जयसमन्द : एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झील
जयपुर,
इन्द्रधनुषी रंगों में रंगा राजस्थान अपने जादुई सम्मोहन से सैलानियों को सदियों से मौन निमंत्रण दे रहा है। राजस्थान की ऐतिहासिक, भौगोलिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठ भूमि के साथ-साथ यहां के किले, महल, देवालय, छतरियां, बावड़ियां जहां स्थापत्य एवं मूर्तिकला के अद्वितीय नमूने हैं वहीं पर्यटन की दृष्टि से जयसमंद झील उदयपुर जिले में जिला मुख्यालय से दक्षिण-पूर्व की ओर 51 किलोमीटर दूर उदयपुर से सलूम्बर मार्ग पर स्थित है। अपने प्राकृतिक परिवेश और बांध की स्थापत्य कला की खूबसूरती से जयसमन्द झील आज पर्यटकों के आकर्षण का महत्वपूर्ण स्थल बन गई है। उदयपुर के तत्कालीन महाराणा जयसिंह द्वारा 1687 से 1691 ईसवी के मध्य 14 हजार 400 मीटर लम्बाई एवं 9 हजार 600 मीटर चौड़ाई में निर्मित यह कृत्रिम झील एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील मानी जाती है। दो पहाड़ियों के बीच में ढेबर दरार (झील) को कृत्रिम झील का स्वरूप दिया गया और महाराणा जयसिंह के नाम पर इसे जयसमंद (जयसमुद्र) कहा जाने लगा। इस झील में 9 नदियों एवं आधा दर्जन से अधिक नालों से पानी आता था। अब प्रमुखतः गोमती और इसकी सहायक नदियों व कुछ नालों से पानी आता है।
झील में पानी लाने वाली गोमती नदी पर महाराणा जयसिंह ने 375 मीटर लम्बा एवं 35 मीटर ऊँचा बांध बनवाया जिसे तल की चौड़ाई 20 मीटर एवं ऊपर से चौड़ाई 5 मीटर है। बांध का निर्माण बखाड़ी की खानों के सफेद सुमाजा (सीस्ट) पत्थर से कराया गया है। मजबूती के लिहाज से दोहरी दीवार बनायी गई है। सुरक्षा की दृष्टि से इस बांध से करीब 100 फीट की दूरी पर 396 मीटर लम्बा एवं 36 मीटर ऊँचा एक और बांध का निर्माण कराया गया। महाराणा सज्जनसिंह एवं फतेहसिंह के समय में इन दो बांधों के बीच के भाग को भरवाया गया और समतल भूमि पर वृक्षारोपण किया गया।
स्थापत्य कला की दृष्टि से बना बांध अपने आप में आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। झील की तरफ के बांध पर 6 खूबसूरत छतरियां कुछ-कुछ दूरी पर बनवाई गई है। गुम्बदाकार छतरियां पानी की तरफ उतरते हुए बनी हैं। इन छतरियों के सामने नीचे की ओर तीन-तीन वेदियां कुल 24 वेदियां (चौकी) बनायी गई हैं। सबसे नीचे की वेदियों पर सूण्ड को ऊपर किये खड़ी मुद्रा में पत्थर की कारीगरी पूर्ण कलात्मक मध्यम कद के 6 हाथियों की प्रतिमा बनाई गई हैं। यहीं पर बांध के सबसे ऊँचे वाले स्थान पर महाराणा जयसिंह द्वारा शिव को समर्पित नर्मदेश्वर महादेव का कलात्मक मंदिर भी बनाया गया है।
बांध के उत्तरी छोर पर महाराणा फतहसिंह द्वारा निर्मित महल हैं जिन्हें अब विश्रामगृह में तब्दील कर दिया गया है। दक्षिणी छोर पर बने महल महाराज कुमार के महल कहे जाते थे। दक्षिण छोर की पहाड़ी पर महाराणा जयसिंह द्वारा बनाये गये महल का जीणोर्द्घार महाराणा सज्जनसिंह के समय कराया गया। उन्होंने इस झील के पीछे जयनगर बसाकर कुछ इमारतें एवं बावड़ी का निर्माण कराया जो आबाद न हो से। आज यहां निर्माण के कुछ अवशेष ही नजर आते हैं।
झील के अंदर बांध के सम्मुख एक टापू पर पर्यटकों की सुविधा के लिए जयसमंद आइलेण्ड का निर्माण एक निजी फर्म द्वारा कराया गया है। यहां आने वाले पर्यटकों के लिए ठहरने के लिए अच्छे सुविधायुक्त वातानुकूलित कमरे, रेस्टोरेन्ट, स्विमिंगपूल एवं विविध मनोरंजन के साधन उपलब्ध हैं। यहां तक पहुंचने के लिए बोट का संचालन किया जाता है। बोट से झील में घूमना अपने आप में अनोखा आनन्द प्रदान करता है।
जयसमन्द के निकट वन एवं वन्यजीव प्रेमियों के लिए वन विभाग द्वारा वन्यजीव अभ्यारण्य भी बनाया गया है। यहां एक मछली पालन का अच्छा ेन्द्र भी है। जयसमंद झील की खूबसूरती और प्राकृतिक परिवेश की कल्पना इसी से की जा सकती है कि अनेक फिल्मकारों ने अपनी फिल्मों में यहां के दृश्यों को शूट किया है। सड़क किनारे-किनारे सघन वनस्पति एवं वन होने से उदयपुर से यहां पहुंचना भी अपने आप में रोमांच का अनुभव कराता है।
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