"वधु" ढूंढते रहेंगे "वर"
जालोर:  राजस्थान पुरे में आधुनिक समय में भले विकास की गाथा गाई जा रही हो, लेकिन बेटियों को लेकर लोगों की सोच अब भी नहीं बदली है। जालोर  आज भी लोग बेटी होना एक अभिसाफ़ मानते है और लोगों की मानसिकता में अब भी बेटों का महत्व ज्यादा है। जनगणना के हाल ही जारी हुए आंकड़े इस बात को पुख्ता कर रहे हैं। पिछले एक दशक से सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर भी बेटियों के प्रति समाज में व्याप्त सोच को बदलने के प्रयास भी किए गए, लेकिन इसका भी कोई असर नहीं पड़ा। बावजूद इसके बेटियों की संख्या में गिरावट आई है।
लिंगानुपात के गड़बड़ाए समीकरण से परिवार वालों के सामने बेटे के ब्याह की चिंता सताने लगी है। जहां वर्ष 2001 में 1000 पुरूषों पर 964 महिलाएं थी। जो वर्ष 2011 में घटकर 951 रह गई है। इससे साफ जाहिर होता है कि आने वाले समय में यह समस्या और गहरा जाएगी। छह वर्ष के बच्चों के मौजूदा आंकड़ों में 891 बçच्चयां ही है। जो वर्ष 2001 में 921 थी। ऎसे में कन्या भ्रूण हत्या की बात को भी नकारा नहीं जा सकता है।
बिटिया की शिक्षा बदलेगी मानसिकता
लिंगानुपात में समानता लाने के लिए शिक्षा एवं जन जागरूता जरूरी है। जिससे ही समाज की मानसिकता में बदलाव आ सकता है। वहीं बालिका शिक्षा की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। बेटी ही बेटी को बचा सकती है।
संभले शहरवासी
लिंगानुपात को लेकर शहरी क्षेत्र मेे जागरूकता आई है। शहरी क्षेत्र में लिगंानुपात का आंकड़ा बढ़ा है। वर्ष 2001 में 1000 पुरूषों पर 889 महिलाएं थी। जो आंकड़ा अब बढ़कर 921 हो गया है। वहीं ग्रामीण क्षेत्र में लिंगानुपात एक दशक में गिरा है। ग्रामीण क्षेत्र में 2001 की जनगणना में 1000 पुरूषों पर 970 महिलाएं थी। जो घटकर अब 954 रह गई है।
बच्चे दो अच्छे पर चाहिए लड़का
शिक्षा एवं समय के साथ आए बदलाव से छोटा परिवार, सुखी परिवार की अवधारणा को बल मिला है। लेकिन लड़के की चाहत की मानसिकता में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। जिससे जिले में लिंगानुपात का समीकरण गड़बड़ाया हुआ है।

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