राजस्थानी सिनेमा को बचाना आज की सबसे बड़ी जरूरत:- लखविन्द्रसिंह
बाड़मेर। 
अब तक सरकार द्वारा न तो राजस्थानी सिनेमा को लेकर कोई सकारात्मक रूख अपनाया गया हैं और ना ही इस क्षैत्र से जुड़े लोगों को राहत देने के लिए कोई ठोस प्रयास किये गये हैं। वर्तमान में राजस्थानी सिनेमा दम तोड़ रहा हैं जिसे बचाना आज की सबसे बड़ी जरूरत हैं यह कहना हैं राजस्थानी सिनेमा के ख्यातिनाम निर्देषक लखविन्द्रसिंह का। अपनी फिल्म तांडव के प्रचार के लिए बाड़मेर पहुंचे सिंह बुधवार की रोज पत्रकारों से रूबरू हुए। पत्रकार वार्ता में उन्होने कहा कि राजस्थानी भाषा, संस्कृति कला और परिवेष को बचाए रखने के लिए कई लोग प्रयास कर रहे हैं बावजूद इसके राजस्थानी सिनेमा भोजपुरी, गुजराती और पंजाबी सिनेमा से बहुत पीछे हैं। राजस्थान में शुटिंग के लिए लोकेषन की कोई कमी नहीं हैं राजस्थान में बड़ी बड़ी बाॅलीवुड फिल्मों के अलावा कई हाॅलीवुड की फिल्मों की शुटिंग हो चुकी हैं बावजुद इसके राजस्थानी सिनेमा को किसी भी तरह का कोई प्रोत्साहन सरकार द्वारा नहीं दिया गया हैं। राजस्थानी मूल के राजश्री प्रोडेक्षन हाउस और केसी बाॅकाडिया प्रोडेक्षन हाउस जैसे नामी लोग भी अपनी मायड़ भाषा को बचाने में उदासीन हैं। एक सवाल के जवाब में सिंह ने कहा कि राजस्थानी भाषा में बनने वाली फिल्मों के लिए न तो राजस्थान में किसी तरह का वजीफा हैं और ना ही शुटिंग लोकेषन पर किसी तरह की रियायत दी जाती हैं। ऐसे में आज राजस्थानी सिनेमा दम तोड़ रहा हैं। तांडव के बारे में उन्होने बताया कि फिल्म दो कबीलों के संघर्ष की कहानी हैं और इस फिल्म की शुटिंग बाड़मेर के चैहटन और ढोक के अलावा जयपुर, बगड़, झुंझुंनु और सीकर में हुई हैं। इस फिल्म में इस स्थानीय कलाकारों ने काम किया हैं। यह फिल्म भी सिंह द्वारा निर्देषित पूर्व की फिल्मों माटी का लाल मीणा गुर्जर, भंवरी, थोर और हुकुम की तरह लोगों द्वारा पसंद की जा रही हैं। इस पूरी फिल्म में सेव राजस्थानी सिनेमा की बात मुखर होकर सामने आती नजर आएगी।
अच्छे दिन आने वाले हैं: पिछले कई सालों से राजस्थानी सिनेमा को लेकर संघर्ष कर रहे लोगों को उम्मीद हैं कि सरकार परिवर्तन के बाद राजस्थानी सिनेमा के लिए अच्छे दिन आने वाले हैं। पत्रकार वार्ता के दौरान लखविन्द्रसिंह ने बताया कि पूर्व गहलोत सरकार के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री बीना काक का पुतला जलाकर विरोध किया गया था लेकिन फिर भी सरकार द्वारा राजस्थानी सिनेमा को बचाने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किये गयंे हैं। पिछले 30 सालों से राजस्थानी फिल्म इंडस्ट्री दम तोड़ रही हैं जिसे बचाना बेहद जरूरी हो चुका हैं। सिंह के मुताबिक संघर्ष जारी हैं और अब लगता हैं कि अच्छे दिन आने वाले हैं।

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