धक्का-मुक्की के बाद बदलनी पड़ी जगह
जयपुर। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के दूसरे दिन दोपहर 12.30 बजे आयोजन स्थल पर धक्का-मुक्की के माहौल ने आयोजन स्थल की व्यवस्थाओं की पोल खोल दी। गीतकार गुलजार और प्रसून जोशी की अगुवाई में शुरू हुआ "सुनो, सुनो एक कहानी" सत्र जगह की कमी के चलते बीच में ही रोकना पड़ा। आयोजन स्थल पर व्यवस्था से कई गुना अधिक लोगों के पहुंचने पर बात धक्का-मुक्की तक पहुंच गई। बाद में आयोजकों ने बात बिगड़ते देख इस सत्र का स्थान बदल कर "रियो टिंटो संवाद" की जगह "फ्रंन्ट लोन" कर दिया और सत्र का समय 12.30 से खिसाकाते हुए 1.30 बजे से किया गया।
अधूरी रह गई गुलजार-प्रसून की कहानी
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल का दूसरा दिन भी गीतों के गुलफाम गुलजार की नज्मों की रोशनी में नहाता रहा। लेकिन साहित्य के इस मेले में उनकी "कहानी" फिर भी अधूरी रही। दरअसल, 12.30 बजे से शुरू हुए "सुनो, सुनो एक कहानी" सत्र में गुलजार और प्रसून जोशी युवा कहानीकारों के सामने कहानी लेखन की बारीकियों पर चर्चा करने वाले थे, लेकिन अव्यवस्थाओं के चलते न वहां कोई चर्चा हुई और न उनकी "कहानी" पूरी हो सकी।
"सुनो, सुनो एक कहानी" के जरिए कहानी लेखन के क्षेत्र में जो साहित्यप्रेमी और युवा परिवर्तित स्थल पर गुलजार और प्रसून जोशी को सुनने पहुंचे उन्हें काफी निराशा हाथ लगी। दोनों ही गीतकारों ने यहां कहानी को महज 2-2 मिनट भी समर्पित नहीं किए और "कहानी" को छोड़ कविताओं की महफिल जमा ली। गुलजार की आसमानी नज्मों और प्रसून की सुरील कविताओं का श्रोताओं ने भी जमकर लुत्फ उठाया लेकिन जिस सत्र के लिए जो युवा लेखक यहां एकजुट हुए थे उन्हें महज नज्मों पर वाह-वाह कर लौटना पड़ा। दिल्ली से आए मैनेजमेंट स्टूडेंट पारूल वशिष्ठ ने कहा, गुलजार और प्रसून को इस सत्र में सुन कर बहुत अच्छा एहसास हुआ लेकिन कहानी का टॉपिक कही दरकिनार होने से मन में मलाल भी रहा गया। इसी तरह कोलकाता से आई सबीना ने भी खेद जताते हुए कहा, सत्र के दौरान कई लोगों ने कहानी पर चर्चा के लिए आवाज भी उठाई लेकिन गुलजार साहब ने अनसुना कर दिया।
जयपुर। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के दूसरे दिन दोपहर 12.30 बजे आयोजन स्थल पर धक्का-मुक्की के माहौल ने आयोजन स्थल की व्यवस्थाओं की पोल खोल दी। गीतकार गुलजार और प्रसून जोशी की अगुवाई में शुरू हुआ "सुनो, सुनो एक कहानी" सत्र जगह की कमी के चलते बीच में ही रोकना पड़ा। आयोजन स्थल पर व्यवस्था से कई गुना अधिक लोगों के पहुंचने पर बात धक्का-मुक्की तक पहुंच गई। बाद में आयोजकों ने बात बिगड़ते देख इस सत्र का स्थान बदल कर "रियो टिंटो संवाद" की जगह "फ्रंन्ट लोन" कर दिया और सत्र का समय 12.30 से खिसाकाते हुए 1.30 बजे से किया गया।
अधूरी रह गई गुलजार-प्रसून की कहानी
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल का दूसरा दिन भी गीतों के गुलफाम गुलजार की नज्मों की रोशनी में नहाता रहा। लेकिन साहित्य के इस मेले में उनकी "कहानी" फिर भी अधूरी रही। दरअसल, 12.30 बजे से शुरू हुए "सुनो, सुनो एक कहानी" सत्र में गुलजार और प्रसून जोशी युवा कहानीकारों के सामने कहानी लेखन की बारीकियों पर चर्चा करने वाले थे, लेकिन अव्यवस्थाओं के चलते न वहां कोई चर्चा हुई और न उनकी "कहानी" पूरी हो सकी।
"सुनो, सुनो एक कहानी" के जरिए कहानी लेखन के क्षेत्र में जो साहित्यप्रेमी और युवा परिवर्तित स्थल पर गुलजार और प्रसून जोशी को सुनने पहुंचे उन्हें काफी निराशा हाथ लगी। दोनों ही गीतकारों ने यहां कहानी को महज 2-2 मिनट भी समर्पित नहीं किए और "कहानी" को छोड़ कविताओं की महफिल जमा ली। गुलजार की आसमानी नज्मों और प्रसून की सुरील कविताओं का श्रोताओं ने भी जमकर लुत्फ उठाया लेकिन जिस सत्र के लिए जो युवा लेखक यहां एकजुट हुए थे उन्हें महज नज्मों पर वाह-वाह कर लौटना पड़ा। दिल्ली से आए मैनेजमेंट स्टूडेंट पारूल वशिष्ठ ने कहा, गुलजार और प्रसून को इस सत्र में सुन कर बहुत अच्छा एहसास हुआ लेकिन कहानी का टॉपिक कही दरकिनार होने से मन में मलाल भी रहा गया। इसी तरह कोलकाता से आई सबीना ने भी खेद जताते हुए कहा, सत्र के दौरान कई लोगों ने कहानी पर चर्चा के लिए आवाज भी उठाई लेकिन गुलजार साहब ने अनसुना कर दिया।

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