यहा भी हो कोई गौरव पहल
बचपन जो एक गीली मिट्टी के समान होती है इसे जिस रूप में दलों वो उस रूप में डल जाता है जिस उम्र में बच्चे खेलने -कूदते है अगर उस उम्र में उनका विवाह करा दिया जाये तो उनका जीवन खराब हो जाता है। दुनिया के तेज कदमो के साथ हम बाड़मेर के लोग तेजी से कदम बढ़ा रहे हें लेकिन आज भी बाल विवाह हो रहे हें . क्या इसके पीछे आज भी अज्ञानता है या फिर धार्मिक, सामाजिक मान्यताएँ और रीति-रिवाज ही इसकी खास वजह है कि कारण चाहे कोई भी हो इसका खामियाजा तो बच्चों को ही भुगतना पड़ता है बाल विवाह बच्चों का जीवन चौपट कर देता है खेलने ओर पड़ने कि उम्र में यदि उनकी शादी कर दी जाये तो उनका केरीयर चौपट हो जाता है उनकी पढ़ाई-लिखाई बीच में ही रुक जाती है और उनका विकास अवरुध हो जाता है। बाल- विवाह के फल स्वरुप उत्पन्न हुई संतान भी कमजोर ओर कम ही जी पाती है और यदि पति कि मौत हो जाए तो उसे उम्र भर विधवा का जीवन जिना के लिए छोड़ दिया जाता है जो उसके लिए नरक से कम नही बाल विधवा समाज और परिवार के लिए सही नही होती है। इसमे दो मासूम जिंदगी को हमेशा के लिए बाँध दिया जाएँ. हम क्यों भूल जाते है कि अगर कच्चे मटके में पानी डालें तो वह ढ़ह ही जायेगा। पूरे राजस्थान में बरसो से बाल विवाह के सबसे ज्यादा मामले बाड़मेर में सामने आते है लेकिन यहा इस कुरूति को पूर्णरूपेण खत्म करने के लिए आज भी प्रभावी कदम की जरूरत है।
एक तरफ जहां बाड़मेर से सैकड़ो किलोमीटर दूर भरतपुर में बाल विवाह रोकने के प्रयासों के तहत जिला प्रशासन ने विवाह के निमंत्रण पत्र पर वर व वधू की जन्मतिथि प्रकाशित करना अनिवार्य कर दिया है। भरतपुर में अक्षय तृतीया के अवसर पर बाल विवाह के अनेक मामले सामने आते हैं। भरतपुर जिला मजिस्ट्रेट गौरव गोयल की ओर से जारी किए गए आदेशों में जिले के पि्रंटिंग प्रेस मालिकों से वर-वधू की जन्मतिथि प्रकाशित करने से पहले उनके अभिभावकों से इसका प्रमाण हासिल करने के लिए कहां है। इसके साथ ही प्रत्येक कार्ड पर बाल विवाह एक अपराध है' जैसी चेतावनियां लिखी होंगी।
इन आदेशों का उल्लंघन करने वाले पि्रटिंग प्रेस मालिकों की गिरफ्तारी होगी और उन्हें इस मामले में छह महीने की कैद व 1,000 रुपये जुर्माने की सजा हो सकती है। गौरतलब है कि 24 अप्रैल को अक्षय तृतीया है और इसे विवाहों के लिए बहुत पवित्र दिन माना जाता है। हिदू महीने वैशाख में अमावसी (नया चांद) के तीसरे दिन अक्षय तृतीया पड़ती है। जिला प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आईएएनएस को बताया, यहां अक्षय तृतीया के अवसर पर बाल विवाह बहुत ज्यादा होते हैं। विवाह समारोहों में मेहमानों को आमंत्रित करने के लिए निमंत्रण पत्र छपना सामान्य है।
आदेशो े मुताबिक पि्रंटिग प्रेस मालिकों को इन आदेशों का पालन करने के निर्देश दिए हैं। उनसे प्रत्येक विवाह के लिए छपने वाले निमंत्रण पत्रों में से एक प्रशासन के पास जमा कराने के लिए कहा गया है। इन निमंत्रण पत्रों की बारीकी से जांच की जाएगी।
इसके अलावा राजस्थान सरकार ने जिला प्रशासन व पुलिस अधिकारियों को चेतावनी दी है कि यदि वे अक्षय तृतीया के अवसर पर बाल विवाह रोकने में असफल रहे तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। राज्य के गृह विभाग ने जिला कलेक्टरों व पुलिस अधीक्षकों को लिखित निर्देश में उनसे अक्षय तृतीया पर होने वाले बाल-विवाह पर कड़ी नजर रखने के लिए कहा है। इस आदेश के बाद जहां भरतपुर में इस बार मासूमो के आनंदी और जगीया बनने के मामलो में रोक लगेगी। वही इस कानून की पालना भी होगी।
थाली में बैठ कर या फिर गुड्डे गुड्डी े खेल सरीख्ो बाल-विवाह जहां पिश्चमी राजस्थान े कई समाजों में ेंसर की तरह आज ही अपना अंश छोड़े हुए है। जिसे प्रशासनिक कीमोथेरपी की जरूरत है जो बचपन की बर्बादी को रोक पाये या फिर ऐसे हालात ही ना बने इसकी नई तिजारत लिखी जाये।
बाड़मेर से सैकड़ो किलोमीटर दूर भरतपुर में प्रशासन की कमान संभाल रहे गौरव गौयल की याद इस बार सभी को आएगी क्योंकि उनकी पहल ने कम से कम भरतपुर में बालविवाह े ताबूत पर आखिरी कील ठोकने की कोशिश की है।
बाड़मेर की जिला कलक्टर डॉ. वीणा प्रधान से भी हर थार े वासी को उम्मीद है कि वो भी अपने अनुभवों े तरकश से कोई ऐसा नया नियमरूपी तीर निकाल कर कुछ नया करने की कोशिश करेगे नही तो भरतपुर की तरह रेतीले बाड़मेर में भी जरूरत है ऐसी ही गौरव पहल की।
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