हम भी कर सकते हैं ऎसा
जयपुर।

राजस्थान में इंदिरा गांधी नहर सबसे बड़ी नहर परियोजना है, जिसकी लम्बाई 445 किमी. है। इसकी शाखाओं और छोटी नहरों की लम्बाई 8123 किमी. है। नहर का करीब 80 प्रतिशत हिस्सा बीकानेर, जोधपुर और जैसलमेर से हो कर गुजरता है। यही वह क्षेत्र है जहां सबसे ज्यादा सौर ऊर्जा परियोजनाएं लगी हुई हैं या आने वाले समय में लगेंगी। एक मेगावाट के सौर ऊर्जा संयंत्र के लिए करीब दो हेक्टेयर जमीन की जरूरत होती है। एक निजी सौर ऊर्जा कम्पनी के वरिष्ठ सलाहकार ए.एस. कपूर का कहना है कि इंदिरा गांधी नहर की चौड़ाई को देखते हुए एक किमी. में दो मेगावाट का प्लांट लगाया जा सकता है। बचने वाली जमीन का उपयोग किसी और तरह से किया जा सकता है। पानी के वाष्पीकरण में कमी का लाभ भी मिलेगा।
निवेशक को फायदा
जमीन खरीदने की जरूरत नहीं। नहर सरकार की है और इसे लीज पर लिया जा सकता है।
पम्पिंग स्टेशनों के पास प्लांट लगाए जाएं तो प्लांट से ग्रिड तक बिजली ले जाने पर होने वाला खर्च बच सकता है।
प्लांट की लागत में कमी आएगी।
सरकार को फायदा
नहरें लीज पर देने से होगी भारी आय।
इसके रख-रखाव की जिम्मेदारी निवेशक को देने से खर्च में बड़ी बचत।
सौर ऊर्जा के इस्तेमाल से पानी की पम्पिंग में बिजली का खर्चा बचेगा।
प्लांट नहीं लगने से बचने वाली जमीन अन्य उपयोग में आ सकती है।
इनका कहना है...
निवेशकों और सरकार के लिए यह बहुत ही फायदेमंद योजना है। सरकार को तुरंत इस बारे में सोचना चाहिए। इससे प्लांट की लागत में दस प्रतिशत तक की कमी आ सकती है।
ए.एस.कपूर, सौर ऊर्जा में काम कर रही एक कम्पनी के वरिष्ठ परामर्शक
योजना तो ठीक है, लेकिन नहर की सफाई की व्यवस्था बहुत जरूरी है। इस बारे में सोच कर ही सरकार को आगे बढ़ना चाहिए।
डॉ.रामप्रताप, पूर्व अध्यक्ष इंदिरा गांधी नहर मंडल
राजस्थान में अभी ऎसा कोई प्रस्ताव या विचार नहीं है, क्योंकि राजस्थान में नहर के पास वृक्षारोपण किया हुआ है। नहर पर पैनल लगाने में लागत भी ज्यादा आ रही है।
एम.एम. विजयवर्गीय, डायरेक्टर टेक्निकल, अक्षय ऊर्जा निगम
यह है बाधा
नहरी क्षेत्र में सौर ऊर्जा संयत्रों की सुरक्षा
रेगिस्तानी क्षेत्र में होने से नहर में बहुत मिट्टी आती है। नहर की सफाई की मशीनें बहुत बड़ी होती हैं। सौर पैनल लगने पर नियमित सफाई होना मुश्किल हो जाएगा।
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