देखिये फोटो ग्राम्य हस्तशिल्प ही ला सकता है ग्राम स्वराज
- डॉ. दीपक आचार्य
सामाजिक विकास की धाराओं को बरकरार रखते हुए समाज को तरक्की देने में ग्राम्य स्वावलम्बन की भूमिका सदियों से सर्वोपरि रही है। जब तक देश में ग्राम्य आत्मनिर्भरता का माहौलबना रहा तब तक ग्रामीण विकास की गति बनी रही और रोजगार का संकट काफी हद तक काबू में था।हालांकि उस जमाने में जनसंख्या का विस्फोट उतना नहीं था जितना आज है। फिर भी मौजूदा जनसंख्या में भी हुनरमंद लोगों को काम मिल जाता था और स्थानीय स्तर पर उत्पादन सेलेकर प्रसंस्करण तक की सामान्य सुविधाएं उपलब्ध थीं।ग्रामीणों की आजीविका और सामाजिक संबधों के विकास में स्वावलम्बन और पारस्परिक अन्तर्सम्बंधों का विशेष महत्त्व था। कालान्तर में विदेशी प्रभाव कहें या पाश्चात्य संक्रमण अथवामैकाले की शिक्षा पद्धति का भारतीयों पर आरोपण।
लेकिन इतना तो तय है कि परंपरागत हुनर और ज्ञान से हम किनारा करते जा रहे हैं और उसी का परिणाम है कि आज बेरोजगारी एवं बेकारी के संकट से सभी को जूझना पड़ रहा है औरसिर्फ पैसा कमाने के मकसद से ही लोगों की भीड़ सरकारी नौकरियों की तरफ बेतहाशा बेसुध होकर भाग रही है।आज फिर जरूरत है तो इस बात की कि हम ग्राम आधारित कामों को बढ़ावा दें, ग्राम्य हुनर को र्नइअ तकनीकों के साथ विकसित करें और ग्रामोद्योग तथा हस्तशिल्प को भरपूर प्रोत्साहनदेते हुए ग्राम्य आकर्षण को बनाए रखें, तभी गांवों का विकास संभव है और इसी से शहरीकरण की घातक प्रवृत्ति पर अंकुश लग सकेगा।सदियों से ग्राम्य जन जीवन का आधार रहे हस्तशिल्प को प्रोत्साहित कर देश-दुनिया के कद्रदानों तक पहुँचाने और हस्तशिल्पियों-दस्तकारों के जीवन में नई उमंग भरने को लेकर आजविशेष प्रयासों की जरूरत है। हालांकि सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर इस दिशा में कई संस्थाएं और विभाग काम कर रहे हैं लेकिन इन सभी में आंचलिकताओं से परिपूर्ण और स्थानीय मांग परआधारित योजनाओं का निर्माण ग्राम्य स्तर पर ही किया जाना जरूरी है।देश के विभिन्न हिस्सों में स्थान विशेष के अनुरूप कई अलग-अलग ग्रामोद्योग और परंपरागत हस्तशिल्प छोटे-बड़े स्तर पर संचालित है लेकिन इसे ही यदि थोड़ा और परिष्कृत व व्यापककर दिया जाए तो भारतवर्ष में पांच सौ से अधिक स्थान ऐसे हैं जहां के स्थानीय उत्पादों को विश्व बाजार में लोकप्रियता दिलायी जा सकती है। इसके साथ ही इन ग्रामीण दस्तकारों के परम्परागतहस्तशिल्प के विकास व विपणन के लिए विभिन्न प्रभावी गतिविधियों का संचालन किया जाना आज जरूरी है।ग्रामीण हस्तशिल्प को प्रोन्न्त करने के लिए बहुत थोड़े से सकारात्मक चिन्तन और प्रयासों की जरूरत भर है। ऐसा हो जाने पर ग्रामीण इलाकों में छोटे-छोटे उद्यमों केा विकास व विस्तारकी दृष्टि प्राप्त होने के साथ ही स्वरोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी होगी और इसका सीधा एवं सकारात्मक असर गरीबी उन्मूलन के प्रयासों पर पड़ेगा तथा विभिन्न क्षेत्रों के ग्राम्य हस्तशिल्प की पूछसीमित क्षेत्र के दायरों से बाहर निकल कर देश-विदेश तक पहुँचेगी।इसके लिए हर क्षेत्र में सघन एवं विस्तृत सर्वेक्षण तथा एक वैज्ञानिक कार्य नीति अपना कर इस कार्य को आकार दिए जाने की जरूरत है। इसमें सर्वाधिक ध्यान स्थानीय कच्चे माल,हस्तशिल्प की प्रकृति और क्षेत्र की मांग पर दिया जाना जरूरी है। इसमें यह भी देखा जाना जरूरी है कि किस प्रकार देश में हस्तशिल्प की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रहे क्षेत्रों की पुरानी हस्तशिल्प कला कापुनरूत्थान कर आधुनिक बाजार व्यवस्था से जोड़ा जा सके।यह तो भलीभांति स्पष्ट है ही कि गांवों में पहाड़ी, आदिवासी तथा ग्रामीण प्राचीन काल से समाज के लिए उपयोगी सामग्री का निर्माण करने में अपने हस्तशिल्प हुनर का बेहतर उपयोग करतेरहे हैं। इनमें तीर-कमान, मीनाकारी, पत्थर की नक्काशी, चर्म उद्योग, मूर्तिकला, पत्थर एवं काष्ठ के खिलौनों का निर्माण, मोलेला व टेराकोट जैसे असंख्य उत्पाद बेहद लोकप्रिय रहे हैं।इन्हीं प्रयासों के फलरूवरूप मोजडी को राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में लोकप्रियता मिली, ब्लू पोटरी के विकास में भी कीर्तिमान स्थापित हुए। इसी प्रकार चर्म उद्योग, टेराकोटा, उन व वस्त्र,हेण्डलूम, खादी व हस्तशिल्प उपक्षेत्रों को भी नई सफलता मिली।हाल के वर्षों में ग्रामीण हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के लिए कई गतिविधियों का संचालन हुआ और विभिन्न हिस्सों में दस्तकार समूहों के गठन व दक्षता संवर्धन के लिए कार्य किया गया।भारतवर्ष में ग्रामीण हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के लिए ही गैर कृषि विकास क्षेत्र में सूक्ष्म उद्यम ग्रामीण दस्तकारों व समूह के माध्यम से ग्राम्य हस्तशिल्प को नई दिशा देने, दस्तकारों के कौशलनिर्माण के साथ-साथ उन्हें डिजाइन और विपणन की सुविधा प्रदान करने के लिए भी कई गतिविधियों का संचालन जारी है।
आज सबसे बड़ी जरूरत यह है कि स्थानीय हस्तशिल्प को बढ़ावा देते हुए हस्तशिल्प में नई तकनीकों और वैज्ञानिक रीतियों से हस्तशिल्पियों को परिचित कराया जाकर उन्हें हरसंभवप्रोत्साहन दिया जाकर प्रेरित किया जाए और ग्राम्यांचलों में हस्तशिल्पियों के ऐसे सुदृढ़ समूह स्थापित किए जाएं जिनके माध्यम से देश-विदेश में विपणन से लेकर उनके द्वारा उत्पादित माल केनिर्यात की सरल और सहज सुविधाएं उपलब्ध हों।
आज के जमाने में ग्राम्य हस्तशिल्प और परंपरागत ग्राम्य उद्योगों के माध्यम से ग्राम स्वराज की स्थापना संभव है। इसी से ग्राम्य समुदाय की आत्मनिर्भरता सशक्त होगी और देश केविकास में गांवों का योगदान निरन्तर ऊँचाइयों के कीर्तिमान स्थापित करने में सक्षम होगा।

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