सर्पयोनि को प्राप्त होते हैं जमीन-जायदाद हड़पने वाले
- डॉ. दीपक आचार्य
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संसार में जो आया है वह अपने साथ अपना भाग्य लाता है और उसी भाग्य के अनुरूप जो मिलता है उसी में संतोष करते हुए अपने संकल्पों, दृढ़ इच्छाशक्ति और कठोर परिश्रम से उसे ऊर्ध्वगामी यात्रा आरंभ करनी चाहिए क्योंकि भाग्य और पूर्व जन्मोंके संचित कर्मों, प्रारब्ध आदि सब कुछ होते हुए भी मनुष्य को यह सामर्थ्य प्राप्त है कि वह अपने भाग्य और पूर्वजन्म के कर्मों के अनुरूप प्राप्त होने वाले अशुभ कर्मों के प्रभाव को कम कर सकता है अथवा शुभ कर्मों के प्रभाव को बहुगुणित कर सकता है।
किसी भी कर्म को पूरी तरह नष्ट किया जाना संभव नहीं है क्योंकि व्यक्ति जो कर्म करता है उसे भुगतना जरूर पड़ता है। यह अलग बात है कि ईश्वरीय कृपा और साधना, शुचिता और पवित्रता से भरे-पूरे व्यक्तित्व के कारण अहसास के स्तर में न्यूनाधिकपरिवर्तन लाने में मनुष्य सक्षम है।
प्रत्येक मनुष्य के लिए भाग्य के साथ ही कर्म की निरन्तरता, कठोर परिश्रम और एकाग्रता से परिपूर्ण कर्मयोग का भी प्रभावी असर जीवन पर पड़ता है और इसी से वर्तमान और आने वाले जन्मों के समीकरणों में बदलाव की भावभूमि रची जा सकतीहै।
मनुष्य कर्म के माध्यम से भाग्य और जीवन बदलने के लिए स्वतंत्र है और ऐसे में मनुष्य के लिए मानवीय मूल्यों और आदर्शो तथा पुरातन परंपराओं के अनुभवों से समृद्ध आचार संहिता भी है जिसका परिपालन हर मनुष्य को इस प्रकार करनाचाहिए कि ‘सर्वे भवंतु सुखिनः-सर्वे सन्तु निरामया’ का बोध वाक्य समाज-जीवन से लेकर परिवेश मंे सर्वत्र मुखरित होता रहे।
इसके लिए जरूरी है कि व्यक्ति अपने दायित्वों और उत्तरदायित्वों, घर-परिवार-समुदाय से लेकर राष्ट्रधर्म के बारे में पक्की सोच और समझ रखे तथा इस प्रकार का कर्मयोग अपनाए कि उसका जीवन भी पुरुषार्थ का जयगान करता हुआ आनंद सेसरोबार रहे और परिवेश में भी सदैव आनंद पसरता रहे।
इसके लिए व्यक्ति के जीवन को जिन आश्रमों में बांटा गया है उनका अनुकरण करना चाहिए और धर्म के दसों लक्षणों को अपनाकर जीवन को धन्य एवं आशातीत सफलता देनी चाहिए। ऐसा कुछ वर्षों पूर्व तक तो होता रहता था जब मनुष्य के लिएसंसाधनों और भोग वैभव से ज्यादा महत्त्व मानवीय संवेदनाओं को दिया जाता था। आज आदमी की सोच बदलती जा रही है और उसी अनुपात में उसकी सभी प्रकार की वृत्तियाँ भी। बदलाव का दौर इतना अधिक प्रभावी है कि ढेरों आदमी हमारे आस-पास से लेकर दूरदराज तक ऐसे मिल जाते हैं जिनके शरीर के रंग-रूपाकार को छोड़दिया जाए तो कहीं से आदमी लगते ही नहीं हैं बल्कि इनकी कार्यशैली और व्यवहार में तकरीबन सारे हिंसक जानवरों के अंश को झरता हुआ देखा जा सकता है।
कई लोग तो ऐसे हैं जिनके बारे में हर कोई यह कह सकता है कि इन्हें मनुष्य की बजाय किसी जानवर का शरीर मिलता तो ठीक रहता। कइयों का चरित्र और व्यवहार असुरों के समीप जान पड़ता है। आदमियों की इन्हीं विचित्र किस्मों में से एक प्रजातिहै दूसरों का हड़पने वाली।ये लोग अपने स्वार्थ के लिए दूसरे लोगों को कहीं भी किसी भी बलिवेदी पर चढ़ा देने में कोई हिचक नहीं करते। परायी सम्पत्ति को हड़पने वाले लोगों की अब संसार में कोई कमी नहीं रही। अपने गांव-कस्बे और शहर से लेकर महानगरों तक आदमियों कीयह किस्म छायी हुई है जिनके जीवन का एकसूत्री एजेण्डा होता है पराये लोगों की जमीन-जायदाद पर कब्जा करना और इसे हड़पने के लिए कुछ भी कर गुजरना। अपने पुरुषार्थ के बिना जो भी वस्तु संसार में है वह सब कुछ परायी ही है और इस पर अधिकार करने की सोच रखना भी पाप बताया गया है लेकिन कितने लोग हैं जो इस प्रकार के कर्मों को पाप समझते हैं?योग मार्ग की दृष्टि से देखा जाए तो सम्पत्ति और जमीन जायदाद का संबंध व्यक्ति के सबसे पहले चक्र मूलाधार से है और यह वही मूलाधार है जहाँ कुण्डलिनी शक्ति नागिन की तरह घेरा मार कर सुप्तावस्था में पड़ी हुई है।इसका संबंध भय, जमीन-जायदाद आदि से है। जो लोग पुरुषार्थ और अच्छे एवं सच्चे कर्मों से संबंध रखते हैं उनके लिए यह कुण्डलिनी शक्ति सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने वाली होती है और ऐसे लोगों की ऊर्ध्वदैहिक यात्रा में कोई बाधा नहीं आती।
दूसरी ओर जो लोग मनोमालिन्य से ग्रस्त हैं और बिना किसी पुरुषार्थ के परायी जमीन-जायदाद हड़पने के गोरखधंधों और षड़यंत्रों में लिप्त रहते हैं वे यहीं अटके रहते हैं और इन लोगों के जीवन में भय, आशंका और असुरक्षा की भावना हमेशा बनी रहतीहै तथा आनंद का भाव इनके जीवन से कोसों दूर ही रहता है।
फिर ऐसे लोग मानसिक एवं शारीरिक बीमारियों से भी ग्रस्त हो जाते हैं और इनका पूरा जीवन कोरे कागज पर छायी कालिख की तरह रहता है जिसमें से कोई सुन्दर अक्स नहीं देखा सकता। परायी जमीन और सम्पत्ति पर गैर वाजिब हक़ और जबरनकब्जा करने वाले लोगों की मानसिकता को भाँप कर सर्पयोनि के जानवर कर्षण शक्ति के मारे उनकी ओर खिंचे चले आते हैं और उनके मकान में अथवा इर्द-गिर्द ही बने रहते हैं।
पुरानी मान्यताओं के अनुसार जो लोग हराम की या परायों की जमीन-जायदाद पर कब्जा करने के आदी होते हैं उन लोगों की गति-मुक्ति भी नहीं होती और ये लोग मरने के बाद सम्पत्ति और भूमि के मोह में साँप बनकर कुण्डली मारे सैकड़ो-हजारों वर्षोंतक जमे रहते हैं।
जमीन-जायदाद हड़पने वालों और इन पर कब्जों की नियत से काम करने वाले लोगांे के मन-मस्तिष्क में छायी मलीनता को उनके चेहरों पर भी अच्छी तरह पढ़ा जा सकता है। इन लोगों के चेहरों की तुलना किसी भुजंग से की जाए तो सारी बातेंअच्छी तरह समझ में आ सकती हैं लेकिन थोड़ी सूक्ष्म दृष्टि रखनी जरूरी है।
इन लोगों के जीते जी ही उनके चेहरों पर भुजंगों की छवि दिखाई देने लगती है जो मरने के बाद भुजंग के रूप में ही आकार लेकर वर्षों तक कुण्डली मारे अपने वंशजों के मोह में बैठे रहते हैं। आम तौर पर जिनके पास पुरखों की अतुल धन-संपदा होती हैउनके यहाँ साँपों का बना रहना कोई नई बात नहीं है।
फिर इनके वंशज भी उनके पुरखों की ही तरह बर्ताव करने लग जाते हैं तो इन परिवारों में नाग वंश का बोलबाला रहता है जो कभी कालसर्प के रूप में सामने आता है तो कभी किसी और विपत्ति के रूप में।
हैरानी की बात तो यह है कि जो लोग औरों की जमीन-जायदाद हड़पने के आदी होते हैं वे अपने ऊपर या अपने परिवार पर कोई खर्च नहीं कर पाते हैं और यह पैसा उनके जीते जी उनके किसी काम नहीं आता, सिवाय इसके कि लोग ऐसे आदमियों कोसमृद्ध और पैसे वाले कह लें।परायी जमीन-जायदाद को हड़पने के आदी लोगों को अपना जीवन रहते इन बातों को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए वरना मरने के बाद तो सर्पयोनि प्राप्त करनी ही है, फिर कुछ नहीं कर पाएंगे।

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