बेरोजगारी का दंश झेल रहे छोटे दुकानदार
नगर परिषद की जल्दबाजी और बिना वार्ता के बस स्टेण्ड को शिफट करने का
खामियाजा भुगतने को मजबूर हैं तिलक बस स्टेण्ड के दुकानदार

बाड़मेर।
कौन नहीं चाहेगा कि उनके शहर की आबोहवा विकास के चरम को छूए। मगर विकास की इस परिकल्पना का विरोध नहीं करना, अमूमन सैकड़ो लोगो के घरों के चूल्हे की आग को ठण्डा कर देता हैं। और उनके व्यवसाय और घर-परिवार पर बेरोजगारी का विकराल सांप कुण्डली मार कर बैठ जाता हैं। ऐसा ही हुआ तिलक बस स्टेण्ड के उन दुकानदारों के साथ जिन्होने विकास की दौड़ में अग्रणी बन रहे बाड़मेर जिला प्रशासन ओर नगर परिषद प्रशासन द्वारा रोजवेज बस स्टेण्ड के स्थानांतरण का विरोध नही किया। नतिजतन कई दशक से काबिज रोड़वेज बस स्टेण्ड के स्थानांतरण के साथ ही यहां के दुकानदारों की रोजी रोटी मानों ठप्प हो गई। यहीं नहीं, रही-सही कसर नगर परषिद ने तिलक बस स्टेण्ड के प्रवेशद्वारों पर जेसीबी से खाई खोदकर पुरी कर ली।
जिला प्रशासन और नगर परिषद प्रशासन ने एक जुलाई को रोड़वेज बसो ंका संचालन स्थान तिलक बस स्टेण्ड से बदलकर केन्द्रीय बस स्टेण्ड कर दिया था। जिसके कारण तिलक बस स्टेण्ड पर काबिज सैकड़ो दुकानदारों का रोजगार चोपट हो गया। वहीं नगर परषिद द्वारा इस स्थान के प्रवेशद्वारों पर खाई खोदना मानों कोड में खाज का काम कर गया। और इन दुकानदारों का रहा सहा धंधा भी पूर्णत: चौपट हो गया।
तिलक बस स्टेण्ड परिसर में सौ से अधिक दुकाने बनी हैं। वहीं इस स्थान पर हाथ ठेला, केबिन, थड़ी व पल्ला लगाकर रोजगार कमाने वालों की संख्या भी 50 से अधिक ही हैं। इस स्थान पर रोड़वेज की बसे संचालित होने से हर किसी को रोजगार मुहैया था। वहीं आमजन को भी अपने गंतव्य स्थल तक जाने में भी सहूलियत होती थी। किन्तु एक जुलाई का दिन इन सबके लिए एक अकल्पिनीय व दु:खद दृश्य लेकर पेश आया, और यह दु:खद दृश्य था रोड़वेज बसों व बुकींग खिड़कीयों का यहां से नदारद होना। पहले दिन से लेकर आज दिन तक आमजन बस से यात्रा करने के उद्धेश्य से पहले इसी तिलक बस स्टेण्ड पर पहूंचता हैं और बसों को न पाकर मायूस हो जाता हैं। अब रही बात गंतव्य स्थल तक पहूंचने की तो यात्री अपनी जेब को भी संभालता हैं। क्योंकि तिलक बस स्टेण्ड पहूंचने के बाद पुन: केन्द्रीय बस स्टेण्ड पहूंचने के लिए जितना किराया टेक्सी वाले को देना होता हैं, उतने किराए में वह प्राईवेट साधन से अपने गंतव्य स्थल तक पहूंच सकता हैं। एैसे में रोड़वेज अपनी की करणी पर आंसु बहाने पर मजबूर हो जाता हैं, और यात्री भार का फायदा प्राईवेज साधनों को शुलभ हो जाता हैं। स्थानीय दुकानदार हो, यात्रीगण हो या रोड़वेज, हालात आज सबके लिए पीड़ादायक हैं। आनन फानन में रोड़वेज का स्थान बदलना जहां रोड़वेज, यात्री और दुकानदारों के लिए घाटे का सौदा बन गया। वहीं वर्तमान में तिलक बस स्टेण्ड के प्रवेशद्वारों पर खोदी हुई खाई स्थानीय दुकानदारों को तिल-तिल अपमानित करती प्रतित होती हैं। यह खाई हालांकि प्राईवेट बसों को रोकने क ेउद्धेश्य से बनाई गई होगी। किन्तु आमजन की आवाजाही बाधित होने से इन दुकानदारों को दौ-चार पैसों की जो आमदनी हो रही थी वहां मानों अब बेकारी और बेरोजगारी के विकराल सांप ने कुण्डली जमा ली हैं। इन परिस्थितियों में अब अगर जिला प्रशासन और नगर परिषद प्रशासन आगे आकर इन दुकानदारों को रोजगार से पुन: जोडऩे का प्रयास नहीं करता हैं । या इनके लिए रोजगार कमाने के उचित स्थान की व्यवस्था नहीं करता हैं तो हालात विरोध की शक्ल में भी पेश आ सकते हैं। जिसका सीधा असर तिलक बस स्टेण्ड पर बनने वाले मल्टी कॉम्पलेक्स के क्रियान्वयन पर पड़ सकता हैं। यही नहीं स्थानीय दुकानदारों की सुध स्थानीय जनप्रतिनिधियों को भी लेनी चाहिए। 

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें

 
HAFTE KI BAAT © 2013-14. All Rights Reserved.
Top