महान् स्वतंत्रता सेनानी एवं राष्ट्र निर्माता सरदार वल्लभभाई पटेल
 अनिता महेचा
नवीन भारत के निर्माता देष की अखण्डता एवं एकीकरण के पुरोधा सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर , 1875 ई. को लाडबाई की कोख से गुजरात के कैरा जिला स्थित नाडियाड में उनके ननिहाल में हुआ। वह खेड़ा जिले के करमसद में रहने वाले किसान परिवार के झावेरभाई पटेल की चैथी संतान थे। सरदार पटेल ने अपने पैतृक गांव करसमद में प्रारंभिक विद्यालयी षिक्षा हासिल की। इन्होंने पाँचवीं कक्षा तक अंग्रेजी में प्राप्त की। उनकी शादी सन् 1893 में अठारह वर्ष की आयु में झवेरबाई से हुई। पटेल ने अपने विवाह को अपनी षिक्षा में बाधक बनने नहीं दिया।
बाईस वर्षीय आयु में उन्होंने मैट्रिक की कक्षा पास की और जिला अधिवक्ता की परीक्षा में भी उत्तीर्ण हुए जिससे वे नाडियाड में जिला वकील बन गये। वहां उनकी वकलात खूब चली। अपनी वकालात के दौरान उन्होंने ऐसे मुकदमे लड़े जिसे दूसरे नीरस एवं हारा हुआ मानते थे। यह उनकी प्रभावषाली वकालात का ही कमाल था कि उनकी ख्याति दिनो-दिन बढ़ती चली गई।
अगस्त, सन् 1910 में वे इग्लैंण्ड चले गए और सन् 1913 फरवरी में बैरिस्टर बन कर वे भारत लौटे। सन् 1917 में वे गांधी जी के संपर्क में आए। वे गांधीजी के अनुयायी बन गये। गुजरात सभा के गांधी जी अध्यक्ष थे और पटेल मन्त्री थे। गुजरात सभा के मंत्री के रुप में प्लेग विरोधी अभियान चलाया और प्लेग से पीड़ित लोगों की खूब देख-भाल एवं सेवा की। सन् 1919 में जब गौधरा में उनकी फौजदारी वकील के रुप में वकालत षिखर पर थी , उस समय वकालत को तिलांजली देकर वे सार्वजनिक जीवन में आ गये। वे अहमदाबाद नगरपालिका के पहले पार्षद चुने गये और आठ वर्ष बाद अध्यक्ष पद पर आपने नगर को साफ-सुथरा बनाने के लिये कई उपयोगी योजनाएँ बनायी।
सरदार पटेल के आग्रह पर गांधीजी ने बारदोली में प्रसिद्व सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ किया। पटेल ने बारदोली के किसानों को लामबद्ध करके सरकार को लगान न देने के लिये प्रेरित किया और किसानों के इस संघर्ष से अंग्रेज सरकार को झुक कर 22 प्रतिषत के स्थान पर 5.7 प्रतिषत की वृद्धि करने को बाध्य होना पड़ा।
इस संघर्ष में सफल होने के कारण आपको ’ सरदार ’ की उपाधि से सुषोभित किया गया। तभी से आपके नाम के आगे ’ सरदार ’ लिखा जाने लगा। उनकी गिनती राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम श्रेणी के नेताओं में होने लगी।
भारतीय समाज में दलितों के साथ लोग अच्छा व्यवहार नहीं करते थे। उन्हें नफरत की दृष्टि से देखा जाता था। जिससे राष्ट्र एकता की नींव कमजोर हो रही थी। सरदार पटेल ने इस नींव को सुदृढ़ बनाने की दिषा में अछूतों की माली दषा सुधारने के अनेक कार्य किए।

विगत 8 अगस्त ,1942 में भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित हुवा। परिणाम स्वरुप पटेल व अनेक राष्ट्रीय नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। जब देष स्वतंत्र हुआ तो आपको उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का दायित्व सौंपा गया। उस समय देष में लगभग 562 देषी रिसासतें थी , जिन पर अंगज सरकार का शासन नहीं था। पटेल ने दृढ़ ईच्छाषक्ति एवं बुद्धि कौषल के बल पर देषी रियासतों का भारतीय संघ में विलय करवाया। यह कार्य आसान नहीं था। फिर भी उन्होंने इसे संम्भव कर दिखाया। हैदराबाद के निजाम अपने राज्य को भारत सरकार में नहीं मिलाना चाहते थे। पहले तो सरदार पटेल ने समझाया-बुझाया। जब निजाम न माने तो सरदार पटेल ने सेना को हैदराबाद पर अधिकार करने का आदेष प्रदान किया। अब निजाम क्या करते। उन्हें भारत का अंग बनना ही पड़ा। जूनागढ़ का निजाम अपनी रियासत छोड़ कर पाकिस्तान भाग गया और जूनागढ़ को भारत में मिला दिया गया।

सरदार पटेल का निधन 15 दिसम्बर ,1950 को दिल का दूसरा दौरा पड़ने के कारण मुम्बई में हुआ। उनके द्वारा किये गये साहसिक कार्यो के कारण ही उन्हें लोह पुरुष और सरदार जैसे विषेषणों से सम्मानिक किया गया।

भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में उन्होंने जो उल्लेखनीय भूमिका निभाई और राष्ट्र के एकीकरण में जिस दृढ़ता का परिचय दिया उसे यह कृतज्ञ राष्ट्र कभी विस्मृत नहीं कर सकता। इस महान् स्वतंत्रता सेनानी तथा राष्ट्र निर्माता महा मानव सरदार वल्लभभाई पटेल को भारत सरकार ने सन् 1991 में मरणोपरान्त ’ भारत रत्न ’ के सम्मान से नवाजा गया। भारत के इतिहास में उनका नाम सदैव स्वर्णिम पृष्ठों में अंकित रहेगा।

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