खामोश हो गया गजल का शहंशाह
कराची।
गजल की दुनिया अभी जगजीत सिंह के असामयिक निधन से उबर भी नहीं पाई थी कि एक और गजल गायक इस दुनिया को अलविदा कह गया। गजल के शहंशाह मेहंदी हसन का बुधवार को इंतकाल हो गया। वह कराची के आगा खान अस्पताल में भर्ती थे,जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। 84 वर्षीय मेहदी हसन पिछले 12 साल से बीमार चल रहे थे। वह फेंफड़ों में संक्रमण से पीडित थे।
1950 का दौर उस्ताद बरकत अली, बेगम अख्तर, मुख्तार बेगम जैसों का था, जिसमें मेहदी हसन के लिये अपनी जगह बना पाना सरल नहीं था। एक गायक के तौर पर उन्हें पहली बार 1957 में रेडियो पाकिस्तान में बतौर ठुमरी गायक पहचान मिली। उसके बाद मेहदी हसन ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
1957 से 1999 तक सक्रिय रहे मेहदी हसन ने गले के कैंसर के बाद पिछले 12 सालों से गाना छोड़ दिया था। उनकी अंतिम रिकाडिंüग 2010 में सरहदें नाम से आई, जिसमें फरहत शहजाद की लिखी "तेरा मिलना बहुत अच्छा लगे है"की रिकाडिंüग उन्होंने 2009 में पाकिस्तान में की और उस ट्रेक को सुनकर 2010 में लता मंगेशकर ने अपनी रिकाडिंüग मुंबई में की। इस तरह यह युगल अलबम तैयार हुआ।
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