प्रेम करने योग्य कोई पात्र है तो केवल परमात्मा
पूज्य गुरुदेव उपाध्याय मणिप्रभसागरजी महाराज ने कहा- इस संसार में प्रेम करने योग्य कोई पात्र है तो केवल परमात्मा! जो व्यक्ति परमात्मा से प्रेम करता है, उसे कभी इस जीवन में धोखा खाना नहीं पडता।
उन्होंने कहा- संसार में हम जिससे भी प्रेम करते हैं, उससे आज नहीं, तो कल धोखा खाते हैं। या वह छोड जाता है या हम उसे छोड देते हैं। ऐसा प्रेमी मिलना मुश्किल है, जिसका प्रेम जीवन भर चलता हो। कदाच एक जन्म चल भी जाये तो आखिर में तो अलग होना ही होता है।
हमारी तो अनंत काल की यात्रा है। इस यात्रा में हमें ऐसा साथी चाहिये जो मेरा हाथ पकड ले और कभी छोडे नहीं! ऐसा साथी केवल और केवल परमात्मा है।
श्रीमद् देवचन्द्रजी महाराज के स्तवन की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा- जैसे एक म्यान में दो तलवारें नहीं ठहर सकती, वैसे ही एक हृदय में दो प्रेमी नहीं ठहर सकते। यदि है तो समझना कि हम धोखा दे रहे हैं। या तो हमारे हृदय में प्रेमी के रूप में परमात्मा हो सकते हैं या फिर संसार!
श्रीमद्जी फरमाते हैं कि मैं परमात्मा से मिलना चाहता हूॅं पर मिलूं कैसे! क्योंकि आप उस स्थान पर बिराजमान हो गये हों, जहाॅ पत्र व्यवहार नहीं है, जहाॅं संवाद नहीं है! आपके पास तो वही व्यक्ति पहुॅंच सकता है, जो आप जैसा हो गया हो! वैसी ही सरलता, अनासक्ति, कर्म मुक्त अवस्था, इच्छा मुक्त अवस्था, स्थित प्रज्ञता जिसने प्राप्त कर ली हो, वही आपसे मिल सकता है।
उन्होंने कहा- परमात्मा की भक्ति करने का अधिकार हमें तभी मिल पाता है, जब हमारे अन्तर में परमात्मा के प्रति प्रेम हो! प्रीति अनुष्ठान की प्राप्ति किये बिना भक्ति अनुष्ठान की संभावना नहीं हो सकती। भक्ति से वचन अनुष्ठान की प्राप्ति होती है और उससे असंग अनुष्ठान सिद्ध होता है।
उन्होंने कहा- अध्यात्म का एक मार्ग है, एक मंजिल है। मंजिल मोक्ष है और मार्ग परमात्मा की वाणी है। परन्तु संसार का कोई लक्ष्य नहीं है। व्यक्ति लक्ष्य बनाता भी है, तो कुछ क्षणों के लिये! उसकी प्राप्ति के बाद फिर मंजिल बदल जाया करती है। जिस व्यक्ति के पास कोई दुकान नहीं है, वह एक दुकान का सपना देखता है। वैसा होने पर दूसरी और फिर तीसरी... इस प्रकार अनंत सपनों का संसार चलता रहता है।
चूंकि संसार में मंजिल नहीं है इसलिये तृप्ति नहीं है। जहाॅं मंजिल है, वहीं तृप्ति है। चूंकि मोक्ष मंजिल है, इसलिये वहाॅं परम आनन्द रूप तृप्ति का अनुभव है।
पूजनीया बहिन म. डाॅ. विद्युत्प्रभाश्रीजी म.सा. की प्रेरणा से श्री बाबुलालजी लूणिया एवं श्री रायचंदजी दायमा परिवार की ओर से श्री जिन हरि विहार में चल रहे चातुर्मास के आराधकों की विशाल सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा- वही व्यक्ति परमात्मा से सच्चा प्रेम करता है, जो उनकी आज्ञा के अनुसार अपने जीवन का निर्माण करता है।
पूजनीया बहिन म. डाॅ. विद्युत्प्रभाश्रीजी म. ने कहा- संसार के समस्त पदार्थ क्षणिक एवं नाशवान् है। जो नष्ट होने वाले हैं, रूप रंग से विकृत होने वाले हैं, उनसे मिलने वाला सुख शाश्वत और स्थायी कैसे हो सकता है?
उन्होंने कहा- पदार्थ लक्षी जीवन जहाॅं दुखों के कांटें बटोरता है, वहीं गुण लक्षी जीवन फूलों की महक बटोरता है। हम धनवान् बनने की अपेक्षा गुणवान् बने। सद्गुणों का खजाना न कोई चुरा सकता है, न कोई उसे नष्ट कर सकता है। गुणवान् व्यक्ति जहाॅं भी जायेगा, अपने सद्गुणों की सुगंध से पूरे वातावरण को महक से भर देगा। जबकि पदार्थ लक्षी व्यक्ति अपनी तृष्णा और लालसा से अपने साथ और कईयों के जीवन को दुःखमय और अशान्त बना देगा।
हरि विहार के अध्यक्ष संघवी विजयराज डोसी ने बताया कि इस चातुर्मास में तपस्या का अनूठा ठाट लगा हुआ है। लगभग 1200 आराधकों में से 500 आराधक विविध तपस्या से जुडे हुए हैं। यह अपने आप में अनूठा कीर्तिमान है।

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें

 
HAFTE KI BAAT © 2013-14. All Rights Reserved.
Top