क्षेत्रपाल का मंदिर जहां विवाह बंधन सूत्र खुलते हें 
चन्दन सिंह भाटी 
जैसलमेर अपनी अनूठी संस्कृति और परम्पराओ के निर्वहन के लिए जाना जाने वाले जैसलमेर जिले में स्थानीय लोक देवता क्षेत्रपाल का अनूठा मंदिर जिला मुख्यालय से छ किलोमीटर दूर ,स्थित हें जहां स्थानीय वासिंदे शादी के बाद विवाह सूत्र बंधन जिसे स्थानीय भाषा में कोंकण डोरा कहते हें खोलने आते हें ,इस मंदिर में अब तक लाखो की तादाद में दुल्हा दुलहन धोक देकर कोंकण डोरा खोल , हें खास बात की इस मंदिर की पूजा परम्परागत रूप से माली जाती की महिलाए करती हें ,दुल्हा दुल्हन से विधिवत पूजा पाठ महिला पुजारी कराती हें पूजा पाठ के बाद नव दम्पति के विवाह सूत्र बंधन क्षेत्रपाल को मान कर खोले जाते हें ,ताकि क्षेत्रपाल दादे की मेहर टा उम्र दूल्हा दुल्हन पर बनी रहे ,जैसलमेर राज्य की स्थापना के यह परंपरा शुरू हुई थी सेकड़ो सालो से चल रही परम्परा आज भी निर्विवाद रूप से चल रही हें ,इस मंदिर में जैसलमेर के हर जाती धर्म के स्थानीय निवासी निवासी धोक देते हें ,क्षेत्रपाल को शरादालू इच्छानुसार सवा किलो से ले कर सवा मन तक का चूरमा का भोग देते हें ,जैसलमेर में हर जाती ,धर्म में होने वाली शादी के बाद तीसरे या चोथे दिन नव विवाहित जोड़े के कोंकण डोरे खोलने बड़ा बाग़ स्थित क्षेत्रपाल मंदिर परिजनों के साथ आना होता हें ..इस मंदिर में अब तक लाखो लोग अपने विवाह बंधन सूत्र खोल चुके हें ,विश्व का ऐसा एक मात्र मंदिर हें ,इस मंदिर में वर्त्तमान में माली जाती की पचास वर्षीय महिला किशनी देवी पूजा पाठ का जिम्मा संभाल रही हें ,किशनी देवी ने बताया की क्षेत्रपाल मंदिर बड़ा चमत्कारिक और इच्छा पूरी वाला हें ,जैसलमेर में होने वाली हर शादी के नव विवाहित दम्पति की शादी की रश्म कोंकण डोरा क्षेत्रपाल को साक्षी मानकर ही खोले जाते हें ,उन्होंने गत तीन सालो में सेकड़ो नव दम्पतियों के विवाह बंधन सूत्र विधिवत पूजा पाठ करने के बाद ,खुलवाए हें उन्होंने बताया की जैसलमेर के लोग जो बाहरी प्रान्तों या विदेशो में भी हें वे भी कोंकण डोरा खोलने क्शेत्रेअपल मंदिर आते हें ,क्षेत्रपाल को चूरमे का भोग चदता हें ,किसी की मन्नत पूरी होने पर बलि भी हें .पहले मंदिर परिसर में बलि दी जाती थी मगर अब परिसर में बलि करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया हें .उन्होंने बताया की मंदिर की पूजा बड़ा बाग़ के स्थानी माली परिवार ही करते हें इसके लिए निविदा जारी होती हें ,जो ज्यादा विकास के लिए लगते हें उसे क्षेत्रपाल की पूजा का मिलाता हें ,उन्हें दो लाख सत्रह हज़ार में निविदा तीन साल पूर्व मिली थी . भी स्थानीय वन माली परिवार ही पोजा पाठ करते ,आये हें क्षेत्रपाल की पूजा महिलाए ही परंपरागत रूप से करती आई हें .मंदिर में जो भी चढ़ावा आता हें उससे उनके परिवार का भरण पोषण होता हें ,उन्होंने बताया की कोई परिवार विवाह के बाद क्षेत्रपाल की धोक देने की भूल करते हें उससे दादा क्षेत्रपाल जात मांग कर कर ,लेते हें लाखो की तादाद में क्षेत्रपाल के मुरीद परिवार हे जो ही नहीं विदेशो के कोने कोने में बसे हें

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