भगवान के वरघोड़े में उमड़े श्रद्धालुगण, पर्युषण महापर्व का छठा दिन

बाड़मेर। 
थार नगरी बाड़मेर में चातुर्मासिक धर्म आराधना के दौरान स्थानीय श्री जिनकांतिसागरसूरि आराधना भवन में प्रखर व्याख्यात्री मधुरभाषी साध्वीवर्या श्री प्रियरंजनाश्रीजी म.सा. ने पयुर्षण महापर्व के छठे दिन विशाल धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए अपने प्रवचन में कहा कि हमें आज के दिन वाणी की महत्वता को समझना है। आज का विषय है ‘वाणी का विलपावर’। वाणी मानव को कहां ले जाती है? ऐसा वाणी की ताकत है। यह दुश्मन को दोस्त बनाती है तो कहीं मित्र को दुश्मन भी बना देती है। एक वाणी से सिंहासन पर बैठता है तो दूसरा वाणी से नीचे भी गिरता है। वाणी का माल तोलकर देना चाहिये। संतों की वाणी पानी का कार्य करती है। उनकी वाणी हमारे अपवित्र मन को पवित्र बनाने का कार्य करती है।
उन्होनें आगे कहा कि आज हम सर्व वस्तु के साथ अपने को मेचिंग करके चलते हैं। बिंदी, चूड़ियां, पर्स, बूट, चप्पल तथा घर की दीवार और फर्श की मेचिंग, सोफा सेट तथा कारपेट का मेचिंग, कप-प्लेट की मेचिंग, ये सभी मेचिंग करने का पुरूषार्थ चलता है। परन्तु जिस परिवार के साथ आप रहते हैं क्या उस परिवार के सभी सदस्यों के साथ आपका व्यवहार मिलता है। पिता-पुत्र, माता-पुत्र, सास-बहू, पति-पत्नी के साथ वाणी का मेचिंग है या नहीं। अगर यह व्यवहार सही नहीं है तो मोक्ष का आनंद कैसे मिलेगा?

साध्वी श्री ने कहा कि अपने बच्चों को व्यवहारिक अध्ययन के साथ ही धार्मिक अध्ययन जरूरी है। एक माता सौ अध्यापकों के बराबर होती है। अगर माताओं के संस्कार व्यवस्थित होंगे तो वो बच्चा आगे कैसी भी परिस्थिति आने पर धैर्यता का परिचय देगा। त्रिशला माता अपने पुत्र को पालने में ही सुंदर संस्कार देने के लिये पालने में ही शुद्धोअस्मि बुद्धोअस्मि निरंजनोअस्मि जैसे संस्कार देती थी।
आज प्रवचन के मध्य वर्द्धमान कुमार का पाठशाला गमन पर सुंदर नाटिका प्रस्तुत की। पाठशाला के बच्चों को वर्द्धमान के पाठशाला गमन पर ज्ञान की सामग्री वितरित की गई। साध्वी श्री ने आज प्रवचन में साधार्मिक भक्ति पर कवि माघ की घटना बताकर दान की महत्ता बताई।
साध्वी डाॅ. दिव्यांजनाश्री ने कहा कि भगवान महावीर का जीवन परिपूर्ण है। उनके जीवन में पारिवारिकता, सामाजिकता एवं आध्यात्मिकता का अद्भुत समन्वय हुआ है। बचपन में भगवान महावीर जब मात्र पांच वर्ष की आयु के थे तब ज्ञानी होने के बावजूद जैसे ही माता-पिता ने पंडित के पास चलने को कहा तो सहर्ष तैयार हो गये। यह घटना हमें प्रेरणा देती है कि माता-पिता के साथ बच्चों को कैसे रहना चाहिये।
जब भगवान 28 वर्ष के हुए माता-पिता की अनुपस्थिति में बड़े भाई नंदीवर्धन को पिता का दर्जा देते हुए उन्होनें भाई से संयम की आज्ञा मांगी और भाई के आदेश को स्वीकार करते हुए दो वर्ष रूककर वे संयम की ओर बढ़े। ऐसा नहीं कि उन्होने मात्र उपदेशों के रूप में ही जगत् को जीने का तरीका सिखाया। अपने आचरण से भी समाज की व्यवस्था स्थापित की।
दीक्षा से पूर्व उन्होनें दान की परम्परा का सूत्रपात करते हुए एक वर्ष तक लगातार दान किया। इस क्रिया के द्वारा उन्होनें संसार को अर्जन के साथ विसर्जन की प्रेरणा दी। साध्वी ने कहा कि चण्डकौशिक सांप ने उन्हें डसना चाहा, पर वह डंक लगाकर भी हार गया। अंत में वह समर्पित हो गया और मरकर देवलोक पहुंच गया। भगवान महावीर के जीवन का एक-एक क्षण समभावों का चरम बिन्दु है। उनको जानें नहीं बल्कि जिएं, यही पर्युषण पर्व का संदेश है। इससे पूर्व नियमानुसार श्रद्धालुओं ने बोली बोलकर सपने उतारे। उसके पश्चात् आज भी 14 स्वप्नों की बोलियां बोली गई।

परमात्मा की रेवाड़ी में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब-

आज दोपहर 3 बजे स्थानीय आदिनाथ जिनालय एवं चिंतामणि पाश्र्वनाथ मंदिर से भगवान महावीर स्वामी के भव्य वरघोड़े का आयोजन किया गया। जिसमें नगर के सुप्रसिद्ध बैण्ड द्वारा मधुर भजनों की स्वर लहरियां बिखेरते हुए एवं ढोल, नगाड़े, शहनाई के बाद छड़ीदार, चंवर ढुलाते हुए भक्तगण परमात्मा की पालकी के आगे झूमते-नाचते नजर आये। परमात्मा की पालकी के पीछे श्रावक एवं साध्वीवर्या प्रियरंजनाश्री एवं साध्वीवर्या नंदीषेणा आदि ठाणा के पीछे श्राविकाएं सिर पर माता त्रिशला के चैदह स्वप्न थाली में रखकर मंगल गीत गाते हुए वरघोड़े की शोभा बढ़ा रहे थे। जगह-जगह लोगों ने पालकी का अक्षत की गहुलियों से स्वागत किया एवं नतमस्तक हुए। परमात्मा की पालकी को पूजन की वेशभूषा में श्रद्धालु अपने कंधों पर उठाये आनन्द एवं उल्लास का अनुभव करते हुए चल रहे थे।

वरघोड़ा आदिनाथ जिनालय एवं चिंतामणि पाश्र्वनाथ जिनालय से सब्जी मण्डी, लक्ष्मी बाजार, जवाहर चैक, प्रतापजी की प्रोल होता हुआ साधना भवन एवं आराधना भवन पहुंचा। बाद में वहां महाआरती का आयोजन किया गया एवं नारियल की प्रभावना दी गई। परमात्मा के वरघोड़े में सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालुगण उपस्थित थे। सभी जिनालयों एवं दादावाड़ियों में भगवान की प्रतिमा एवं दादा गुरूदेव की प्रतिमा पर आंगी रचाई गई।

इस अवसर पर जैन समाज के सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।

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