अब जनता नहीं, पार्षद चुनेंगे महापौर
जयपुर।
प्रदेश में महापौर और अन्य निकाय प्रमुखों का निर्वाचन अब निर्वाचित पार्षद करेंगे। राज्य सरकार ने सीधे जनता से महापौर चुनने की निर्वाचन प्रणाली खत्म करने का फैसला किया है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इस संबंध में स्वायत्त शासन विभाग की ओर से भेजे प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी। विभाग प्रमुख सचिव डी.बी. गुप्ता ने बताया कि महापौर के निर्वाचन नियमों में बदलाव कर आदेश जारी किया जाएगा। नवंबर में प्रदेश के 45 निकायों के चुनाव में बोर्ड में बहुमत प्राप्त पार्षद दल का नेता महापौर बनेगा।
हटाने के प्रावधान बदलेंगे
निकाय प्रमुखों को पद से हटाने के नियमों में भी बदलाव होगा। स्वायत्त शासन विभाग के संयुक्त विधि परामर्शी अशोक सिंह ने बताया कि राजस्थान नगरपालिका रिकॉल ऑफ चेयरपर्सन्स रूल्स 2012 में बदलाव कर यह प्रावधान किया जाएगा कि निकाय प्रमुखों को हटाने के लिए तीन चौथाई पार्षद अविश्वास प्रस्ताव ला सकेंगे। मौजूदा प्रावधान में इसके साथ-साथ जनमत संग्रह भी कराना जरूरी है।
यूं लागू हुई प्रणाली
वर्ष 2009 में नगरपालिका अधिनियम लागू होने के बाद प्रदेश में महापौर के प्रत्यक्ष निर्वाचन की प्रणाली लागू हुई। इसी के तहत नवंबर 2009 में पहली बार महापौर व निकाय प्रमुखों के चुनाव हुए।
अटकता है विकास
प्रदेश के सभी 184 शहरी निकायों में से जयपुर, अजमेर, टोंक, धौलपुर, बूंदी व सवाई माधोपुर सहित 55 निकाय ऎसे हैं जहां महापौर, सभापति या अध्यक्ष एक दल के और बहुमत वाले पार्षद दूसरे दल के हैं। इस राजनीतिक खींचतान से विकास कार्य कई बार अटका।
चुनावी घोषणा
भाजपा ने विधानसभा चुनाव घोषणा-पत्र में कहा था कि महापौर के प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली की समीक्षा की जाएगी। हाल में नगर निगम के भाजपा पार्षदों ने महापौर की निर्वाचन प्रणाली बदलने की गुहार की थी।
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