जीवन का आधार है अष्टरूपा
लक्ष्मील क्ष्मी का अर्थ मात्र धन या मुद्रा से ही नहीं है बल्कि जीवन में सुख- समृद्धि से भी है। जिसकी पूजा- अर्चना से ऎश्वर्य, यश, तेज, ओज, सौन्दर्य, भाग्य और चारों पुरूषार्थो (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) आदि की वृद्धि भी होती है। इसके लिए जरूरी है शास्त्रों में बताए गए लक्ष्मी के आठ रूपों का पूजन किया जाए।
धान्य लक्ष्मी
घर में कभी अन्न की कमी न हो तथा प्रकृति निरंतर अच्छी फसल प्रदान करती रहे क्योंकि इसी धान्य पर हम आश्रित हैं। इन सबकी पूर्ति और निरंतर उपलब्धता के लिए लक्ष्मी के धान्य रूप की पूजा- अर्चना की जाती है। यही वजह है कि लक्ष्मी पूजन के दौरान पूजा सामग्री में लक्ष्मी जी के दोनों ओर गेहूं की बाली रखी जाती है।
विद्या लक्ष्मी
यहां विद्या का अर्थ मात्र पढ़ाई-लिखाई या किताबी जानकारी से नहीं है बल्कि बुद्धि और ज्ञान से है और ज्ञान का अर्थ है जागरण। अच्छे-बुरे की समझ के साथ-साथ अंतज्ञाüन उपलब्ध होना ही विद्या का उद्देश्य है। ज्ञान जातक में सिर्फ बुद्धि और वाणी में ही नहीं होना चाहिए बल्कि कर्म, व्यवहार, आचरण और स्वभाव आदि में भी होना चाहिए। जीवन में सही समय पर हमें सही विद्या और ज्ञान प्राप्त हो सके जिससे हम निरंतर उन्नति की ओर अग्रसर रहें, इसके लिए जरूरी है विद्या लक्ष्मी की कृपा हमारे ऊपर रहे।
धैर्य लक्ष्मी
धैर्य बहुत बड़ा सद्गुण है। जीवन में धन-धान्य और विद्या आदि सब कुछ हो लेकिन धैर्य ही न हो तो जीवन व्यर्थ है। ऎसा मानव अपने इस स्वभाव के कारण अपना सब कुछ गंवा बैठता है जिससे कई अन्य मानसिक विकार पैदा होने लगते हैं। यदि हम संतुष्ट होना सीख जाएं तो बहुत सी व्याधियों और मुसीबतों से बच सकते हैं। मानव यदि संतुष्ट होना सीख जाए तो हर दुख-तकलीफ पर विजय प्राप्त कर सकता है। लक्ष्मीपति होने का विशेष गुण है धैर्य धारण करना। मनुष्य यदि स्थिर प्रकृति का है तो चंचला लक्ष्मी भी उसके पास स्थिर रहती है। इसलिए जीवन में धैर्य का होना जरूरी है जिसकी प्राप्ति के लिए धैर्य लक्ष्मी की पूजा-अर्चना आवश्यक है।
यश लक्ष्मी
लक्ष्मी का यह स्वरूप साधक को समाज में मान-सम्मान, यश, विजय, ऎश्वर्य, प्रतिष्ठा आदि प्रदान करने में सहायक होता है। शास्त्रों में लिखा है जो लोग खाने-पीने और सोने-जागने को ही अपने जीवन का उद्देश्य समझते हैं तथा धन प्राप्ति को ही अपना लक्ष्य समझते हैं ऎसे जातक निम्न श्रेणी के होते हैं। उच्च श्रेणी के जातक सदा अपने मान-सम्मान के लिए जीते हैं। जीते जी यश प्राप्त हो तथा यह यश स्थिर बना रहे ऎसी इच्छा के लिए यश लक्ष्मी रूप को पूजा जाता है।
संतान लक्ष्मी
जब लक्ष्मी इस रूप में रहती है तो जातक को संतान की प्राप्ति होती है। उसके वंश की वृद्धि होती है। शास्त्रों में बताए गए संस्कारों में विवाह संस्कार भी शामिल है और जिसके माध्यम से न केवल वंश वृद्धि होती है साथ ही संतान उत्पत्ति के बाद स्त्री अपने जीवन को पूर्ण भी समझती है।
सौभाग्य लक्ष्मी
लक्ष्मी का यह रूप भाग्य को स्थिर और उसमें वृद्धि करने वाला है। कर्म के बिना कुछ भी सिद्ध नहीं होता पर कई बार हम बड़े श्रम के साथ कर्म करते हैं फिर भी हमें अपने श्रमानुसार वह परिणाम नहीं मिलते जिसके हम हकदार होते हैं। पूर्व जन्म तथा इस जन्म के कर्मों के कारण ही लक्ष्मी मिलती है। सफलता के लिए सौभाग्य लक्ष्मी रूप की स्तुति से पूरा किया जा सकता है।
आयु लक्ष्मी
यह लक्ष्मी का आठवां रूप है। भले ही आप कितने ही विद्वान, यशस्वी, भाग्यशाली या सुखी और समृद्ध हों, सबका संबंध तब तक है जब तक आप जीवित हैं। इसलिए आप मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहें, आप अपने जीवन में आयु के रहते अधिक से अधिक सुखों का भोग कर जीवन के सपनों को साकार कर पाएं। इसके लिए लक्ष्मी के आयु लक्ष्मी रूप की आराधना करनी चाहिए।
धन लक्ष्मी
लक्ष्मी के विभिन्न रूपों में से एक रूप है धन लक्ष्मी, धन अर्थात रूपए-पैसों की देवी। जिसे वर्तमान युग में जीवन का सबसे बड़ा आधार माना गया है और अब जीवन में धन का अभाव होता है तो मनुष्य दुखी, निराश और असहाय महसूस करता है। इसी धन की प्राप्ति, जीवन में सुख साधना की वर्षा हो सके तथा घर में धन की स्थिरता और आगमन दोनों बने रहें, ऎसी कामना पूर्ति के लिए लक्ष्मी के जिस रूप की पूजा की जाती है, उसका नाम है धन लक्ष्मी।
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