संसार में रहकर इच्छाओं की पूर्ति असंभव- साध्वी सौम्यगुणाश्री
बाड़मेर। 
जिन कांतिसागरसूरि आराधना भवन के प्रांगण में साध्वी सौम्यगुणाश्री ने शांत सुधारस ग्रंथ का श्रवण करवाते हुए तीसरी संसार भावना पर उद्बोधन दिया। साध्वीश्री ने कहा कि चार गति रूप संसार के स्वरूप का विचार करना, संसार भावना है। संसार का एक अर्थ कषाय भी है। सर्व जगत् कषायाधीन है। संसार का दूसरा स्वभाव है कि यहां एक इच्छा पूरी होती है कि दूसरी खड़ी हो जाती है। ऐसा अनंत समय से चल रहा है। संसार का तीसरा स्वभाव है कि यहां एक चिंता दूर होती है कि दूसरी उत्पन्न हो जाती है। इस संसार में कदम-कदम पर आपत्तियां हैं, इन दुःखों का अंत साधक व्यक्ति ही कर सकता है।
साध्वीश्री ने कहा कि यह संसार एक भयंकर अटवी के समान है। इस जंगल में लोभ का दावानल सुलग रहा है, उसे बुझाना मुश्किल है। लाभ रूपी इच्छा से लोभ का दावानल बढ़ता जाता है। दूसरी तरफ मृग तृष्णा के समान विषय तृष्णा पीडि़त कर रही है। ऐसे वन में कोई निःशुक कैसे रह सकता है? इस संसार में धन का मोह बड़ा खतरनाक है। इस संसार में बाह्य उपाधियों का अंत नहीं है। यह संसार एक रंगमंच है, नाटक है, मुसाफिर खाना है। अनेक जीवों का संयोग अंततः छूटने वाला है।
पूज्याश्री ने आगे कहा कि यह संसार एक इन्द्रजाल है, यहां यथार्थ कुछ भी नहीं है। संसार की सुख-समृद्धि जीव को ठग रही है। यह संसार मोह की विडम्बना से भरा हुआ है। यहां की वस्तुएं चित्ताकर्षक हैं परन्तु उनके परिणाम अति भयंकर हैं। यह संसार उतार-चढ़ाव से भरा हुआ है। यहां हर प्रेम के पीछे स्वार्थ निहित है। इसलिए आद्य शंकराचार्य कहते हैं ‘जगन्मिथ्या ब्रह्मसत्यं’ अर्थात् संसार मिथ्या, झूठा व स्वार्थी है, एक मात्र सत्य आत्मा है। इस तरह संसार भावना का चिंतन करने से दुःखमय संसार का मोह दूट जाता है। वस्तुतः यहां सुखी कोई नहीं है। एक कवि ने कहा है कि- दाम बिना निर्धन दुःखी, तृष्णा वश धनवान, कहुं न सुख संसार में, सब जग देख्यो छान।
उवसग्हरं महापूजन सम्पन्न-
प.पू. संघरत्ना, सजनमणि, आशु कवियत्री गुरूवर्या साध्वी शशिप्रभाश्री की सुशिष्या साध्वीवर्या संवेगप्रज्ञाश्री व श्रमणीप्रज्ञाश्री के मासक्षमण (30 उपवास) की तपस्या के उपलक्ष में आयोजित पंचान्हिका महोत्सव के प्रथम दिन दोपहर में साध्वी सौम्यगुणाश्री की पावन निश्रा में सुप्रसिद्ध विधिकारक राजू भाई मलकापुर वालों के द्वारा महोत्सव के लाभार्थी परिवार शांतिलाल नीरजकुमार छाजेड़ सहित सैकड़ों श्रद्धालुओं द्वारा संगीतमय वातावरण में विधि-विधान, मंत्रोच्चार सहित अष्टप्रकारी पूजा व 108 दीपक की महाआरती के साथ भव्य मांडला (रंगोली) की संरचना कर उवसग्हरं महापूजन सम्पन्न हुआ।
रात्रि मंे स्थानीय गोलेच्छा डूंगरवाल ग्राउण्ड में पालीतणा से पधारे संगीतकार संजय भाई के द्वारा साध्वीवर्या के तपस्या निमित्त भक्ति भावना का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
दादा गुरूदेव महापूजन व सांस्कृतिक कार्यक्रम आज-
जिनकांतिसागरसूरि आराधना भवन में पंचान्हिका महोत्सव के दूसरे दिन गुरूवार को दोपहर साध्वी सौम्यगुणाश्री की निश्रा में 71 जोड़ों के साथ दादा गुरूदेव का महापूजन सम्पन्न होगा।
रात्रि में गोलेच्छा डूंगरवाल ग्राउण्ड में स्थानीय बालक-बालिकाओं व महिलाओं द्वारा भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति दी जाएगी।

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