आओ सहेजे जीवन देने वाले पर्यावरण को 
खुल कर सुनाई भाषण और कविता में अपनी बात पर्यावरण संरक्षण को लेकर आज न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में चिन्ता निरन्तर गहरा रही है। दरअसल मौसम की मार अब किसी खास महीने में अथवा किसी खास देश पर देखने को नहीं मिल रही बल्कि मौसम की यह मार हर जगह, हर कहीं साल दर साल लगातार बढ़ रही है बल्कि अब तो ऐसा लगने लगा है, जैसे हर मौसम अपनी मारक क्षमता दिखाने के लिए ही आता है। गर्मी में जहां पारा 47-48 डिग्री तक जा पहुंचता है, वहीं सर्दियों में यह अपेक्षाकृत गर्म इलाकों में भी लोगों को बुरी तरह कंपकंपा जाता है और बरसात में कहीं इस कदर बारिश होती है कि लोग बाढ़ की विभीषिका झेलने को विवश हो जाएं तो कहीं लोग वर्षा ऋतु में भी एक-एक बूंद पानी को तरसते दिखाई पड़ते हैं और अकाल की नौबत आ जाती है। यह बात अपने हाथो से कागज पर पेन्सिल और पेन से तालीम के जरिये अपना भविष्य लिख रहे मासूमो ऩे बड़ी ही बेबाकी से कही . मोका था स्थानीय बालिका उच्च माद्यमिक विधालय में सी सी डी यू , भारत स्काउट गाइड बाड़मेर इकाई और जन स्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी विभाग के विश्व पर्यावरण सप्ताह के तीसरे दिन भाषण और कविता प्रतियोगिता का . सी सी डी यू के आई ई सी कंसल्टेंट अशोक सिंह ऩे बताया कि बालिका उच्च माद्यमिक विधालय में सी सी डी यू , भारत स्काउट गाइड बाड़मेर इकाई और जन स्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी विभाग द्वारा आयोजित करवाई जा रही प्रतियोगिताओ के क्रम में गुरुवार के दिन कविता पाठ और भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमे 55 के करीब बच्चों ऩे बड़े ही जोश के साथ भाग लिया . अपनी उम्र से बड़े भावो के साथ बच्चों ऩे कहा कि अमेरिका में कैटरीना और रीटा नामक तूफानों के चलते हुई भयानक तबाही, भारतीय उपमहाद्वीप में आया विनाशकारी भूकम्प, भारत में इस वर्ष कई राज्यों में आई भयानक बाढ़, क्या इन्हें भी प्रकृति का प्रकोप ही नहीं माना जाएगा? अंटार्कटिका में पिघलती बर्फ और वहां उगती घास ने भी सबको हैरत में डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी है लेकिन यह सब हमारे दुष्कृत्यों का ही नतीजा है क्योंकि प्रकृति से हमारी छेड़छाड़ जरूरत से ज्यादा बढ़ गई है तथा पर्यावरण संतुलन को हमने बुरी तरह बिगाड़ दिया है। हमारी लापरवाहियों का ही नतीजा है कि भूगर्भीय जल भी अब दूषित होने लगा है और बढ़ते प्रदूषण के चलते जहरीली गैसें ‘एसिड’ की बरसात करने लगी हैं। पृथ्वी का निरन्तर बढ़ता तापमान और जलवायु में लगातार हो रहे भारी बदलाव आज किसी एक देश के लिए नहीं बल्कि समूचे विश्व में मानव जीवन के लिए गंभीर खतरा बनते जा रहे हैं। मौसम का बिगड़ता मिजाज मानव जाति, जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों के लिए तो बहुत खतरनाक है ही, पर्यावरण संतुलन के लिए भी एक गंभीर खतरा है। हालांकि प्रकृति बार-बार अपने प्रकोप, अपनी प्रचंडता के जरिये हमें इस ओर से सावधान करने की भरसक कोशिश भी करती है पर हम हैं कि लगातार इन खतरों की अनदेखी किए जा रहे हैं। पर्यावरण का संतुलन जिस कदर बिगड़ रहा है, ऐसे में जरूरत इस बात की है कि बचपन से ही हमें पर्यावरण की हानि से होने वाली गंभीर समस्याओं के बारे में सचेत किया जाए और यह सिखाया जाए कि हम अपने-अपने स्तर पर पर्यावरण संरक्षण में या भागीदारी निभा सकते हैं। ईन प्रतियोगिताओ के निर्णायक कि भूमिका में हनुमान राम , मदन लाल भूत और ओम प्रकाश शर्मा रहे वही इस मोके शिविर संचालक मुख्त्यार खिलजी ऩे बच्चों को आज कि आवश्यकता कुदरत को सहेजने कि बज कही . इस आयोजन में मदन खत्री को भाषण प्रतियोगिता का और वंदना गुप्ता को कविता प्रतियोगिता का प्रभार सोपा गया जिसे उन्होंने बखूबी अंजाम दिया .

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