जैलसमेर सीमावर्ती गांव मुहार के वाशिंदों को सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम मेें मिला पीने के पानी का तोहफा

अब तक कुएं से चड़स से निकालकर पीते थे पानी, वर्षो बाद हुई ग्रामीणों की तमन्ना पूरी
जैसलमेर 
जैसलमेर में प्राचीन समय से ही पानी की कमी रही है। जैसलमेर के भारत पाक सीमा से सटे सीमवर्ती गांव मुहार जहां आजादी के बाद से अब तक इस गांव के वासिन्दे पुराने गहरे कुएं से बैलों के माध्यम से चड़स सींचकर पीने का पानी निकालकर अपनी व पषुधन की प्यास बुझातें थें। इस कार्य के लिए प्रत्येक परिवार को अधिकतम समय पानी की व्यवस्था के लिए बिताना पडता था।
सीमावर्ती गांव मुहार जो भारत पाक सीमा से मात्र 18 किमी. दूरी पर है एवं वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार इस गांव की जनसंख्या मात्र 189 है तथा यहां पर लगभग 3000 गायें, 20 हजार भेड - बकरियां, 200 गधे व 300 ऊंट है। गांव के वासिन्दों की मुख्य आजीविका का साधन पषुपालन ही है।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2013 में जलदाय विभाग के अधिकारियों ने इस सीमा से सटे गांव का दौरा किया एवं वहां की पानी की स्थिति को देखा तो उन्होंने सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम के अंतर्गत इस गांव में स्थानीय स्तर पर पानी की व्यवस्था करने के लिए नलकूप निर्माण करने के प्रस्ताव बनाकर जिला कलक्टर को पेष किये गये थें। जिला कलक्टर द्वारा इस कार्य के लिए 29.18 लाख की राषि स्वीकृत की गई। जलदाय विभाग द्वारा गांव में अप्रेल 2015 में नलकूप का निर्माण करवाया जाकर उससे पानी आपूर्ति के लिए डीजल चलित इंजन के लगवाया गया।
केन्द्र प्रवर्तित योजना के अंतर्गत आजादी के बाद इस छोटे से सीमावर्ती गांव में सरकारी स्तर पर पेयजल के लिए सराहनीय कार्य किया गया। इस नलकूप के साथ ही 2 लाख लीटर का स्वच्छ जलाषय, 20 हजार लीटर का भूतल जलाषय, पषुखेली का निर्माण कराया गया साथ ही पम्प रुम का भी निर्माण करवाया गया। पेयजल की सरकारी स्तर पर व्यवस्था हो जाने के कारण मुहार के वासिन्दों के साथ ही वहां के हजारों पषुधन को पीने के पानी की अच्छी सुविधा मिलनी शुरु हो गई। जब पहली बार नलकूप गांव में खोद कर पानी की आपूर्ति शुरु की गई तो ग्रामीणों की खुषी का ठिकाना नहीं रहा। वहीं उन्होंने इस प्रयास के लिए राज्य सरकार के साथ ही जिला प्रषासन व जलदाय विभाग के प्रति भी आभार जताया।
ग्रामीणों ने बताया कि अब तक उनका अधिकतम समय केवल मानव व पषुधन के पीने के लिए ही खपत हो जाता था एवं वे मजदूरी करने के लिए इस कारण बाहर नहीं जा पाते थें। वहीं महिलाएं भी अधिकतम पानी के कार्य में ही सहयोग करती थीें। पानी की सुविधा मिलने से जहां पीने के पानी के लिए जो समय जाया होता था उसमें बचत हो गई वहीं अब वे इस बचत को अन्य मेहनत मजदूरी के लिए काम में लेना प्रारंभ कर दिया जिससें उन्हें आर्थिक सम्बलता भी मिल रही है और पषुपालक अब उत्साह के साथ अपने पषुधन का कार्य कर रहे है। जिस पषुधन को पानी पिलाने के लिए उनको कडी मेहनत करनी पडती थी वहीं पषुधन को दो - तीन दिन के अंतराल में पीने का पानी दिया जाता था अब इस सुविधा के बाद पषुधन को नियमित रुप से पीने का पानी मिल रहा है यहीं नहीं इस क्षेत्र में बहुतायत मात्रा में सेवण घास होने से आस - पास के क्षेत्र के पषुपालक भी यहां अपने पषुधन को बचाने के लिए पहुंचते है तथा उन्हें भी अब पीने के पानी की उपलब्धता होने के कारण उन्हें भी बहुत बडी राहत मिल रही है। इस प्रकार सीमा से सटे मुहार के वासिन्दों के लिए तो जैसे घर बैठें गंगा आ गई हो ऐसा भाव उनके मन मे हिलोरे मार रहा है। हर ग्रामीण के चेहरों पर इस सुविधा की मुस्कान झलक रहीं है।

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