हैसियत और जाति के चक्‍कर में गई राठी घराने की बहू की जान?

नई दिल्‍ली/इंदौर। 
 इंदौर की उद्यमी आकांक्षा राठी की मौत का राज सात दिन बाद भी अनसुलझा ही है। आंकाक्षा के परिवारवालों का आरोप है कि राठी परिवार ने कभी भी उनकी बेटी को अपनी बहू नहीं माना। जब से आकांक्षा ने अनिरुद्ध राठी से शादी की थी, तब से ही ससुरालवाले उसे तंग करने थे। सिर्फ अनिरुद्ध के दादा ही आकांक्षा को स्‍वीकार कर पाए थे। लेकिन उनकी मौत के बाद से लगातार अनिरुद्व और आकांक्षा को परेशान किया जाने लगा।
हैसियत और जाति के चक्‍कर में गई राठी घराने की बहू की जान?दूसरी ओर, इंदौर पुलिस दिल्‍ली पहुंच गई है। यहां वह आकांक्षा के घर पर उसकी मौत से जुड़े अहम सबूत जुटा रही है। वहीं, इंदौर में आकांक्षा के के ससुराल वालों ने जिला अदालत में दहेज प्रताडऩा के मामले में दोबारा अग्रिम जमानत की याचिका दायर की है। उनके आवेदन पर सुनवाई के दौरान पुलिस की आपत्ति के चलते अब अगली सुनवाई 2 नवंबर को होगी। इसके पहले उन्हें अपनी पहली याचिका पर 30 अक्टूबर तक अग्रिम जमानत मिली थी। आकांक्षा की पिछले दिनों अपने मायके दिल्ली में संदिग्ध मौत हो गई थी। उनका ससुराल इंदौर में है। गत माह ही आकांक्षा के पति की मौत हो गई थी। उसके बाद आकांक्षा ने 16 अक्टूबर को इंदौर के महिला थाने में ससुराल वालों के खिलाफ दहेज यातना की शिकायत की थी। इसी बीच उनकी मौत हो गई।


सात दिन बाद भी नहीं खुला आकांक्षा की मौत का रहस्य 
आकांक्षा राठी की मौत का रहस्य हफ्तेभर बाद भी बरकरार है। उनकी हत्या हुई या उन्होंने आत्महत्या की, इस सवाल के जवाब के लिए दिल्ली पुलिस पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का इंतजार कर रही है। हालांकि आकांक्षा को जानने वाले आत्महत्या की बात पर विश्वास नहीं कर रहे हैं। समाज में उनकी छवि आत्मविश्वासी महिला के रूप में थी। उन्होंने मेहनत और लगन के दम पर कम समय में आयरन एंड स्टील इंडस्ट्री को ऊंचाई पर पहुंचाने के साथ समाज में भी शोहरत हासिल की थी। 
आकांक्षा और अनिरुद्ध राठी कॉलेज में साथ में पढ़ते थे। इस दौरान उनमें प्रेम हो गया। अनिरुद्ध के परिवार को यह रिश्ता पसंद नहीं था, लेकिन दोनों की खुशी के लिए वे तैयार हो गए। 2004 में उनकी शादी हो गई। इसके बाद अनिरुद्ध के दादा पूनमचंद राठी जो दिल्ली के मशहूर कारोबारी थे, ने पीथमपुर में अनिरुद्ध के लिए राठी आयरन एंड स्टील इंडस्ट्रीज की स्थापना की। दोनों इंदौर आकर स्कीम 74 में रहने लगे। आकांक्षा इंडस्ट्री में बतौर डायरेक्टर काम संभालने लगीं। दोनों की साझा मेहनत से कारोबार चल निकला और 2009 तक यह प्रदेश के प्रमुख उद्योगों में शुमार होने लगा। यह आकांक्षा की मेहनत और लगन का ही नतीजा था कि उन्हें प्रदेश की पहली युवा महिला उद्यमी सहित कई नामों से जाना जाता था। उद्योग जगत में उन्हें कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया। 

सामाजिक क्षेत्र में बढ़ा दायरा
आकांक्षा ने सामाजिक क्षेत्र में भी सक्रियता बढ़ाई और कई संगठनों में शामिल हुईं। सामाजिक संस्थाओं के लिए वे बड़ी दानदाता भी बनीं। कई सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में वे मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल होने लगीं। इस तरह उन्हें जानने और पसंद करने वालों की संख्या बढ़ती गई। 

2010 से व्यापार में आई गिरावट

राठी आयरन एंड स्टील इंडस्ट्रीज में वर्ष 2010 से गिरावट का दौर शुरू हुआ। दोनों ने इसे संभालने का भरपूर प्रयास किया। अनिरुद्ध ने परिवार से मदद भी ली। दिल्ली की एक कंपनी ने यहां पैसा भी लगाया, लेकिन सुधार नहीं हुआ। इंदौर की ही मैटलमैन कंपनी ने 2011 में पीथमपुर यूनिट को लीज पर लिया, लेकिन इस कंपनी को भी यहां सफलता नहीं मिली। करीब छह महीने बाद ही कंपनी ने लीज एग्रीमेंट खत्म कर दिया। इसके बाद करीब तीन माह यूनिट बंद रही। उस पर कर्ज भी चढ़ता जा रहा था। इस दौरान अनिरुद्ध और आकांक्षा दिल्ली चले गए। कर्जदारों के लगातार फोन से परेशान होने पर उन्होंने यह यूनिट मोयरा कंपनी को बेच दी और कर्ज चुकाया। इसके बाद दोनों का दिल्ली से आना-जाना चलता रहता था। 4 सितंबर को अनिरुद्ध की मौत हो गई, जिसका कारण हार्ट अटैक बताया गया। तब से आकांक्षा दिल्ली में पिता के पास रहने लगीं। 

हत्या या आत्महत्या 
पुलिस जांच कर रही है कि आकांक्षा के गले में बंधे दुपट्टे में गांठ खुद आकांक्षा ने लगाई थी या किसी और ने। घटना के वक्त घर में सिर्फ आकांक्षा के पिता और नौकर ही थे। दिल्ली पुलिस को आकांक्षा के पिता ने बताया कि वे और आकांक्षा दोनों ही डिप्रेशन के मरीज हैं। दस दिन पहले आकांक्षा ने महिला पुलिस थाने में ससुराल वालों के खिलाफ रपट लिखाई थी।

निजी गार्ड के भरोसे इंदौर का बंगला 

आकांक्षा का इंदौर के स्कीम 74 स्थित बंगला पिछले कुछ दिनों से निजी गार्ड के भरोसे है। यहां तैनात गार्ड संजय द्विवेदी ने बताया कि उसकी सिक्योरिटी कंपनी को राठी स्टील के मैनेजर ने गार्ड उपलब्ध करवाने को कहा था। इस पर 25 अक्टूबर से दो शिफ्ट में दो गार्ड यहां ड्यूटी पर हैं। उनके पहले तक यहां निजी गार्ड महेंद्र सिंह तैनात था, जो जाते समय बाहर मौजूद सारा सामान सिक्योरिटी कंपनी के अधिकारी के सुपुर्द करके गया है। इसमें दो कार और दो दो पहिया वाहन सहित अन्य सामान शामिल हैं। गार्ड ने बताया कि यहां दिल्ली से रोज फोन आता है और वो खैरियत पूछकर फोन रख देते हैं।

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