"मान्यता नहीं तो विदेशी धरती से करूंगा आंदोलन"
बालोतरा। राजस्थानी भाषा के शब्द शब्द ही नहीं मंत्र है। दस करोड़ लोगों द्वारा बोले जाने वाली यह भाषा एक हजार वर्ष पुरानी है। राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने को लेकर कई दशकों से आंदोलन चलाया जा रहा है। सर्व प्रथम क्रांतिकारी जयनारायण व्यास ने इस आंदोलन की शुरूआत की थी। राजस्थानी भाषा को शीघ्र मान्यता नहीं दिए जाने पर विदेशी धरती आंदोलन किया जाएगा। अखिल भारतीय राजस्थानी मान्यता संघर्ष समिति के अंतराष्ट्रीय संयोजक प्रेम भंडारी ने मंगलवार को डाक बंगले में संवाददाताओं में यह बात कही।
उन्होंने बताया कि राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की मांग को लेकर वर्ष 1944 में आंदोलन शुरू किया गया था। क्रांतिकारी जयनारायण व्यास ने सर्व प्रथम इस भाषा को मान्यता देने के लिए आवाज उठाई थी। पदमश्री कन्हैयालाल सेठिया, अहमदसिंह, बीकानेर के पूर्व महाराज करणसिंह आदि ने भी इस भाषा को मान्यता दिलाने के लिए खूब कोशिशें की। इस पर इंदिरा गांधी व राजीव गांधी में पूर्व में संविधान की आठवीं अनुसूची में इस भाषा को सम्मिलित करने का प्रयास किया था, लेकिन उस वक्त राज्य विधानसभा द्वारा इस भाषा को मान्यता देने को लेकर प्रस्ताव पारित नहीं किया था जिससे अनुसूची में शामिल नहीं किया जा सका।
इस भाषा को मान्यता दिलाने की मांग को लेकर गत 13 महिनों में नौ बार भारत आ चुके हैं। उन्होंने चार बार राष्ट्रपति से मुलाकात कर भाषा को मान्यता दिलाने की मांग की है। गृह राज्यमंत्री से भी मुलाकात कर भाषा को मान्यता दिलाने की मांग की। डॉ.अभिषेक मनु, सांसद अर्जुन मेघवाल, गिरिजा व्यास भी भाषा को मान्यता दिलाने को लेकर प्रयासरत है। इन्होंने संसद में आवाज उठाने के साथ प्रधानमंत्री के सामने पूरजोर तरीके से बात रखी है। भोजपुरी व राजस्थानी भाषा संवैधानिक मान्यता के लिए पात्रता रखती है। इसलिए इस बजट में इस भाषा को शामिल किया गया है। उम्मीद है कि शीघ्र ही केंद्र सरकार द्वारा भाषा को मान्यता दी जाएगी। भाषा को मान्यता नहीं दिए जाने पर वे विदेशी धरती से आंदोलन करेंगें।

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें

 
HAFTE KI BAAT © 2013-14. All Rights Reserved.
Top