स्वर्णगिरि को मिले पहचान
जालोर। 
Won gold at Giriदेश-प्रदेश के इतिहास में स्वर्णिम स्थान रखने वाला स्वर्णगिरि दुर्ग अब तक सुगम राह का इंतजार कर रहा है। दुर्ग तक पहुंचने के लिए सुगम राह नहीं होने से पर्यटन से नक्शे पर भी दुर्ग गायब है। हालांकि, सरकार की बजट घोषणा व सार्वजनिक निर्माण विभाग की ओर से स्वर्णगिरि दुर्ग पर सड़क बनाने को लेकर कई बार प्रस्ताव तैयार किए गए, लेकिन वर्षो बाद भी कवायद फाइलों से बाहर नहीं आ पाई है। ऎसे में स्वर्णगिरि दुर्ग के वैभव को निहारने के लिए पर्यटक भी रूचि नहीं दिखा रहे हैं। इधर, राजनीति इच्छाशक्ति का अभाव भी इस कवायद में रोड़ा बना हुआ है।
दरअसल, मुख्यमंत्री की बजट घोषणा के बाद फरवरी 2013 में सार्वजनिक निर्माण विभाग की ओर से झरनेश्वर महादेव मंदिर प्रवेश द्वार के पास से जालोर दुर्ग तक सड़क निर्माण के लिए वन विभाग को आरक्षण प्रस्ताव भेजा था, लेकिन वन विभाग ने प्रस्तावित परियोजना की स्वीकृति, परियोजना रिपोर्ट, प्रशासनिक एवं तकनीकी स्वीकृति के बिना पीडब्ल्यूडी के प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी। ऎसे में अब सार्वजनिक निर्माण विभाग ने दोबारा प्रस्ताव बनाकर मुख्य अभियंता का भेजा है। जहां से स्वीकृति मिलने के बाद वन विभाग को भेजा जाएगा।

बढ़ गई लागत
सार्वजनिक निर्माण विभाग की ओर से फरवरी 2013 में तैयार प्रस्ताव में 5.45 किलोमीटर सड़क के लिए 1771 लाख रूपए अनुमानित लागत निर्घारित की गई थी, वहीं कार्य को दो वर्ष में पूरा किया जाना प्रस्तावित था। समय पर प्रशासनिक व तकनीकी स्वीकृति नहीं मिलने से अब लागत बढ़ गई है। मई 2014 में विभाग ने 1950 लाख की अनुमानित लागत के अनुसार प्रस्ताव बनाकर भेजा है।

दो विभागों का चक्कर

स्वर्णगिरि दुर्ग की पहाड़ी की भूमि वन विभाग के अधीन है। ऎसे में सड़क निर्माण से पहले पीडब्ल्यूडी को वन विभाग से अनुमति लेनी होगी, लेकिन सरकार की ओर से प्रस्ताव की स्वीकृति नहीं मिलने से अब तक वन विभाग की ओर से अनुमति नहीं मिल पाई है। वन विभाग को सड़क निर्माण के लिए करीब 5.45 हैक्टेयर भूमि देनी होगी। इसके अलावा पीडब्ल्यूडी को 6.26 लाख प्रति हैक्टेयर की दर से नेट प्रजेंट वेल्यू व वनीकरण मॉडल के लिए 101070 रूपए का भुगतान करना होगा।

छीपरवाड़ा में मिलेगी क्षतिपूर्ति भूमि

स्वर्णगिरि दुर्ग पर रोड निर्माण में उपयोग आने वाली भूमि के बदले जिला प्रशासन की ओर से वन विभाग को भूमि दी जाएगी। इसके लिए जिला कलक्टर की ओर से छीपरवाड़ा में वन विभाग को 5.45 हैक्टेयर भूमि देने की सहमति जारी की जा चुकी है।

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