दिल को छूता था राजीव का नेतृत्व : ममता मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को कई बार ऐसा लगा कि काग्रेस नेतृत्व ने उन्हें छला है, लेकिन अपनी किताब में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत राजीव गाधी को दिलों में बसने वाला नेता और प्रणब मुखर्जी को अपने भाई के समान बताया है। जब ममता काग्रेस में थीं, तब वर्ष 1991 में कोलकाता में एक रैली में कथित माकपा कार्यकर्ताओं ने उन पर हमला किया था। उन दिनों को याद करते हुए तृणमूल काग्रेस अध्यक्ष ने किताब में लिखा है- 'हमारे दिलों में बसने वाले नेता राजीव जी ने मेरे इलाज में खर्च हुई रकम का भुगतान करने की जिम्मेदारी ली। उन्होंने लोगों को यह पूछने के लिए मेरे पास भेजा कि क्या मैं आगे के इलाज के लिए अमेरिका जाना चाहती हूं।'

हालाकि, इस समय तृणमूल और काग्रेस के रिश्ते में काफी कड़वाहट आ गई है,, लेकिन वे केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को अपने बड़े भाई के समान मानती हैं। उन्होंने कहा-' मैंने उन्हें हमेशा सम्मान दिया है और उनके साथ मेरा रिश्ता बड़े भाई और छोटी बहन की तरह है।' मुख्यमंत्री ने जिक्र किया है कि 1986 में पार्टी से अलग होने के बाद प्रणब ने राष्ट्रीय समाजवादी काग्रेस पार्टी बनाई थी। उस समय ममता ने उन्हें पार्टी में वापस लेने के लिए राजीव गाधी से कई बार अनुरोध किया था।

ममता की आत्मकथा 'माई अनफॉरगेटेबल मेमोरीज' हाल ही में प्रकाशित हुई है। इसमें उन्होंने लिखा है कि 21 मई, 1991 को राजीव गाधी की हत्या की खबर सुनकर उन्हें इतना गहरा आघात लगा था कि एक सप्ताह तक वह न तो किसी से कुछ कह सकीं और न ही कुछ खा सकी थीं।

उन्होंने लिखा-'मैं एक बार फिर अनाथ हो गई। अपने पिता की मौत के बाद दूसरी बार। मैं अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लेती थी और रोती थी। राजीव गांधी की हत्या को दो दशक बीत चुके हैं लेकिन उनका मेरे जीवन पर इतना गहरा प्रभाव है कि मैं हर कदम पर उनकी उपस्थिति को महसूस करती हूं। जब भी मुझे समस्या होती है, जब भी मैं किसी बात से परेशान होती हूं, मेरी निगाहें मेरे कमरे की दीवार पर लगी राजीव की तस्वीर पर जाती हैं। जब भी उनकी बात होती है तो मुझे अपने मन में उनके परिवार के साथ गहरे जुड़ाव का खास अहसास होता है।'

ममता ने यहां तक कहा कि राजीव की मौत के बाद कांग्रेस में उत्पन्न शून्यता की वजह से वह पार्टी छोड़ने को बाध्य हुईं थीं और तृणमूल काग्रेस का गठन किया।

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