-डॉ. दीपक आचार्य
हम चाहे जहाँ काम करते हों, पेशा हो या सेवा। हमारे कामों की प्रामाणिकता और गुणवत्ता के साथ यह भी जरूरी है कि हम अपनी रचनात्मक क्रियाशीलता और सेवाओं को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने के लिए भी पक्का बंदोबस्त करें।
जिन लोगों का हुनर और क्रियाशीलता उन्हीं तक सीमित रहती है और उनके जाने के बाद खत्म हो जाती है वे लोग मुक्ति प्राप्त नहीं कर पाते हैं। काम-धंधे, नौकरियों या सेवाओं से हट जाने या हटा दिए जाने के बाद भी इनका कोई सम्मान या प्रतिष्ठा शेष नहीं रह जाते और ऐसे लोग मर भी जाएं तो उनकी सद्गति कभी नहीं हो सकती।बात हर विधा से जुड़ी है। अपना यह परम दायित्व है कि जो ज्ञान और हुनर तथा विलक्षण कौशल इत्यादि हमारे भीतर हैं, भगवान ने हमें दिए हैं, उन्हें संरक्षित और पीढ़ियों तक संवहित करते हुए अक्षुण्ण बनाए रखें।
यह हमारा व्यक्तिगत कर्त्तव्य और सामाजिक गुरुतर दायित्व तो है ही, ईश्वर की भी आज्ञा है कि आगे बढ़ाएं और सृष्टि को अपने हुनर तथा ज्ञान का लाभ मिलता रहे।
पर देखा यह जाता है कि किसी भी विलक्षण ज्ञान, हुनर या विद्या में माहिर लोग इस मामले में दुनिया के सर्वाधिक कृपण और जिद्दी लोगों में गिने जाते हैं और इनका ज्ञान तथा सारी विद्याएं इनकी मौत के साथ ही समाप्त हो जाती हैं।
इस किस्म के लोग पात्र उपलब्ध होने के बावजूद अपना ज्ञान या अनुभव औरों को बाँटने से कतराते हैं। अपने विलक्षण हुनर की बदौलत इनमें इतना अधिक अहंकार और अहं ब्रह्मास्मि की भावना आ जाती है कि ये किसी को ज्ञान या हुनर देना चाहते ही नहीं।
दूसरी हुनरमंदों की किस्म ऐसी है जो अपनी पूरी जिन्दगी अपने हुनर और ज्ञान के दम पर अकेले ही सब कुछ पा जाना चाहती है और ऐसे लोग जहाँ कहीं रहते हैं वहाँ हमेशा इस प्रयास में लगे रहते हैं कि उनका अन्यतम ज्ञान और हुनर कोई छीन न ले।
ऐसे लोग अपने स्वार्थों में बुरी तरह लिप्त रहते हैं और चाहते हुए भी किसी को न सिखाते हैं,न प्रोत्साहित करते हैं। इन लोगों का मानना होता है कि किसी को भी सिखा दिए जाने से उनका महत्त्व कम हो जाएगा।
ये लोग मौत के करीब पहुंचने तक भी अड़िग रहते हैं और बिना किसी को सिखाये काल के आगोश में खो जाते हैं अपनी सारी विद्याओं को लेकर। अद्भुत ज्ञान, हुनर और दिव्य प्रयोगों में माहिर लेकिन कृपण और जिद्दी इन कछुवाछाप और शुतुरमुर्गी लोगों की वजह से भारतवर्ष को जितना नुकसान हुआ है उतना और किसी से नहीं वरना आज भारतवर्ष अपने ज्ञान, हुनर और नायाब आविष्कारों की बदौलत दुनिया भर में सबसे बड़ी महाशक्ति होता।
लेकिन हुनरमंद किन्तु वज्रमूर्खों और स्वार्थी लोगों के कारण ही आज हम इस दशा को प्राप्त हो गए। पुरानी पीढ़ियों से जो ज्ञान और हुनर संवहित हो रहा है उसे आगे बढ़ाना हमारा फर्ज है लेकिन कई सारे लोग ऐसे हैं जो इस मार्ग में रोड़ा बन जाते हैं, वह भी अपने दो टके के क्षुद्र स्वार्थों के कारण।
ऐसे ही लोग समाज के भी शत्रु हैं और राष्ट्र के भी, जो न समाज के काम आ पाते हैं न देश के। और वैसे ही बिना कुछ दिए मर जाते हैं। आजकल भी हमारे सामने ऐसे खूब सारे लोग हैं जो हुनरमंद हैं लेकिन चाहते ही नहीं कि किसी और को इसका ज्ञान या प्रशिक्षण दें।
ऐसे लोग खुद को बुलंद करने के फेर में अपने सामाजिक उत्तरदायित्वों को भुला बैठे हैं और वह रास्ता तय कर चुके हैं जो इसी किस्म के कतिपय पुराने लोगों ने तय किया था और आज उनका कोई नामलेवा तक शेष नहीं रहा है।
नौकरी-धंधे से लेकर सेवा के किसी भी क्षेत्र से हमारा संबंध हो, हमें चाहिए कि अपने कर्मयोग और सेवा योग में खुद ही खुद न छाए रहें बल्कि नई पीढ़ी को भी तैयार करें ताकि उनके विलक्षण हुनर से आने वाली पीढ़ियां लाभान्वित भी हों तथा जयगान भी करती रहें।
जहाँ कहीं हम हों, हमें चाहिए कि वटवृक्ष बनकर खुद ही इतना फैल न जाएं कि हमारी काली पसरी छाया में दूसरी प्रतिभाएं पनप तक न सकें। हमें चाहिए कि हम कल्पवृक्ष बनें ताकि हम औरों के लिए भी जी सकें और समाज को कुछ दे भी सकें, तभी हमारा जन्म सार्थक है वरना लाखों-अरबों की भीड़ आती-जाती रहती ही है।
हमारा जीना तभी वास्तव में जीना है जब हम समाज और राष्ट्र के लिए उपयोगी पीढ़ी का निर्माण कर सकें और हममें जो हुनर है उस किस्म के लोगों को तैयार कर समाज की सेवा में अर्पित कर सकें।
आज वटवृक्ष तो खूब हैं जो इतने पसरते जा रहे हैं कि जमीन तक कम पड़ने लगी है। खुद का ही प्रसार देखते रहकर खुश होने के आदी इन वटवृक्षों का वजूद सभी तरफ है।
अपने क्षेत्र में भी ऐसे खूब वटवृक्ष हैं जिनकी छाया ही इतनी काली और विषाक्त है कि किसी भी अच्छे बीज का अंकुरण तक नहीं हो पाता। हमारे इलाके के वटवृक्षों का अहंकार, दुर्भावना और स्वार्थों का प्रदूषण इतना बढ़ता जा रहा है कि जमीन तक भी इनसे हैरान हो गई है और इस प्रतीक्षा में है कि कब काल की निगाह इन वटवृक्षों पर पड़े और भूमि इस भार से मुक्त हो जाए।
अब भी समय है अपनी भूमिकाओं और सामाजिक उत्तरदायित्वों का बोध करें और अपने आपको सुधारें वरना लोगों की सद्भावनाएं हमारी गति-मुक्ति के लिए निरन्तर बनी हुई हैं ही। इंतजार है तो बस इस बात का कि कब ये सफल हो पाती हैं। उस दिन की प्रतीक्षा में सभी लोग बेसब्र बने हुए हैं।
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें