सरबजीत के लिए राष्ट्रपति से फिर गुहार

सरबजीत सिंह
पाकिस्तान में मौत की सज़ा का सामने कर रहे भारतीय नागरिक सरबजीत सिंह की रिहाई के लिए राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी से फिर गुहार लगाई गई है.सरबजीत की ओर से राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रादरी के समक्ष दया की अपील की गई है. इससे पहले चार बार पाकिस्तान के राष्ट्रपति से उनकी रिहाई के लिए दया याचिका दायर की जा चुकी है.सरबजीत के वकील ओवैश शेख ने बीबीसी से बातचीत करते हुए कहा कि उनके मुव्वकिल ने दो पन्नों का एक पत्र राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी के नाम लिखा है और उन्होंने राष्ट्रपति भवन को भिजवा दिया है.उनके मुताबिक पत्र के साथ एक लाख के करीब भारतीय नागरिकों ने हस्ताक्षर भी हैं और उन्होंने राष्ट्रपति आसिफ ज़रदारी से डॉ. खलील चिश्ती के बदले सरबजीत की रिहाई के लिए गुहार लगाई है.
शाही इमाम का भी पत्र
उन्होंने कहा कि सरबजीत की रिहाई के लिए राष्ट्रपति को भेजे गए पत्र के साथ दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम सयद अहमद बुखारी और ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के प्रभारी मोहम्मद यामीन हाशमी के पत्र भी शामिल हैं.ओवैस शेख का कहना है कि दोनों पत्रों में भी राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी ने इंसानी हमदर्दी की बुनियाद पर सरबजीत को रिहा करने का अनुरोध किया गया है.
पाकिस्तानी अधिकारियों का कहना रहा है कि सरबजीत सिंह का नाम दरअसल मंजीत सिंह है और 1990 में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में हुए बम विस्फोट में वे शामिल थे. उस विस्फोट में 14 लोगों की मौत हो गई थी.
लेकिन सरबजीत के परिवार का कहना है कि उसे झूठे मामले में फँसाया गया है और वे मंजीत नहीं बल्कि सरबजीत हैं.
गिलानी का हस्तक्षेप
पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट और पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ इससे पहले सरबजीत सिंह की दया याचिका ख़ारिज कर चुके हैं.मगर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ़ रज़ा गिलानी के हस्तक्षेप के बाद पाकिस्तानी अधिकारियों ने सरबजीत सिंह की मौत की सज़ा अगले आदेश तक रोक दी थी.सरबजीत के वकील के मुताबिक पाकिस्तानी अदालतों के फ़ैसलों की रोशनी में अगर फ़ांसी की सज़ा का क़ैदी एक लंबी क़ैद काटे और उनकी सज़ा पर अमल नहीं हो तो उनकी फ़ांसी की सज़ा को उम्र क़ैद में बदल दिया जाए.उनके मुताबिक सरबजीत सिंह को मौत की सज़ा सुनाई गई थी लेकिन वह पिछले 23 साल से क़ैद में हैं.उन्होंने कहा था कि राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी अदालती फ़ैसलों की बुनियाद पर सरबजीत सिंह की सज़ा-ए-मौत उम्र क़ैद में बदल सकते हैं क्योंकि वे पिछले 22 साल से जेल में क़ैद हैं.

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