ईशान प्रसंग नामक एक विशेष समांगम उत्तर पूर्वी राज्यों े 100 यातनाम लोककलाकारों द्वारा स्वर्णधरा
जैसलमेर,
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, भोपाल एवं नगरपरिषद, जैसलमेर े संयुक्त तत्वावधान में ईशान प्रसंग नामक एक विशेष कार्यक्रम जैसलमेर में 8 फरवरी से आयोजित किया जा रहा है जिसमें देश े पूवोर्त्तरी राज्यों, अरूणाचल प्रदश, असम, मिजोरम, मेघालय, और मणिपुर े कलाकारों द्वारा पारंपरिक लोकनृत्यों की प्रस्तुति दी जायेगी। स्वर्ण नगरी जैसलमेर े पूनम स्टेडियम में 8 से 10 फरवरी 2013 तक आयोजित होने वाले अपने तरह े इस अनूठे कार्यक्रम में प्रवेश नि:शुल्क रहेगा। यह कार्यक्रम सायं 6:30 बजे से प्रारंभ होगा।
उल्लेखनीय है कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार का स्वायत्तशासी संस्थान है जो कि देश की कला एवं संस्कृति े संरक्षण एवं संवर्धन े लिए समर्पित संस्थान है जिसका मु यालय भोपाल में 200 एकड में फैला है जबकि मैसूर में दक्षिण क्षेत्रीय ेंद्र स्थित है। अपने उद्घेश्यों े अनुरूप देश े विभिन्न राज्यों में देश की एकता एवं अखण्डता को बनाये रखने एवं राज्यों की कला एवं सांस्कृतिक विरासत को प्रस्तुति करने े लिए प्रयासरत है। नृत्यों े बारे में सक्षिप्त विवरण नि नानुसार हैः
कार्यक्रम समन्वयक रोश भट्ट ने यह जानकारी देते हुए बताया कि अरूणाचल प्रदेश नृत्य- प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस राज्य में विभिन्न जनजाति समूह निवास करते हैं जिनमें प्रमुख तोर पर नोक्टेस एवं वांग्चू , मोन्पा , मिजीआका समुदाय है सांस्कृतिक कार्यक्रम े अवसर पर मिजीआका जनजाति मुखौटा नृत्य का शानदार प्रस्तुतीकरण किया जाएगा जो कि वरिष्ठ लोगो े स मान में आयोजन करते हैं। ब्रो नृत्य - यह नृत्य फसल को घर लाने पर किया जाता है। मणिपुरी नृत्य-बसंतरास, मणिपुर राज्य में किये जाने वाले इस पारंपरिक नृतय में कृष्ण की रास लीलाओं को द6ार्या जाता है। इसमें करतल, ढोलक और मंजीरा का प्रयोग भी किया जाता है। मणिपुरी नृत्य ेवल मनोरंजन का साधन न होकर धार्मिक और आध्यात्म से भी जुडा है। इसमें ज्यादातर ेवल महिला कलाकारों द्वारा ही कृष्ण की रास लीला को विभिन्न मुद्राओं में मध्यम संगीत े साथ प्रस्तुत किया जाता है कि देखने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता है।
पुंगचोलम - पुंगचोलम शास्त्रीय मणीपुरी संकीर्तन का आविभाज्य अंग है। नृतकों द्वारा विभिन्न भव्य ,शारीरिक मुद्राओं और अंग संचालन े साथ नृत्य और विपरीत धुनों पर ’ पुंग ’ बजाना इस नृत्य को अनूठा बनाता है। यह सामान्यतया पुरुष कलाकारों द्वारा स्वच्छ एवं सफेद फोईजॉम ( धोती ) पहन कर ढ़ोलकों का इस्तेमाल करते हुए किया जाता है।
असम- बिहू नृत्य - भारत े असम राज्य का लोकनृत्य है जो बिहु त्यौहार से संबंधित हे। विभिन्न प्रकार े बिहु नृत्यों में देओरी, मीशिंग, रोंगली आदि प्रमुख हैं। अप्रेल े मध्य में, बसंत की शुरूआत े साथ बोहाग महीने में बिहू प्रतियोगिताऐं भी आयोजित की जाती हैं। यह ुाशी का नृत्य युवा पुरूषों एवं महिलाओें दोनों े द्वारा किया जाता है इसकी विशेषता फुर्तीली नृत्य मुद्राऐं एवं हाथों की तीव्र गति है। नृत्य पारंपरिक रंगीन असमिया परिधान पहनते हैं। नृत्य करते समय आम तौर पर महिलाओं पंक्ति या वृत्त संरचना बनाती हैं। पुरूष नर्तक और संगीतकार नृत्य क्षेत्र में प्रवेश करते हैं और अपनी पंक्ति में रहते हैं। जबकि महिलाऐं बाद में नृत्य करती हैं और पुरूष नर्तक महिला नर्तकियों े साथ मिलने पर पंक्ति भंग कर देते हैं। आम तौर पर नृत्य की विशेषता निश्चित मुद्राऐं, लय में कूल्हे, बाजू, कलाईयां हिलाना, घूमना, घुअनों को मोडना और झुकना है लेकिन छलांगें नहीं लगाई जातीं है। नृर्तक कलाकारों े साथ एक से अधिक ढोलकिये भी दोनों हाथों से बजाये जाने वाले ढोल को गले में लटकाकर बजाते हैं। अलग अलग प्रदर्शन े चरण पर अलग अलग लय और ताल े साथ इसे बजाया जाता है। इसे अतिरिक्त असम का ग्वालपड़िया नृत्य किया जाएगा।
सत्रीय नृत्य - असाम े मांजली में स्थित यह एक वैष्णव संप्रदाय का मठ है, जहाँ पौराणिक गाथाओं पर वैष्णव संप्रदाय द्वारा अनूठी नृत्य सृजन किया गया है का भी प्रस्तुतीकरण इस आयोजन में होगा।
मेघालय- देश े पूर्वोत्तर छोर पर स्थित मेघालय अपने प्राकृतिक सौंदर्य े लिए विश्व वि यात है। हमे6ा बादलों से घिरे रहने े कारण ही संभवतः इसे मेघालय नाम दिया गया। वहीं दूसरी ओर यहां की कला एवं संस्कृति अपने आप में एकदम अनूठी है। यहां खासी, गारो और जयंतिया जनजाति प्रमुख रूप से निवास करतीं हैं। यहां प्रमुख रूप से किये जाने वाले नृत्यों में नान्गक्रेम,शादसुक, भेंदीखालम, वांगाला, डोरसेंगेटा हैं। इनमें से नान्गक्रेम नृत्य में अच्छी फसल, शांति और समृद्घि े लिए सर्वशिक्तमान ईश्वर को धन्यवाद देने का त्यौहार है जो कि अक्टूबर-नवंबर े दौरान आयोजित किया जाता है। वहीं शाद सुक खासी हिलस में बसंत े अवसर पर आयोजित किया जात है जिसमें कुंवारे पुरूष एवं महिलाऐं पारंपरिक एवं रंगीन परिधान में ड्रम और पाई्रप े साथ नृत्य करते हैं। भेंदीखालम, नृत्य मानसून े अवरस पर बुवाई े बाद मनाया जाता है। इसे द्वारा बीमारियों को दूर करने े लिए एवं अच्छी फसल े लिए ई6वर से आव्हान करने े लिए किया जाता है। वांगाला- यह गारो जनजाति का प्रमुख त्यौहार है। फसल की कटाई े बाद आराध्य देवता े स मान में यह त्यौहार का आयोजन लगातार कई दिनों तक किया जाता है।
मिजोरम - मिजोरम े कलाकार संगीत उपकरणों जैसे गोंग और ढोलक े साथ नृत्य प्रस्तुतियां देते हैं। यहां े प्रचलित नृत्यों में खुल्लम, चेरॉ, सरलमकई, चेलाम, आदि प्रमुख हैं। चेरॉ भी मिजोरम की मिजो जनजाति का अत्यंत प्राचीन एवं पारंपरिक नृत्य है। इस प्रस्तुति में आडे एवं खडे बांसों को लय और ताल े साथ पास लाना और दूर किया जाता है। जिसे खाली स्थानों े मध्य लडकियों द्वारा नृत्य किया जाता है। इस दौरान ड्रम बजाया जाता है। यह नृत्य नई फसल े आने और खुशी े त्यौहारों पर किया जाता है।
मिजोरम की ही एक अन्य समुदाय पावी और मारा द्वारा सरलमकाई नामक नृत्य प्रस्तुति दी जाती है। जब विभिन्न समुदायों में लगातार संघर्ष जारी रहता था तब विजेता द्वारा हारने वाले का सिर काटकर शरीर को लाया जाता था और यह माना जाता था कि मृतक मरने े बाद भी उसकी आत्मा विजेता का गुलाम बनी रहेगी। यह समारोह लगभग 5 दिन तक चलता है। इस नृत्य में युवक एवं युवतियां रंगीन परिधान पहनकर वृत्ताकार में नृत्य करतीं हैं जबकि प्रमुख नर्तक योद्घा का परिधान धारण करता है।
चेलम नामक नृत्य करते समय मिजोरम े युवक एवं युवतियां वृत्ताकार में खडे होकर हाथों में हाथ लेकर नृत्य करते हैं जबकि संगीतकार जिसे हाथ में ड्रम और जंगली बैल का सींग रहता है, वह मध्य में खडा रहता है।
कार्यक्रम समन्वयक रोश भट्ट जिले े आमनागरिकों से विशेष आग्रह किया कि वे इन तीन दिवसीय रंगारंग कार्यक्रमों में पहुंच कर उत्तर पूर्व राज्यों की विविध संस्कृति े समागम का पूरा-पूरा लाभ उठावें।
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