बेशकीमती जूतों पर हाथ साफ करने का बेमिसाल अवसर मिलता है।

ख़ासकर प्रवचनों, सत्संग और शादी-ब्याहों के दिनों में जूते और चप्पल गायब हो जाने की परंपरा ही बन गई है। फिर आजकल तो बस-ट्रेन और दूसरे स्थल भी जूता-चप्पल चोरों के लिए अपना जादू चलाने के धाम होते जा रहे हैं।

धार्मिक आयोजनों, मन्दिरों और परंपरागत भोजन कार्यक्रमों में शामिल होने आने वाले लोगों की चरणपादुकाएँ गायब हो जाना तो परंपरा ही होकर रह गया है। कई लोगों के लिए ये अवसर उस सेल की तरह होते हैं जहाँ पुराने माल को देकर नया माल मिल जाता है। कई शातिर लोग जूता-चप्पल चोर तो नहीं कहे जा सकते लेकिन ये लोग रिप्लेसमेंट चोर की तरह पुराने जूते छोड़कर किसी और के नए जूते-चप्पल पहन कर चले जाते हैं।

इस किस्म के लोगों के लिए हमेशा नए जूतों का चुराया हुआ सुख उनके भाग्य में लिखा होता है। ऐसे लोगों को जिन्दगी भर कभी भी नए जूते-चप्पल खरीदने के लिए पैसा टका खर्च नहीं करना पड़ता बल्कि हर बार पुराने जूते छोड़कर नए-नए पहनते चले जाने की परंपरा कायम रहती है जो इनकी मौत तक बनी रहती है। कभी पकड़े जाने पर ये लोग जाने कितने ही बहाने बनाकर छूट पड़ते हैं।

हमारे अपने इलाके की बात हो या दुनिया के किसी कोने की, ख़ासकर भारतवर्ष में जूता-चप्पल चोरों का वजूद हर जगह है। अपने इलाके में भी कई क्षेत्र तो इस मामले में खूब बदनाम रहे हैं और ऐसे इलाकों में आज भी कैसा ही मांगलिक आयोजन हो, कपड़े-लत्ते, जेवरादि सब कुछ भले ही नया हो मगर जूते-चप्पल तो पुराने ही उपयोग में लाए जाते हैं, ताकि जाएं तो कोई गम नहीं।

ऐसे मौकों पर मेहमानों का ज्यादातर ध्यान आयोजनों से कहीं ज्यादा अपने जूतों की सुरक्षा में लगा रहता है। कई मन्दिरों व आयोजनों में तो घर-परिवार के किसी व्यक्ति को बाकायदा जूतों की सुरक्षा में तैनात किया जाता है। हर युग में रहे हैं ये जूता-चप्पल चोर। हमारे बाप-दादे भी इन चोरों की हरकतों से परेशान रहे हैं और आज दुनिया इक्कीसवीं सदी में पहुँच कर भी इन चोरों से त्रस्त है।

इन जूता-चप्पल चोरों के मनोविज्ञान और जीवन व्यवहार के साथ ही इनकी पूरी पीढ़ी का अध्ययन किया जाए तो स्पष्ट तौर पर पता चलेगा कि जो लोग जूते और चप्पल चुराने और चुराकर पहनने या बेच देने के आदी होते हैं उनके पूरे वंश में जो लोग हो चुके हैं अथवा वर्तमान में हैं, वे सारे के सारे दरिद्री होते हैं और वे कितनी ही मेहनत कर लें, उनके पास इतना पैसा भी नहीं रहता कि ढंग से खाना-पीना भी कर सकें।

जूते और चप्पल आदमी का वह आधार है जो उसके कर्म क्षेत्र में हमेशा साक्षी तथा बुनियाद के रूप में रहता है। पूरे शरीर की नकारात्मक ऊर्जा रोजाना खिंचकर पाँवों में ही आ जाती है और जूते-चप्पल का संसर्ग रहने से सूक्ष्म रूप में उसी मेें जमा होती जाती है। 

जूतों व चप्पलों का त्याग करने का विधान इसीलिए है ताकि समय-समय पर संचित पापराशि से हम मुक्ति पा सकें। इसीलिए जब भी किसी के जूते-चप्पल खो जाते हैं, यह कहा जाता है कि पनौती चली गई अथवा अनिष्ट चला गया। ऐसा इसीलिए कहा जाता है कि पाँवों के निरन्तर संपर्क में रहने वाले जूते-चप्पल ही होेते हैं जिनमें कहीं न कहीं पापराशि सूक्ष्म रूप में घनीभूत रहती है।

इस प्रकार लोगों के जूते-चप्पल चोरी हो जाने का भले ही आर्थिक नुकसान सामने आए मगर जो लोग चुराने वाले हैं उनकी जिन्दगी में बाहरी पापराशि का जमा होना जारी रहता है। इन जूतों के साथ ही नकारात्मक ऊर्जाएं, बीमारियाँ और गंदगी भी इकट्ठी होती रहती है। ऐसे में जो लोग जूता-चप्पल चुराने के आदी हैं उनकी जिन्दगी अभिशप्त रहती है और वे कभी बरकत प्राप्त नहीं कर सकते। इन लोगों के घरों में दरिद्रता, बीमारी, शोक, निराशा और भय-आशंकाओं का माहौल हमेशा स्थायी भाव प्राप्त कर लेता है और यह पीढ़ियों तक चलता रहता है।

जिन लोगों को जीवन भर स्वस्थ, समृद्ध और सुखी रहना हो, उन्हें चाहिए कि वे किसी और के पहने हुए जूते-चप्पलों का भूलकर भी कभी प्रयोग न करें, भले ही वह अपना कितना ही आत्मीय क्यों न हो, अन्यथा परायी बीमारियाँ, दारिद्रय और अशांति कभी भी परेशान कर सकती है। पराये जूते-चप्पल पहनने से हमारे पुण्यों का भी नाश हो जाता है।

जूते-चप्पलों के मामले में सदैव सतर्क रहना चाहिए। दिखने में सामान्य वस्तु हैं ये, लेकिन जूते-चप्पलों का प्रयोग और इन पर होने वाले प्रयोगों, इनमें समाहित नकारात्मक भावों, अनिष्टकारी शक्तियों आदि के प्रति गंभीरतापूर्वक सावधान रहने की जरूरत है। इस मामले में शुचिता रखें और जीवन को सुरक्षित रखने के लिए प्रयत्न करें।

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