'मनु' के लिए इसलिए मां बने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के वैसे तो अपने चार बेटे थे, लेकिन वे तमाम भारतीयों को अपनी मानस संतान के तौर पर देखते थे। हालांकि अंतिम दिनों में बापू ने अपने साथ रही मनु बेन गांधी का पालन-पोषण मां के रूप में किया। महात्मा गांधी की पौत्री मनु से बापू बार-बार कहते थे कि मैं तो तुम्हारी मां बन चुका हूं। वैसे मैं बाप तो बहुत लोगों का बन चुका, लेकिन मां तो सिर्फ तुम्हारी ही बना हूं।
बापू के अंतिम दिन तक साथ रहीं मनु बेन
बापू की यह टिप्पणी मनुबेन गांधी लिखित किताब 'बापू मेरी मां' में उल्लेखित है। 1946 के आखिर में जब से मनु बेन महात्मा गांधी के साथ हुई तबसे उन्होंने वहां की हर अनुभव को अपनी डायरी में लिखी। मनु बेन नोआखाली का मिशन शुरू होने से लेकर बापू के अंतिम दिन तक उनके साथ रहीं थीं।
केवल औरत के पास भगवान की अनोखी देन
मनु बेन के मुताबिक पुरुष मां नहीं बन सकता, क्योंकि ईश्वर ने जो वात्सल्यपूर्ण हृदय औरत को दिया है वह पुरुष को नहीं दिया। हालांकि बापू ने पुरुष होकर भी भगवान की इस अनोखी देन में हिस्सा बंटाया था।
मां की तरह मनु का परवरिश किया बापू ने
'बापू मेरी मां' के अनुसार जिस तरह एक मां अपनी बच्ची की परवरिश करती है उसी तरह बापू ने मुझे बढ़िया तरीके से पाला था। मनु की उम्र जब सिर्फ 12 वर्ष की थी तभी उन्हें जन्म देने वाली मां का निधन हो गया था। शुरू में कस्तूरबा गांधी ने मां के रूप में मनु बेन का पालन-पोषण किया। बा के निधन के बाद मां का जिम्मा बापू ने संभाला था।
संस्कृत की पढ़ाई पर दिया जोर
मां की भूमिका में बापू ने मनु बेन के कपड़े पहनने के तरीके से लेकर नियमित पढ़ाई तक में सहयोग किया। विशेषकर बापू ने मनु बेन को संस्कृत पढ़ाना अंत तक नहीं छोड़ा उस समय भी जब उनकी तबीयत ठीक नहीं थी। इसके अलावा बापू ने गीता पढ़ाने में भी काफी दिलचस्पी ली।
सादगी को बेहद पसंद करते थे बापू
मनुबेन ने अपनी किताब में सादगी पसंद गांधीजी के व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों का वर्णन किया है। मसलन बापू की सख्त दिनचर्या, विलंब से परहेज, बच्चों से बेहद लगाव, समाज के हर व्यक्ति का ख्याल, सफाई-समय का सदुपयोग, रामनाम में श्रद्धा आदि शामिल है।
मनुबेन के अनुसार बापू की रामनाम में आखिर तक श्रद्धा बनी रही। 30 जनवरी 1948 को भी बापू ने मुझसे कहा था कि आखिरी दम तक हमें राम नाम रटते रहना चाहिए। इस तरह आखिरी वक्त भी बापू के मुंह से दो बार राम-राम सुनना मेरे ही भाग्य में लिखा था।

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