पयुर्षण पर्व के पाचवे दिन महावीर जन्म वाचन में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब
बाड़मेर
जिन कांतिसागर सूरि आराधना भवन में प.पू. गुरुवर्या प्रर्वर्तिनी शशिप्रभा श्रीजी म.सा. की शिष्या प.पू. शुभदर्शना श्रीजी म.सा. ने बताया ‘‘ कल्पसूत्र’’ के रचियता आचार्य भगवंत जिन हरिभद्रसूरी बताते है कि कोई भी महापुरूष तीर्थंकर वासुदेव चक्रवती जब अपनी माता की कुक्षी में अवतरण होते हैं तो उनकी माता भिन्न-भिन्न तरह के स्वप्न देखती है। भगवान महावीर की माता त्रिशला रानी ने रात्रीकाल में सुन्दर, मनकों मोह लेने वाले 14 स्वप्न देखें। उन स्वप्नों को देखने के बाद महाराजा सिद्धार्थ को बताती है, महाराजा सिद्धार्थ स्वप्न पाढ़क से उन स्वप्नों का फलादेश पूछते हैं। 
स्वप्न पाढ़क एक-एक कर 14 स्वप्नों का फल (लाभ)बताकर कहते हैं। आपका कुल दिपक कुल की वृद्धि करने वाला महान शासन की सेवा करने वाला चहुं ओर कृति फैलाने वाला ओजस्वी, याजस्वी, तपस्वी होगा। जिससे उनका वाल्य नाम वर्धमान कुमार रखा गया। 
खरतरगच्छ चातुर्मास समिति के अध्यक्ष रतनलाल संखलेचा ने बताया कि भगवान महावीर के जन्म का नाटिका के द्वारा मंचन कर प्रियंवदा दासी द्वारा सिद्धार्थ राजा को भगवान महावीर के जन्म की बधाई दी गई। इस दृश्य को देखकर हजारों लोगों ने ‘‘जय महावीर- जय महावीर’, ‘‘त्रिशला नंदन वीर की-जय बोलो महावीर की’’ के नारों से आराधना भवन को गुंजायमान कर दिया। 
तत्पश्चात् गुरुवर्या शशिप्रभा श्रीजी ने चैत्र मास की त्रियदशी के दिन भगवान महावीर के उत्तरा फागुनी नक्षत्र में जन्म की घोषणा अपने मुर्खाबिन से की। सभी श्रद्धालुयों नो एक-दूसरे को नारियल से मुंह मीठा करवा कर बधाईयां दी। 
खरतरगच्छ चातुर्मास समिति के उपाध्यक्ष ओमप्रकाश भंसाली ने बताया कि जन्म वांचन के बाद सकल संघ गुरुवर्या के साथ गाजे बाजे से ‘‘ पालना जी’’ के लाभार्थी मदनलाल सगतमल मालू परिवार के यहां गये, जहां पर रात्रि में भक्ति-भावना का कार्याक्रम हुआ एवम् प्रभावना वितरण की गई।
खरतरगच्छ चातुर्मास समिति के कोषाध्यक्ष सम्पतराज बोथरा ने बताया कि रात्रि में वसी कोटड़ा भवन में भक्ति-भावना व समाज की बालिकाओं द्वारा तपस्या में अन्तराय, सभ्य वेशभूषा, जीवन में कोई किसी का नहीं विषय पर भव्य नाटिकाओं की प्रस्तुती दी गई। जिसे सैकड़ों लोगों ने देखा और तालियों से अनुमोदना की। 

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