भारतीय सिनेमा की कामयाबी के 100 साल 

मुंबई। 
ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म से शुरू हुए भारतीय सिनेमा ने कामयाबी के साथ 100 साल पूरे लिए है। 1913 में बनी पहली मूक फिल्म "राजा हरिशचंद्र" से लेकर इस हफ्ते रिलीज हुई बॉम्बे टॉकिज तक हिंदी सिनेमा ने लंबा सफर तय किया। 
100 साल के सफर में हिंदी सिनेमा न जाने कितने पड़ाव देखे। कभी सिनेमा की शक्ल बदली तो कभी सिनेमा के नायक की और कभी दिलों पर राज करने वाली नायिकाओं की। अभिनेत्री पी जी साने,दुर्गाबाई,कमलाबाई गोखले से लेकर सोनाक्षी,कैटरीना कैफ,दीपिका पादुकोण के किरदार निरंतर बदलते रहे। 

आइए आपको सैर करवाते हिंदी सिनेमा के100 सालों के सफर की। 


"राजा हरिशचंद्र" से हुई शुरूआत
यह वह समय था जब फिल्मों में काम करने को अच्छा नहीं माना जाता था। समाज की ऎसी धारणा के बावजूद धुंदीराज गोविंद फाल्के यानि दादासाहेब फाल्के ने 1913 में "राजा हरिशचंद्र" का निर्माण किया। राजा हरिशचन्द्र पर बनी यह फिल्म मूक फिल्म थी। 
यह 3 मई 1913 को रिलीज हुई थी। इसके बाद काला नाग जैसी कई मूक फिल्में बनी जो आज भी लोगों के दिलों की धड़कन बनी हुई है। 1913 से लेकर 1930 तक लगभग 1300 मूक फिल्में बनी। 


पहली बोलती फिल्म 
1931 में अर्देशिर ईरानी के निर्देशन में पहली बोलती फिल्म "आलम आरा" बनी। इस फिल्म ने सिनेमा को आवाज दी जो आज भी चरम पर है। इस फिल्म में काम करने वाली एक्ट्रेस जुबैदा हिंदी सिनेमा की पहली हिरोइन माना जाता है। यह फिल्म भी ब्लैक एंड व्हाइट थी। 

पर्दे पर दिखा रंग 
1937 में मोती गिडवानी निर्देशित फिल्म "किसान कन्या" में पहली बार फिल्मों में कलर दिखाई दिए। इसे भी अर्देशिर ईरानी ने प्रोड्यूस किया था। फिल्म गरीब किसान और परेशानियों पर आधारित थी। इस फिल्म से कलर फिल्मों का दौर शुरू हुआ।

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