अरविन्द केजरीवाल कान्ग्रेस के चक्रव्यू में, सरकार बनाना बनी मजबूरी
आनंद एम्. वासु
लोहा तो मानना पड़ेगा अरविन्द केजरीवाल के जुनून का जिसने ‘आप‘ जैसी राजनीतिक पार्टी को देश की जनता के सामने एक तीसरे विकल्प में 2014 के लिए नया और अद्भुत तोहफा दिया है । आने वाले चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के अलावा अब जनता के सामने तीसरा विकल्प ‘आप‘ का होगा । इसी ‘आप‘ पार्टी ने वर्तमान में दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों में से 28 सीटें प्राप्त कर दूसरा बड़ा दल होने का गौरव प्राप्त किया । सबसे बड़े दल भाजपा को सरकार बनाने से रोका तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस को धरासायी कर तीसरे स्थान पर धकेल दिया है आप ने । आप की वजह से ही अभी तक दिल्ली में सरकार गठन संबंधी गतिरोध अभी जारी है ।
भाजपा ने क्यों नहीं पेश किया सरकार बनाने का दावा
दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों में से 32 सीटें प्राप्त कर भाजपा हालांकि सबसे बड़ा दल है और इस नाते उपराज्यपाल ने उन्हें सरकार बनाने का न्यौता भी दे चुके हैं लेकिन पर्याप्त संख्या बल, 36, नहीं होने से दल के नेता डाॅ0 हर्षवर्धन ने विपक्ष मे बैठने का संकेत दे, आप के लिये सरकार बनाने का रास्ता साफ किया । हालांकि इस संख्या बल की पूति हेतु भाजपा ने पूरे प्रयास किये होंगे, जैसे आप के साझा प्रोग्राम पर गठबन्धन कर सरकार बनाने के सपने को हकीकत में बदलने की कोशिश जरूर की होगी लेकिन इसमें हो सकता है आप ने साफ मना कर दिया हो । शुरू में आप ने विपक्ष में ही बैठने की घोषणा की थी और कहा था कि जनता ने हमें सरकार बनाने का जनादेश नहीं दिया है इसलिये हम सरकार नहीं बनायेंगे और विपक्ष में बैठकर अपने मुद्दों को आगे बढ़ायेंगे ।
दूसरा भाजपा ही नहीं चाहती हो कि वे आप के साथ कोई करार करें क्यों कि आप ने जो 18 शर्तें रखी हैं उसे पूरा करने में शायद वे सफल नहीं हो पाते और आए दिन आप की धमकियों से परेशानी खड़ी होने का अंदेशा पूरा बना हुआ रहता । इसलिए भाजपा ने ऐसी सरकार से दूर रहना ही पसन्द किया और गेंद एक बार फिर आप के पाले में जा पटकी ।
अब सरकार बनाने की बारी आप की
भाजपा ने जब उपराज्यपाल से मिल कर सरकार न बनाने संबंधी अपना निर्णय प्रकट किया तो फिर उपराज्यपाल ने आप नेता अरविन्द केजरीवाल को बुलाया और सरकार बनाने पर बातचीत की । अरविन्द केजरीवाल ने उपराज्यपाल से कुछ दिनों की मोहलत मांगी जिस पर उपराज्यपाल ने हामी भर दी । इसके बाद आप नेता अरविन्द केजरीवाल ने सरकार बनाने के संकेत देने शुरू कर दिये । उनके 18 शर्तों पर कांग्रेस ने अपना दांव फेंका और कांग्रेस की ओर से वक्तव्य आने लगे कि, 18 में से 16 पर तो कांग्रेस के विधायकों की भी जरूरत नहीं वह तो मंत्रीमंण्डल ही पूरी कर सकता है । इन 16 शर्तो को तो मुख्यमंत्री बनने वाले अरविन्द केजरीवाल और उनका प्रशासन ही पूरी कर सकता है । बाकी रही दो शर्तों को केन्द्र सरकार से पूरी कराने में काग्रेस सरकार पूरा सहयोग करेगी । इस तरह का कुछ लालीपाप आप को पकड़ाया गया ।
कांग्रेस के दो तीर
एक तो वह आप को बाहर से समर्थन देकर जनता तक यह संदेश पहुंचाना चाहती कि, देखो हमने दिल्ली की जनता पर एक और चुनाव का बोझ नहीं पड़ने दिया । हमने इनकी शर्तें मान ली हैं, हम भी जनता के साथ हैं और शर्तें से जनता के हित के लिए, देश के हित के लिए हैं तो हमने हमारा दायित्व निभाया । अब आप अपना दायित्व निभाए । दिल्ली में सरकार बनाए और दिल्ली वासियों को उनके जनादेश का प्रतिफल दें । जनता का ध्यान 2014 में खींचने के लिए ।
दूसरा कांग्रेस का तीर हो सकता है, आप की अनुभवहीनता पर तीर का निशाना । हालांकि आप ने 28 सीटें तो जीत ली लेकिन शासन चलाना अभी उनके लिए नया तो है ही । जो अनुभव भाजपा और कांग्रेस के पास है वह आप के पास नहीं है । इसीलिए सरकार बनाने में आप ज्यादा उत्सुक नहीं है । लेकिन सरकार बनाने की मजबूरी भी अब आप की बन गई हैं क्यों कि परम्परा अनुसार सबसे बड़े दल भाजपा ने पहलंे ही मना कर दिया, अब आप की बारी है । अब यदि वह भी मना कर देती है तो चुनाव निश्चित हो जायेंगे । आप को महसूस हो रहा है कहीं दुबारा चुनाव की जिम्मेदारी आप पर डाल कर जनता ने भाजपा को मौका दे दिया तो सब किया कराया धरा रह जायेगा । इसलिए वह एक बार सरकार बना कर, जनता से किए गए वायदों को पूरा करने का प्रयास करेंगे जो कि उन्हें 2014 के चुनावों में मददगार साबित हों ।
कांग्रेस भी बहुत चतुर है । वह आप की सफलता से कतई खुश नहीं हो सकती भले ही वह आप को बाहर से समर्थन देने पर राजी हो गई हो । आप की सरकार बना कर उसे सफल नहीं होने देगी । अपनी हार का बदला लेने की हर योजना तैयार हो रही होगी । इस रणनीति के तहत् अरविन्द केजरीवाल के लिए सरकार चलाना इतना आसान नहीं होगा । इस कमजोर कड़ी का फायदा कांग्रेस लेने की कोषिष करेगी । इस प्रकार आप पार्टी कांग्रेस के चक्रव्यू में फंसती नजर आती है ।
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