राजकीय सम्मान के साथ हुआ शहीद हनुमनथप्पा का अंतिम संस्कार
नई दिल्ली।
सियाचिन में एवलांच का शिकार हुए लांस नायक हनुमनथप्पा का शुक्रवार को कर्नाटक के धारवाड़ में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। हजारों लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए मौजूद रहे। हनुमनथप्पा एवलांच के बाद 35 फीट बर्फ के नीचे माइनस 55 डिग्री टेम्परेचर में 125 घंटे दबे रहे थे। दिल्ली के आर्मी रेफरल हॉस्पिटल में उन्होंने गुरुवार सुबह अंतिम सांस ली। उनकी पार्थिव देह को आर्मी, नेवी, एयरफोर्स के चीफ और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी पहुंचे। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर हनुमनथप्पा को श्रद्धांजलि दी।

शहीद की याद में बनेगा स्मारक

शहीद हनुमनथप्पा के गांव वालों ने उनकी याद में एक बड़ा स्मारक बनाने का फैसला लिया है। जवान - शहीद के गांव वालों ने फैसला किया है कि उनके गांव में एक बड़ा स्मारक हनुमनथप्पा की याद में बनाया जाएगा। गुरुवार रात उनकी पार्थिव देह को दिल्ली से कर्नाटक के हुबली लाया गया। हनुमनथप्पा अंतिम संस्कार धारवाड़ की कुडांगोल तालुका के बेतादूर गांव में किया गया।

ग्रामिणों ने कहा हनुमनथप्पा पर हमें नाज है

हनुमनथप्पा के निधन की खबर मिलते ही उनके घर के बाहर गांव के बहुत से लोग एकत्रित हो गए थे। ग्रामीणों का कहना था कि हमने बहुत प्रार्थनाएं की। हर धर्म और समुदाय के लोगों ने दुआएं की, पर भगवान को कुछ और ही मंजूर था। उसने हमारी प्रार्थना नहीं सुनी। हमें दुख तो बहुत है, पर गर्व भी है कि गांव के सपूत ने देश के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी। सांसें टूटने तक हार नहीं मानी।

बजपन से ही मुश्किलों के शौकिन थे हनुमनथप्पा

हनुमनथप्पा बचपन में छह किमी पैदल चलकर स्कूल जाते थे, और अपनी आर्मी की सेवा वे मुश्किल जगहों पर पोस्टिंग लेते थे। हनुमनथप्पा को उनके करीबी फाइटर के मुताबिक वे कड़क अवाज वाले नरम दिल के शख्स थे। वो जानबूझकर चुनौती वाली जगहों पर पोस्टिंग मांगते थे। जम्मू-कश्मीर में 2008 से 2010 के बीच रहे। इसके बाद वो दो साल तक वो नॉर्थ-ईस्ट में पोस्टेड रहे।13 साल के आर्मी करियर में वे 10 साल मुश्किल हालात में रहे।10 मद्रास रेजिमेंट से उनकी पोस्टिंग अगस्त में सियाचिन में हुई। खास बात यह है कि हनुमनथप्पा आर्मी में ही जाना चाहते थे। लेकिन सिलेक्ट होने के पहले तीन बार वह रिजेक्ट कर दिए गए थे। हनुमनथप्पा की पत्नी का नाम महादेवी और दो साल की बेटी का नाम नेत्रा है।

6 दिन बाद बर्फ से जिंदा निकले थे हनुमनथप्पा

3 फरवरी को आए एवलांच में हनुमनथप्पा अपने नौ और साथियों के साथ करीब 35 फीट बर्फ में दब गए थे। 8 फरवरी को उन्हें बर्फ से निकाला गया था। उस समय उनकी हालत काफी खराब थी। उनके बाकी नौ साथियों के शव मिले थे। छह दिन बाद भी उनके बर्फ से जिंदा निकलने को चमत्कार कहा गया। शुरुआती इलाज के बाद 9 फरवरी को उन्हें दिल्ली के आर्मी हॉस्पिटल में भर्तीकराया गया। लेकिन उनकी हालत लगातार बिगडऩे के कारण वे कोमा में थे।गुरूवार को उनके ब्रेन में ऑक्सीजन की कमी हो गई। उनके दोनों फेफड़ों में निमोनिया हो गया है। इसके अलावा, उनके शरीर के कई अंग काम नहीं कर रहे थे। जिसके बाद गुरूवार सुबह 11:45 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।

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